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by : मो॰ हारुन
जौनपुर : शाही अटाला मस्जिद में कमेटी की तरफ से एक जलसा का आयोजन हर साल की तरह इस साल भी १३ रबी उल अव्वल पर किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत पेश इमाम क़ारी शब्बीर ने कलाम पाक से किया जिसके बाद नातो मंखतब नबी की शान में तालिब ए इल्म ने पेश किया। जलसे को खेताब करते हुए उलमा माशाईख बोर्ड के जिलाध्यक्ष हज़रत मौलाना शववाल अहमद अशरफी ने कहा कि हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम का जन्म १२ रबी उल अव्वल इस्लामी महीने के अनुसार २९ अगस्त ५७० ईसवी में अरब के मक्का शहर में हुआ था। पैगंबरों के सिलसिले में यह इस्लाम के आखरी पैगंबर थे। जिस तरीके से आदम से लेकर मूसा अस इब्राहिम अस ने एक ईश्वर वाद की बात कही, उसी तरह से यह भी उसी एक ईश्वरवाद के संदेशवाहक थे।
इन्होंने अरब में इस्लाम का फिर से प्रचार किया और उसको पुनर्जीवित किया।इनके आने से पहले अरब में ही नहीं,अपितु पूरे जगत में तमाम बुराइयां व्याप्त थी। लोग एक ईश्वर को छोड़कर मूर्ति पूजक हो गए थे और कई ईश्वर को मानने लगे थे। इसके साथ ही शराब पीना आम हो गया था। लड़कियों को पैदा होते ही जिंदा दफन कर दिया जाता था। इस तरीके से समाज में कई बुराइयां व्याप्त हो चुकी थीं। उन बुराइयों के खिलाफ उन्होंने एक आंदोलन चलाया और समाज में एक समाज सुधारक के रूप में कार्य किया। आज पूरी दुनिया में लोग उनके बताए रास्ते पर चलते हैं। उनके ऊपर इस्लाम का आखिरी ग्रंथ कुरान शरीफ अवतरित हुआ।
६२ वर्ष की अवस्था में इस्लामी १२ रबी उल अव्वल के दिन ही ८ जून ६३२ ईसवी को हजरत मोहम्मद का मदीना में निर्वाण हुआ। दरूद ओ सलाम के बाद हज़रत मौलाना कयामुद्दीन ने दुआखानी करके अल्लाह के बारगाह मे मुल्क में अमन, शांति, भाईचारगी, दुख, मुसीबत, बलाओ से हिफाज़त, कोरोना जैसी दुनियावी महामारी के खात्मे को लेकर खूसूसी दुआ की। इस मौके पर मरकजी सीरत कमेटी के जनरल सेक्रेटरी हफ़ीज़ शाह, शाही अटाला मस्जिद के सेक्रेटरी मास्टर खालिद, जॉइन्ट सेक्रेटरी नफीस अहमद, मरकजी सीरत कमेटी के नायब सदर शकील मंसूरी, वैस क़ादरी, फहद अंसारी, हाजी वसीम अहमद, जावेद अहमद समेत तमाम लोग मौजूद रहे। अन्त में तबर्रूक तक्सीम किया गया।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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