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नयी दिल्ली : सीजेआई बीआर गवई के ऊपर जूता चलाने वाले पर कोई कार्यवाई नहीं किया जाना साबित करता है कि सरकार भी हमलावार के साथ है. मीडिया ने भी सरकार के इशारे पर ही हमलावर के इंटरव्यू दिखाकर उसका महिमामंडन किया ताकि एक स्थायी दलित विरोधी नफ़रत का माहौल बना रहे. ये बातें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 216 वीं कड़ी में कहीं.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई मोदी सरकार के एजेंडे को सूट करने वाले फैसले देते रहे हैं. जस्टिस लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के मामले में भी उन्होंने अख़बार में लेख लिखकर उसकी जांच न कराए जाने की वकालत की थी. जबकि जस्टिस लोया के परिजनों और नागरिक समाज ने भी मृत्यु की जांच की मांग की थी. बीआर गवई के उस लेख से संदेह के दायरे में चल रहे गृह मंत्री अमित शाह को लाभ हुआ था. इसी तरह वक़्फ़ संशोधन क़ानून के पक्ष में भी उन्होने तथ्यों और तर्कों के विपरीत जाकर सरकार के पक्ष में फैसला दिया था.
उन्होंने कहा कि सरकार के पक्ष में फैसले देने के बावजूद उनके ऊपर सरकार समर्थक तत्वों द्वारा जूता फेका जाना
भविष्य के मुख्य न्यायाधीशों के लिए आरएसएस की ओर से सन्देश भी है कि सिर्फ़ उनके पक्ष में फैसला ही नहीं देना है, बल्कि आरएसएस अगर कोई कार्यक्रम करे और बुलाये तो ख़ुद या अपने मां-बाप को उसमें भेजना भी है. यह स्थिति दर्शाता है कि न्यायपालिका को आरएसएस किस हद तक कण्ट्रोल कर चुका है.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अगले महीने रिटायर हो रहे बीआर गवई को एक ऐसे सीजेआई के बतौर याद किया जाएगा जिनके बुलडोज़र एक्शन पर रोक लगाने वाले फैसले की भाजपा की राज्य सरकारों ने लगातार अवमानना करते हुए लोगों के घरों और संपत्तियों को बुलडोज़र से गिराया और वो मुख्यमंत्रीयों को एक नोटिस तक नहीं भेज पाए.
उन्होंने कहा कि आज केंद्र और राज्यों की भाजपा सरकारों द्वारा मुसलमानों और दलितों के हितों के खिलाफ की जा रही कार्यवाइयों के पीछे न्यायपालिका की चुप्पी भी एक अहम वजह है. जो गलत कार्यवाइयों पर स्वतः संज्ञान लेने के अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं करती. इसीलिए समाज में न्यायपालिका की छवि सरकार के पक्ष में खड़ी होने वाली संस्था की बनती जा रही है.
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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