सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों ने केंडल मार्च निकालकर एनपीएस योजना की विफलता पर हल्ला बोला पेंशन हक़ है, लेकर रहेंगे ... रविन्द्र शर्मा

By: Khabre Aaj Bhi
Jan 02, 2022
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By : जावेद बिन अली

राजस्थान/जयपुर : पूर्व सूचना के अनुसार  न्यू पेंशन स्कीम एम्पलॉइज फैडरेशन ऑफ़ राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष रविन्द्र शर्मा ने बताया कि संगठन के प्रांतव्यापी आह्वान पर हल्ला बोल आन्दोलन के तीसरे चरण में सभी जिला एवं उपखंड मुख्यालयों पर सामूहिक रूप से हजारों की संख्या में एकत्र होकर राजस्थान के कर्मचारियों ने अर्धसैनिक बलों एवं आईएएस अधिकारियों  सहित  केन्द्र के 22 लाख, 33 हजार, 348  नो पेंशन स्कीम कर्मचारियों अधिकारियों सहित राजस्थान के 5 लाख सरकारी 2 लाख अर्धसरकारी कार्मिकों की 01.01.2004 से पेंशन छीने जाने की बरसी पर हजारों की संख्या में केंडल मार्च निकाल कर एनपीएस योजना की विफलता पर हल्ला बोला ।इस मौके पर सभा को संबोधित करते हुए प्रदेश समन्वयक विनोद चौधरी  ने कहा कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन के पश्चात अंग्रेजो ने इस देश में राजकीय कर्मचारियों के लिए पेंशन व्यवस्था शुरू की परन्तु बड़ी विडंबना है कि आजादी के बाद तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने कोरपोरेट घरानों को फायदा पहुँचाने के लिए 22 दिसंबर 2003 को अधिसूचना जारी कर सशस्त्र सेनाओं को छोड़कर अर्धसैनिक बलों सहित लाखों केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों की 1 जनवरी 2004 से पेंशन छीन लेने का काम किया जिसके बाद प्रमुख राजनैतिक पार्टियों एवं कोर्पोरेट घरानों के गठजोड़ के चलते केंद्र सरकार  के दबाब में संविधान की 7 वीं अनुसूची के अनुच्छेद 245 से 255 की भावना का उल्लंघन करते हुए पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्य सरकारों ने कर्मचारियों पर शेयर बाज़ार आधारित नवीन अंशदायी पेंशन योजना थोप दी  जो पेंशन योजना न होकर म्युचुअल फंड योजना है ।प्रदेश सभा अध्यक्ष विशाल चौधरी ने बताया कि अब कर्मचारियों के आन्दोलन एवं एकजुटता की वजह से पुरानी पेंशन एक राजनैतिक मुद्दा बन चुका है इसी वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के नेतृत्व 1 अप्रैल 2005 से जिस समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में एनपीएस  योजना लागू की थी वही समाजवादी पार्टी अब उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनावों में कर्मचारियों का वोट बैंक लुभाने के लिए पिछले दिनों विधानसभा के अन्दर व बाहर पुरानी पेंशन बहाली के पक्ष में नारेबाजी कर रही थी। उन्होंने कहा कि पुरानी पेंशन कर्मचारियों का हक़ है और देश का कर्मचारी अधिकारी व्यापक एकजुटता पैदा कर संगठित आंदोलनों के चलते पुरानी पेंशन लेकर रहेगा चाहे इसके लिए उन्हें कितनी भी कुर्बानियां देनी पड़े। इस अवसर पर प्रदेश महासचिव राकेश कुंतल ने बताया कि मानव गरिमा के महत्व का निर्धारण संयुक्त राष्ट्र के चार्टर, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और भारत के संविधान में भी किया गया है, जिनकी  प्रस्तावना में व्यक्ति की गरिमा का उल्लेख सबसे महत्वपूर्ण मूल्य के रूप में किया गया है।  भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 में भी व्यक्ति का मानवीय गरिमा के साथ जीवन जीना उल्लेखित है परन्तु एनपीएस से सेवानिवृति के बाद मिलने वाली 600 से 1200 रुपया धनराशि कर्मचारियों अधिकारियों के आत्म सम्मान एवं गरिमा की रक्षा करने में पूरी तरह विफल साबित हुई है । प्रदेश सोशल मीडिया प्रभारी रजनीकांत दीक्षित एवं प्रदेश सांस्कृतिक सचिव राजेन्द्र सिंह चारण ने बताया कि यदि एनपीएस बुढ़ापे में वास्तव में सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम होती तो सशस्त्र सेनाओं के साथ माननीय उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों सहित राजनेताओं पर भी नवीन पेंशन योजना (एनपीएस) लागू होती। विजय फौजदार  ने बताया कि हमारे अर्धसैनिक बलों एवं आईएएस अधिकारियों पर भी नो पेंशन सिस्टम  लागू है परन्तु उनके सेवा नियम उन्हें सार्वजनिक रूप से आन्दोलन करने की अनुमति नहीं देते हैं इसलिए उनके हिस्से संघर्ष भी फेडरेशन कर रहा है।युवा नेता मुकेश पिप्पल  ने बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट अपने विभिन्न फैसलों में पेंशन को मानवाधिकार अधिकार माना है ।प्रदेश संयुक्त सचिव अनिल गोदारा एवं सत्य नारायण गुर्जर  ने राज्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि पुरानी पेंशन बहाल नहीं की गयी तो प्रदेश के कर्मचारी चुनावों में सत्ताधारी राजनैतिक दलों को सबक सिखाने का निर्णय ले चुके है । प्रदेश उपाध्यक्ष महेंद्र सिंह राव एवं उम्मेद सिंह डूडी  ने बताया कि जिसे एनपीएस कहते हैं वह पेंशन योजना न होकर म्यूच्यूअल फण्ड निवेश योजना है जो शेयर बाजार आधारित होने के कारन पूरी तरह से असुरक्षित योजना है तथा सरकारी कर्मचारियों के धन से कार्पोरेट ऐश कर रहे हैं। प्रदेश सचिव विनोद मीणा एवं अब्दुल कलीम ने बताया कि “राजस्थान सिविल सेवा पेंशन नियम,1996” लागू करवाने तक संघर्ष जारी रहेगा । प्रदेश उपाध्यक्ष भावना चौधरी ने बताया कि उन्नीस सौ बयासी  में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए  डी एस नाकारा एवं अन्य वर्सेज भारत सरकार फैसले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘‘भारतीय संविधान के अनुसार सरकार पेंशनभोगियों को सामाजिक एवं आर्थिक संरक्षण देने के लिए बाध्य है और सरकारी सेवा से सेवानिवृतों के लिए पेंशन उनका मौलिक अधिकार है। पेंशन न तो उपहार है और ना ही नियोक्ता की सद्भावना या मेहरबानी है। यह एक अनुग्रह भुगतान भी नहीं है बल्कि उनकी पूर्व में की गयी सेवाओं का भुगतान है। यह एक सामाजिक कल्याणकारी मानदण्ड है, जिसके तहत उन लोगों को सामाजिक-आर्थिक न्याय देना है,जिन्होंने अपनी पूरी जवानी नियोक्ताओं के लिए निरंतर कड़ी महे नत करने में इस भरोसे में बितायी है कि उनके बुढ़ापे  में उन्हे बेसहारा नहीं छोड़ दिया जाएगा। विनोद जैमन ने  बताया  कि मानवाधिकार आयोग ने भी  न केवल पेंशन बल्कि सेवा निवृत होने पे मिलने वाले सभी लाभ ग्रेच्युटी,समर्पित अवकाश भुगतान, प्रोविडेंट फंड आदि को मानवाधिकार माना हैं। इस अवसर पर भावना चौधरी ज्ञानेंद्र सिंह,मुकेश जघीना,मुकेश पिप्पल, अनूप चौधरी, गिरीश शर्मा, विवेकराणा, नमन राणा, विजय फौजदार, अमिता शर्मा, ब्रजेश सोलंकी ने विचार व्यक्त किये।


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Reporter - Khabre Aaj Bhi