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By: अफसर अली
उत्तर प्रदेश, जौनपुर. मछली शहर तहसील मोहर्रम की और 10 को तारीख को शिया अकीदत मंदो ने शहीदाने करबला की याद में जुलूस निकाल कर पूरे नगर पंचायत के घूमते हुए नोहा पढ़ते हुए और जंजीरा के मातम करते हुए ताजिया के साथ जुलूस की शक्ल में कर्बला के मैदान में ताजिया को दफन किया और मोहर्रम की 11 तारीख को खानजादा मोहल्ले से मकानी अंजुमने और बाहरी अंजुमने नोहा पढ़ते हुए जुलूस की शक्ल में कर्बला पर पहुंच कर शहीदों को याद किया।
मुहर्रम इस्लामी वर्ष यानी हिजरी सन् का पहला महीना है। हिजरी सन् का आगाज इसी महीने से होता है। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है। अल्लाह के रसूल हजरत (मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने इस माह को अल्लाह का महीना कहा है। साथ ही इस माह में रोजा रखने की खास अहमियत बयान की है।मुख्तलिफ हदीसों, यानी हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के कौल (कथन) व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता व इसकी अहमियत का पता चलता है। ऐसे ही हजरत (मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने एक बार मुहर्रम का जिक्र करते हुए इसे अल्लाह का महीना कहा। इसे जिन चार पवित्र महीनों में रखा गया है, उनमें से दो महीने मुहर्रम से पहले आते हैं। यह दो मास हैं जीकादा व जिलहिज्ज।एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत (मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं। यह कहते समय नबी-ए-करीम हजरत (मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है, उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे उत्तम रोजे मुहर्रम के हैं। इस्लामी यानी हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रम है। इत्तिफाक की बात है कि आज मुहर्रम का यह पहलू आमजन की नजरों से ओझल है और इस माह में अल्लाह की इबादत करनी चाहीये जबकि पैगंबरे-इस्लाम ने इस माह में खूब रोजे रखे और अपने साथियों का ध्यान भी इस तरफ आकर्षित किया। इस बारे में कई प्रामाणिक हदीसें मौजूद हैं। मुहर्रम की 9 तारीख को जाने वाली इबादतों का भी बड़ा सवाब बताया गया है। हजरत (मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) के साथी इब्ने अब्बास के मुताबिक हजरत (मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने कहा कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं तथा मुहर्रम के एक रोजे का सवाब (फल) 30 रोजों के बराबर मिलता है। गोया यह कि मुहर्रम के महीने में खूब रोजे रखे जाने चाहिए। यह रोजे अनिवार्य यानी जरूरी नहीं हैं, लेकिन मुहर्रम के रोजों का बहुत सवाब है।
अलबत्ता यह जरूर कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह के नबी हजरत नूह (अ.) की किश्ती को किनारा मिला था। इसके साथ ही आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है। इस घटना में हजरत(मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था। कर्बला की घटना अपने आप में बड़ी विभत्स और निंदनीय है। बुजुर्ग कहते हैं कि इसे याद करते हुए भी हमें हजरत (मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) का तरीका अपनाना चाहिए। जबकि आज आमजन को दीन की जानकारी न के बराबर है। अल्लाह के रसूल वाले तरीकोंसे लोग वाकिफ नहीं हैं
प्रशासन का इंतजाम बहुत ही सराहनीय था थाना प्रभारी पर्व कुमार सिंह व उनकी टीम बधाई की पात्र है जिन्होंने ने बहुत ही मुस्तैदी के साथ पूरे मजमे को कंट्रोल करते हुए शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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