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जौनपुर जिले की पहचान बन रहे जाम से शीर्ष स्तर पर बैठे जिम्मेदारों को मानो कोई मतलब नहीं है। वो सिर्फ मीटिंग कर बड़े बड़े ख्याली पुलाव बनाकर प्लान बना लेते है ,लेकिन उनको अमली जामा पहनाने के नाम पर अपनी जिम्मेदारीयो से भागने लगते है। शायद यही वजह है कि वे इसे लेकर गैर जिम्मेदार हो गए हैं, जिसका खामियाजा जाम में फंसे लोगों और इस समस्या से निजात दिलाने में लगाए गए सिपाहियों व होमगार्डाें को भुगतना पड़ता है। ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि जिलेभर में जाम से निबटने के लिए यातायात पुलिस के पास 9 सिपाही, 5 हेडकांस्टेबल और 55 होमगार्ड हैं। इनमें सभी की ड्यूटी एक साथ नहीं लगाई जा सकती। अधिकांश की ड्यूटी शहर में लगाई गई है, जिससे स्थिति सुधरने का नाम ही नहीं ले रही है। मौजूदा समय में वे हांफते नजर आते हैं, लेकिन इनकी जिम्मेदारी उस समय बढ़ जाती है जब जाम में वीआईपी की गाड़ी फंस जाती है, जिन्हें निकालने के लिए वे पसीने बहाते नजर आते हैं, लेकिन उनके जाते के कुछ देर बाद ही वे जाम की समस्या को नजर अंदाज कर देते हैं। यह दृश्य जिलेभर में देखा जा सकता है। यकीन नहीं तो पालिटेक्निक चौराहे से लेकर शहर के किसी तिराहे या चौराहे पर शाम के समय चलिए। आश्चर्य की बात तो यह है कि इनकी जहां तैनाती होती है वहीं शाम को अतिक्रमण कर दुकानें लगाई जाती है, जिसे ये मानों देख ही नहीं पाते हैं।ऐसे मे सवाल यह उठता है की हफ्ता वसुलने वाली पुलिस क्यो नही डंडा पिटकर सड़क पर से ई रिक्शा,टेम्पो,ठेले ,खोमचे वालो को हटाती । इसके पिछे का कारण यह है की यह खुद इनसे हफ्ता वसुलते है तो फिर क्यो इनके खिलाफ शख्त होगे,रही जनता तो वो यूँही जाम मे जुझती रहेगी। पुलिस अपने सर पर लगाने वाली टोपी अपने पेंट के पिछवाड़े वाले जेब मे रख कर कही न कही खड़ी होकर वसुली करती रहेगी ।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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