दीपांकर दत्ता की टिप्पणी राजनीतिक, उनके पुराने फैसलों की भी हो समीक्षा- शाहनवाज़ आलम

By: Khabre Aaj Bhi
Aug 05, 2025
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सरकार के सुर में सुर मिलाने को सच्ची भारतीयता समझने वाला व्यक्ति जज बनने योग्य नहीं

आरएसएस को ख़ुश करने के लिए एक दूसरे को कड़ी टक्कर देने वाले जजों से लोकतंत्र को खतरा

नयी दिल्ली  : कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने सुप्रीम कोर्ट जज दीपांकर दत्ता की नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की देशभक्ति और भारतीयता पर सवाल उठाने वाली टिप्पणी को न्यायपालिका की लक्ष्मण रेखा को लांघ कर की गयी राजनीतिक टिप्पणी बताया है. उन्होंने कहा कि अगर जज साहब की दिलचस्पी अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी निभाने के बजाये राजनीति करने में है तो उन्हें न्यापालिका के मंच का दुरूपयोग करने के बजाये इस्तीफ़ा देकर यह काम करना चाहिए.

शाहनवाज़ आलम ने जारी बयान में कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि जस्टिस दीपांकर दत्ता को यह नहीं पता हो कि न्यायालय का काम न्याय करना है किसी की देशभक्ति और भारतीयता जांचना नहीं. इसलिए यह न मानने का कोई आधार नहीं है कि उन्होंने मोदी सरकार और आरएसएस के नैरेटिव को सूट करने वाली राजनीतिक टिप्पणी की है. जबकि वो जानते थे कि अदालत का काम न्याय करना है सरकार के पक्ष में भावनात्मक समर्थन व्यक्त करना नहीं.

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के एक हिस्से के साथ आपराधिक मिलीभगत से मोदी सरकार विपक्षी पार्टियों के वैचारिक दृष्टिकोण और कार्यक्रमों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है. जस्टिस दीपांकर दत्ता इसके ताज़ा उदाहरण है इससे पहले मुंबई हाईकोर्ट के दो जजों गौतम अंखड़ और रविंद्र गुघ ने माकपा द्वारा गाज़ा पर इज़राइली हिंसा के खिलाफ़ प्रस्तावित प्रदर्शन पर माकपा की देशभक्ति पर सवाल उठाते हुए न सिर्फ़ रोक लगा दिया था बल्कि उससे कचरे के अम्बार और नाली की सफाई जैसे मुद्दों को उठाकर अपनी देशभक्ति साबित करने का सुझाव भी दिया था.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यह प्रवृत्ति इस संदेह को पुष्ट करती है कि मोदी सरकार न्यायपालिका के एक हिस्से के सहयोग से आरएसएस और भाजपा की तानाशाही थोपने की कोशिश कर रही है. 

उन्होंने कहा कि राहुल गांधी द्वारा चीन की तरफ से हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने के दावे पर दीपांकर दत्ता की यह टिप्पणी कि एक सच्चा भारतीय ऐसा नहीं कहता, दत्ता की ग़ुलाम मानसिकता को दर्शाता है. जिसे लगता है कि सच्चा भारतीय होने का मतलब सरकार के सुर में सुर मिलाना होता है. उन्होंने कहा कि इस मानसिकता वाला कोई भी व्यक्ति जज होने की योग्यता नहीं रखता क्योंकि वो सरकार से जुड़े मामलों में न्याय कर ही नहीं पाएगा. इसलिए दीपांकर गुप्ता के पूर्व सभी के फैसलों की समीक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जजों का पैनल बनाना चाहिए. इसके साथ ही उनके पास से ऐसे मुक़दमों को वापस ले लेना चाहिए जिसमें सरकार पक्षकार हो. क्योंकि इसका खतरा बना रहेगा कि वो अपने को 'सच्चा भारतीय' मानते हुए सरकार के पक्ष में फैसले दे दें. शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 2014 के बाद से ही जजों के एक हिस्से में आरएसएस के एजेंडे के पक्ष में टिप्पणी कर उसे ख़ुश करने का कम्पटीशन चल रहा है. उन्हें लगता है कि एक दूसरे को कड़ी टक्कर देकर वो भी रंजन गोगोई और चन्द्रचूड की तरह रिटायरमेन्ट के बाद इनाम पा सकते है. 



Khabre Aaj Bhi

Reporter - Khabre Aaj Bhi

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