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बरेली ब्यूरो: योगेंद्र सिंह
बरेली : पिछले कुछ दिनों से प्राइवेट स्कूलों की फी वसूली का मुद्दा चर्चा में है। सच पूछिए तो आजादी के बाद सबसे अधिक पतन शिक्षा व्यवस्था का ही हुआ है। प्राइवेट स्कूल पैसा वसूली के अड्डे बन गए हैं, और सरकारी स्कूल अवैध बटवारे के..पढ़ाई लिखाई तो खैर जो है सो हइये है। प्राइवेट स्कूल अब विद्यालय नहीं मॉल हो गए हैं। वहाँ किताबें बिकती हैं, कपड़े बिकते हैं, जूते बिकते हैं, मोजे बिकते हैं, मॉल बिकते हैं, ट्यूशन के मास्टर बिकते हैं, कुछ स्कूलों में धर्म भी बिकता है, और सबसे अंत में शिक्षा बिकती है। और ये सारे सामान लागत मूल्य से दस गुने मूल्य पर बेचे जाते हैं।
सरकारी स्कूल मुफ्त राशन की दुकान हो गए हैं। वहाँ सरकार भोजन बांटती है, कपड़े बांटती है, जूते बांटती है, स्कूल बैग बांटती है, पैसे बांटती है, चुनाव के समय वोट का मूल्य बांटती है, और सबसे अंत में शिक्षा बांटती है। इतना ही नहीं, यह सारी बंदरबांट पहली कक्षा से ही बच्चों को उनकी जाति, उनकी कैटेगरी याद दिला कर की जाती है। फिर वही सरकार बुद्धिजीवियों से पूछती है कि जातिवाद मिट क्यों नहीं रहा? और बुद्धिजीवी दारू की बोतल गटक कर कहते हैं, ब्राह्मणवाद के कारण..
लॉकडाउन के दौरान विद्यालय बन्द हुए तो सरकार ने आदेश किया कि मध्याह्न भोजन का पैसा हर बच्चे के खाते में भेज दिया जाय। मतलब बटवारा रुकना नहीं चाहिए। उधर प्राइबेट स्कूल वालों ने कहा कि हम ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं, सो फी जमा कीजिये। मतलब वसूली नहीं रुकेगी... दोनों के मालिक अपने अपने एजेंडे पर डटे हुए हैं।
मुझे लगता है कि शिक्षा के क्षेत्र में तो कम से कम नैतिकता होनी ही चाहिए। अगर विद्यालय अनुशासित हो गए तो राष्ट्र का भविष्य अनुशासित हो जाएगा। पर दुर्भाग्य यह है कि यहाँ नैतिकता बिल्कुल भी नहीं है। हर जगह केवल और केवल एजेंडा है।
हमारे यहाँ नर्सरी क्लास के बच्चे को स्कूल ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं। जिस बच्चे की पोट्टी भी मां धोती है, वह ऑनलाइन पढ़ रहा है। इस ऑन लाइन पढ़ाई का लाभ न बच्चा समझ रहा है, न अभिभावक... बस स्कूल प्रशासन समझ रहा है।
प्राइवेट स्कूल वालों का तर्क है कि शिक्षकों का वेतन देना है, सो फी लेना सही है। चलिये छोटे स्कूलों की बात तो समझ आती है, पर वे बड़े स्कूल जिनकी कमाई करोड़ों की है वे क्या तीन महीने का वेतन भी अपने पास से नहीं दे सकते? वैसे मुझे तो यह भी समझ में नहीं आ रहा कि तीन-चार महीना स्कूल बंद हो जाने से ऐसा क्या बिगड़ जा रहा है जो ऑनलाइन पढ़ाना पड़ रहा है? प्राइवेट स्कूल तो यूँ भी गर्मी छुट्टी के नाम पर दो-दो महीने बन्द रहते हैं। पर नहीं, फीस लेना है तो तेला-बेला करना ही पड़ेगा न!
आज देखा कि डीपीएस जैसा बड़ा स्कूल ग्रुप मास्क बेंच रहा है, वह भी 400 रुपये में यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा है। आपको क्या लगता है, ऐसी व्यवस्था में पढ़ कर निकला बच्चा किसी के प्रति निष्ठावान हो सकता है? नहीं! न राष्ट्र के प्रति, न समाज के प्रति, न घर के प्रति... वह बस यही सीखेगा कि जैसे भी हो पैसा कमाना है। किसी भी तरह...
वैसे डीपीएस ने अब कहा है कि वह मास्क उसका नहीं है। मास्क न भी हो तब भी किताबों, जूतों आदि के नाम पर लूट कम नहीं होती। वैसे मुझे लगता तो नहीं कि लोग प्राइवेट स्कूलों की इस अनैतिकता का विरोध कर पाएंगे, पर उन्हें करना चाहिए। इस लॉक डाउन पीरियड का फी तो नहीं ही दिया जाना चाहिए।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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