जापानी वैज्ञानिक ने 2016 में पाया नोबेल पुरस्कार ऑटोफैगी का सनातन स्वरूप ....विपुल लखनवी,

By: Khabre Aaj Bhi
Jul 30, 2025
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नवी मुंबई  :  जब कोई व्यक्ति भोजन नहीं करता, तो शरीर अपने भीतर संचित वसा और बेकार कोशिकाओं को ऊर्जा के रूप में उपयोग करने लगता है। इसी प्रक्रिया को आधुनिक विज्ञान "ऑटोफैगी" कहता है, जिसे 2016 में जापानी वैज्ञानिक डॉ. योशिनोरी ओसुमी ने सिद्ध किया और उन्हें इसके लिए नोबेल पुरस्कार मिला।

परंतु यह विचार केवल आधुनिक नहीं है। इसका बीज तो सनातन धर्म, योग और आयुर्वेद में हजारों वर्षों से विद्यमान है।ऑटोफैगी के विज्ञान का सिद्धांत कहता है जिसका शाब्दिक अर्थ है — स्वयं की कोशिकाओं द्वारा स्वयं की मरम्मत और सफाई। यह प्रक्रिया विशेष रूप से तब सक्रिय होती है जब व्यक्ति उपवास करता है या लंबे समय तक भोजन नहीं करता।

इसके लाभ में कैंसर कोशिकाओं का नाश , रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि, आयु वृद्धि और न्यूरोलॉजिकल रोगों जैसे अल्ज़ाइमर से बचाव होता है।

सनातन में उपवास का बहुत महत्व है और लगभग हर त्यौहार पर निराहार यानी उपवास करने की बात आए दिन होती रहती है। "लंघनं परम् औषधम्"। यह चरक संहिता रहती है। अर्थ: उपवास (लंघन) सबसे श्रेष्ठ औषधि है।

आयुर्वेद के अनुसार जब शरीर में दोष (विषाक्त पदार्थ) बढ़ जाता है, तो उपवास द्वारा शरीर उन्हें स्वयं भस्म कर देता है। यह वही प्रक्रिया है जो आधुनिक शब्दों में ऑटोफैंगी कहलाती है।

वहीं भगवद्गीता में संयम का योग गीता 6.16–17 कहता है "नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः । न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥ भावार्थ है योग उस व्यक्ति को प्राप्त नहीं होता जो न तो अत्यधिक खाता है, न ही जो बिल्कुल उपवास करता है। सफलता उसी को मिलती है जो संतुलित आहार-विहार और संयमित जीवन अपनाता है। इसका संकेत है कि समय-समय पर भोजन का त्याग और संयम शरीर और आत्मा दोनों के लिए हितकारी है।

तपस्या और देह शुद्धि के विषयमें भागवत पुराण में ऋषियों ने वर्षों तक भोजन के बिना तपस्या की, यह केवल आध्यात्मिक अभ्यास नहीं था, बल्कि शरीर को शुद्ध और रोगमुक्त रखने का भी साधन था। जैसे रुक्मिणी ने शिव को प्रसन्न करने हेतु उपवास किया। नचिकेता को यमलोक में तीन दिन बिना अन्न जल के बिताने पर वरदान स्वरूप ज्ञान प्राप्त हुआ।

योग और कायाकल्प के विषय में पतंजलि योग सूत्र "शौच संतोष तपः स्वाध्याय ईश्वरप्रणिधानानि नियमाः" (2.32)। यहां तपः (तपस्या) का अर्थ है। आत्मसंयम, उपवास, शरीर की साधना। यह शरीर को स्वस्थ और मन को स्थिर बनाता है।

मैं अपनी लिखो में बार-बार यह दावा करता हूं कि आधुनिक विज्ञान की समस्त खोजों की जड़ सनातन परंपरा में ही समाहित है। चाहे वह गणित हो चाहे वह बायोलॉजिकल साइंस हो और चाहे वह प्योर साइंस हो।

अब आप खुद देखें ऑटोफेंगी  में उपवास से कोशिकाएँ स्वयं की मरम्मत करती हैं । लंघनं परम् औषधम् सूत्र कहता है उपवास से शरीर शुद्ध होता है। इंटरमिडेंट फास्टिंग मतलब बीच-बीच में उपवास रखना। से कैंसर रोधी प्रभाव डालता है। वही सनातन में नियत उपवास, एकादशी व्रत, संकल्प युक्त तपस्या यही समझती है। डिटॉक्सिफिकेशन एंड लॉन्गीवीटी मतलब यह शरीर से विषैला पदार्थ निकालकर आयु को बढ़ाता है। सनातन समझता है आम शोधन, दोष नाश, कायाकल्प योग। मतलब क्या हुआ कि 2016 में नोबेल पुरस्कार हजारों वर्षों से ऋषियों का अनुभव-सिद्ध ज्ञान है। यह सिद्ध करता है आज जब विज्ञान यह प्रमाणित कर रहा है कि भोजन का त्याग यानी उपवास शरीर को पुनर्जीवित कर सकता है, तो यह न भूलें कि भारत की ऋषि-परंपरा ने यह सिद्धांत सहस्रों वर्ष पूर्व ही आत्मसात कर लिया था। व्रत, तप, संयम और योग। ये केवल आध्यात्मिक साधन नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और चिकित्सीय दृष्टि से भी लाभकारी हैं।

यदि हम सनातन के सिद्धांतों को केवल 'धार्मिक रस्म' न मानकर, वैज्ञानिक समझ से देखें, तो हमारे जीवन में रोग, तनाव और अव्यवस्था स्वतः ही कम हो जाएगी। यदि आप ग का संदर्भ चाहते हैं जैसा कि आज के पश्चिमी सिद्धांतों के पुजारी कुछ भारतीय सोचते हैं तो आप देख ले। चरक संहिता, भगवद्गीता, श्रीमद्भागवत पुराण, पतंजलि योग सूत्र और नोबेल फाउंडेशन रिपोर्ट।

इस लेख को आप अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाकर मेरे प्रयास को सफल बनाने में सहयोग करें कि मैं सिद्ध कर सकूं विश्व की कोई भी शोध सनातन साहित्य में निहित है और सारे सिद्धांत उसी से लिए गए हैं। आपका हमारा यह प्रयास भारत को एक बार फिर से विश्व गुरु बनाने में निश्चित रूप से सफल होगा।


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Reporter - Khabre Aaj Bhi

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