अली हुसैन असीम बिहारी ;डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की तरह मुस्लिम पसमांदा आंदोलन के थे जनक

By: Khabre Aaj Bhi
Dec 05, 2020
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By.जावेद बिन अली

लखनऊ  : भारतीय इतिहास में भारत के मूल निवासियों में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जिस तरह अपनी इल्मी सलाहियत और मेहनत के कारण पूरी दुनिया में आंदोलनकारियों के लिए एक स्तंभन हैं । लेकिन अफसोस उसी जमाने में मुस्लिम पसमांदा समाज में जन्मे मौलाना अली हुसैन असीम बिहारी का जन्म १५ अप्रैल १८९०  और मृत्यु ६ दिसंबर १९५३ है ।वहीं दूसरी तरफ डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जन्म १४ अप्रैल १८९१  एवं उनकी मृत्यु ६  दिसंबर १९५६ मैं हुई थी। जिस तरह डॉक्टर अंबेडकर ने शिक्षित बनो ,संगठित बनो एवं संघर्ष करो जैसा हालात पैदा करने की कोशिश मौलाना अली हुसैन असीम बिहारी ने भी आरंभ किया था । उनकी ६दिसंबर की जयंती पर पूर्व डीजीपी एम डब्लू अंसारी आईपीएस से जानने का प्रयास किया है।

प्रश्न १.मौलानाअली हुसैन असीम बिहारी ने किस तरह मुस्लिम समाज को जागृत करने का प्रयास किया ? 

उत्तर १.मौलाना अली हुसैन असीम बिहारी जब वर्ष १९०६ मैं १६ वर्ष की आयु में उषा कंपनी कोलकाता में नौकरी से अपनी जिंदगी आरंभ करने वाले ने समाज के अंदर बड़े बूढ़े लोगों की तालीम के लिए एक ५ वर्षीय १९१२ से १९१७ तक योजना बनाकर काम शुरू किया था । वर्ष १९१४  में २४ वर्ष की आयु में मोहल्ला खास गंज, बिहार शरीफ, जिला नालंदा में बजमेंअदब नामक संस्था के माध्यम से पुस्तकालय का संचालन आरंभ कर दिया। वर्ष १९१८ में कोलकाता में दारुल मुजाकरा नामक एक अध्ययन केंद्र की स्थापना किया! जहां मजदूर पैसा नौजवान और दूसरे लोगों को एकत्रित करके पढ़ने लिखने से लेकर सामाजिक हालात तक का चर्चा क्या करते थे! पूर्ण रूप से गरीब और असहाय लोगों में काम करने का उनका मकसद था lऔर उन्हें समाज के पटल पर रखने का काम किया था !जिस तरह अंबेडकर ने शिक्षा, संगठित और संघर्ष के लिए अपने लोगों से आह्वान किया था । उसी तरह मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी ने किया था। 

प्रश्न : मौलाना आसिम बिहारी का महात्मा गांधी से क्या संबंध थे ? 

उत्तर : महात्मा गांधी के साथ लाहौर से लेकर ढाका तक तमाम अहम मीटिगो में उनके साथ साथ तकरीर क्या करते थेl lहालत तो यह थी lवक्त के पाबंद इस कदर थे जिस तरह अंबेडकर ने अपने 4 बच्चों को समाज और देश के लिए कुर्बान कर दिया था । उसी तरह मौलाना आसीन बिहारी ने भी ९ जुलाई १९२३ को बिहार में संगठन जमीयतुल मोमिनीन के स्थानीय बैठक में जाना अधिक मुनासिब समझा । जबकि घर में मौजूद ६ महीने १९ दिन का कमरुद्दीन बेटे की मौत को छोड़कर संगठन मैं जाकर लगभग 1 घंटे तक समाज की दशा और दिशा पर निहायतही प्रभावशाली भाषण दिया थाl जिससे लोगों में जागरूकता की लहर दौड़ गई थी।

सन १९१९ में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद लाला लाजपत राय ,मौलाना आजाद आदि जैसे लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था तो उन्होंने एक राष्ट्रव्यापी पोस्टल प्रोटेस्ट के माध्यम से वॉइसरोए भारत और रानी विक्टोरिया को लगभग डेढ़ लाख टेलीग्राम और पत्र पूरे भारत के गांव और शहर से भिजवा कर छुड़वाने का काम किया था ।

नंबर ३ : डॉक्टर अंबेडकर की तरह मुस्लिम समाज में उनका नाम क्यों नहीं है ?

उत्तर : आजादी के बाद भारतीय मुसलमान भारत के मोहब्बत में रहा तो जरूर गया !लेकिन अपने आप को कमजोर महसूस करने लगा ! इस्लाम मस्जिद नबवी से फैलाया गया और तमाम समस्याओं का निदान किया गया हो । उसने आजादी के बाद भारत में मिलाद शरीफ के जलसे में लिखना आरंभ कर दिया कि इस जलसे का सियासत से कोई संबंध नहीं है। भारत के तमाम बड़े लोग पाकिस्तान चले गए और भारत में मनुवादी इस्लाम बन गया। जिसके कारण आजादी की लड़ाई में भारत के मूल निवासियों की अधिक भूमिका थी। इसलिए अंग्रेजों ने इनसे जमीन छीन ली और बड़े-बड़े जमीदारों को जमीन दे दिया जो जमीदार बच्चे भी मनुवादी वादी व्यवस्था ने हमारे नाम को दबा दिया। गांधी के हत्यारे को पूरा भारत जानता है । महात्मा गांधी की जान की रक्षा करने वाले बत्तख मियां अंसारी, झारखंड का टीपू सुल्तान भिखारी अंसारी जिसे १८५८ में फांसी देकर चिल कौवा से लाश को खिला दिया गया था !उसे कोई नहीं जानता है! और इसकी जिम्मेदार हम खुद हैं! मिनिस्टर,एमपी तो बन गए लेकिन अपने इन बहादुरों का नाम लेना तक उचित नहीं समझा ६ अप्रैल को उनकी मृत्यु हुई थी इनकी कब्र इलाहाबाद मोमिन कॉन्फ्रेंस,पसमांदा समाज आदि कई दर्जन संगठन सिर्फ सौदा करने के लिए होते हैं । 


Khabre Aaj Bhi

Reporter - Khabre Aaj Bhi

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