मुस्लिम आतंकवाद : एक वैश्विक चुनौती विपुल लखनवी

By: Surendra
Apr 24, 2025
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नवी मुंबई : पहलगाम में नाम पूछ कर 26 लोगों की हत्या करना वह भी धर्म के नाम पर एक पागलपन के सिवा कुछ नहीं लेकिन अफसोस यह है कि इस पागलपन को नेताओं ने राजनीति के रूप में इस्तेमाल कर वोट बैंक के कारण बढ़ने दिया। इस पर कभी भी कोई लगाम नहीं लगाई। इस कारण पूरा विश्व मुस्लिम आतंकवाद से परेशान है और जूझ रहा है चीन जैसे कुछ देशों ने तो यह बुरी तरीके से कुचल दिया लेकिन भारत ऐसे देश में यह संभव नहीं है क्योंकि यहां पर आतंकवाद को पालने वाले धन पशु और राजनीतिक नेता हर तरफ मिल जाते हैं। चलिए इस विषय पर कुछ चर्चा करते हैं। 

21वीं सदी के आरंभ से ही “मुस्लिम आतंकवाद” शब्द विश्वभर में आतंक, भय और अस्थिरता का पर्याय बन चुका है। हालांकि यह कहना उचित नहीं कि समस्त मुसलमान आतंकवादी हैं, परंतु यह तथ्य भी झुठलाया नहीं जा सकता कि वर्तमान समय में विश्व में जो संगठित आतंकवाद की सबसे अधिक घटनाएँ हो रही हैं, वे प्रायः इस्लाम के नाम पर संचालित संगठनों द्वारा की जाती हैं। इस लेख का उद्देश्य संपूर्ण मुस्लिम समुदाय को कलंकित करना नहीं, अपितु उन चरमपंथी संगठनों, विचारों और मानसिकताओं का विश्लेषण करना है, जो धर्म के नाम पर हिंसा को उचित ठहराते हैं।

इतिहास की झलक:

मुस्लिम आतंकवाद की जड़ें 20वीं सदी के मध्य से दिखाई देने लगती हैं, विशेषतः अरब-इस्राइल संघर्ष, अफगानिस्तान में सोवियत संघ के विरुद्ध जिहाद, ईरान-इराक युद्ध, और पाकिस्तान में सैन्य इस्लामीकरण की नीतियों से। 1980 के दशक में अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा अफगान मुजाहिदीन को समर्थन देने से ‘जिहाद’ एक वैश्विक परिघटना बनी।

कुछ प्रमुख आतंकवादी संगठन:

1. अल-कायदा – ओसामा बिन लादेन द्वारा स्थापित यह संगठन 9/11 हमले (2001) का सूत्रधार बना, जिसने विश्व को आतंकवाद की भयावहता का एहसास कराया।

2. आई.एस.आई.एस. (इस्लामिक स्टेट) – सीरिया और इराक में खलीफा शासन स्थापित करने का प्रयास करने वाला यह संगठन असहमत मुसलमानों को भी काफिर घोषित कर देता है।

3. तालिबान – अफगानिस्तान में पुनः सत्ता प्राप्त करने के बाद, इसने शरिया आधारित कट्टर शासन लागू किया है।

4. बोको हराम – नाइजीरिया आधारित यह संगठन विशेषकर ईसाई समुदाय, लड़कियों की शिक्षा और आधुनिकता के विरोध में हिंसक रहा है।

5. लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद – पाकिस्तान स्थित ये संगठन भारत के विरुद्ध कई आतंकी हमलों के लिए उत्तरदायी हैं, जिनमें 26/11 मुंबई हमला प्रमुख है।

वैचारिक आधार:

इन संगठनों की विचारधारा एक विकृत जिहाद पर आधारित है — एक ऐसा युद्ध जो वे “इस्लाम के दुश्मनों” के विरुद्ध अनिवार्य मानते हैं। उनका उद्देश्य है दार-उल-इस्लाम की स्थापना अर्थात वैश्विक इस्लामी शासन। वे कुरआन की आयतों की मनचाही व्याख्या कर, युवाओं को उकसाते हैं, स्वर्ग और शहादत के नाम पर उन्हें आत्मघाती हमलों के लिए तैयार करते हैं।

वैश्विक प्रभाव:

सुरक्षा पर खतरा : यूरोप, अमेरिका, भारत, अफ्रीका — कहीं भी कोई सुरक्षित नहीं।

आर्थिक क्षति : आतंकी हमलों से पर्यटन, निवेश, व्यापार प्रभावित होते हैं।

सांप्रदायिक विषमता : शांतिप्रिय मुसलमानों पर भी संदेह की दृष्टि बढ़ती है।

शरणार्थी संकट : आतंक से भागे लाखों लोगों ने यूरोप और अन्य देशों की सामाजिक संरचना पर दबाव डाला है।

निवारण के उपाय:

1. कट्टरपंथी शिक्षण संस्थानों पर नियंत्रण

2. ऑनलाइन प्रचार और भर्ती पर निगरानी

3. आर्थिक स्रोतों को समाप्त करना

4. शांतिप्रिय मुस्लिम नेताओं और समाज का सहयोग लेना

5. शिक्षा, रोजगार और सामाजिक विकास के माध्यम से युवाओं को विकल्प देना

मुस्लिम आतंकवाद आज केवल एक धर्म का संकट नहीं, वरन् समूची मानवता के लिए चुनौती है। यह विचारधाराओं के युद्ध का युग है, जहाँ हिंसा का उत्तर केवल सैन्य शक्ति नहीं, वैचारिक स्पष्टता, सामाजिक एकता और न्यायपूर्ण शासन द्वारा ही दिया जा सकता है। मुसलमानों को भी यह तय करना होगा कि वे आतंक के मार्ग पर चलने वालों के साथ हैं या मानवता और विकास के साथ।


Surendra

Reporter - Khabre Aaj Bhi

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