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लखनऊ : इंदौर हाईकोर्ट द्वारा सरकारी कर्मचारियों पर से आरएसएस के कार्यक्रमों में शामिल होने पर से हटे प्रतिबंध को सही ठहराते हुए आरएसएस को समाज सेवी और सद्भाव फैलाने वाला संगठन बताना और तत्कालीन सरकार द्वारा बिना तथ्यों के ही उस पर प्रतिबंध लगाने की बात कहना शर्मनाक है. यह न्यायापालिका में आरएसएस की हो चुकी खतरनाक घुसपैठ को दिखाता है जिसका विरोध समाज को करना चाहिए.
ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 155 वीं कड़ी में कहीं.शाहनवाज़ आलम ने कहा कि ऐसा फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश को गाँधी जी की हत्या की जांच के लिए इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा गठित जेएल कपूर कमिशन की रिपोर्ट पढ़नी चाहिए
जिसमे समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया और कमलादेवी चटोपाध्याय की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में दिये गए उस बयान का ज़िक्र है जिसमें इन्होंने कहा था कि गांधी की हत्या के लिए कोई एक व्यक्ति ज़िम्मेदार नहीं है बल्कि इसके पीछे एक बड़ी साज़िश और संगठन है. इस संगठन में इन्होंने आरएसएस, हिन्दू महासभा का नाम लिया था.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि आरएसएस के कई प्रमुख नेता कई बार कह चुके हैं कि वो भारतीय संविधान को बदलना चाहते हैं. पूर्व संघ प्रमुख के सुदर्शन ने तो देश की हर समस्या की जड़ ही संविधान को बताते हुए इसे खत्म कर देने की सार्वजनिक टिप्पणी की थी. इंदौर हाई कोर्ट के न्यायाधीश महोदय को बताना चाहिए कि क्या वो इस संविधान विरोधी टिप्पणी को सदभावना और देशभक्ति फैलाने वाला मानते हैं?
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस के आयोजनों में जाने की छूट देकर सरकार दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, पिछड़ों और महिलाओं के खिलाफ़ भेदभाव को संस्थागत रूप देना चाहती है. जो इन कमज़ोर तबकों को मिले संवैधानिक अधिकारों पर हमला है.
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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