संविधान बदलने की कोई भी कोशिश देश बर्दाश्त नहीं करेगा- शाहनवाज़ आलम

By: Khabre Aaj Bhi
Aug 18, 2023
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बिबेक देबरॉय को बर्खास्त करे मोदी सरकार

सर्वोच्च न्यायालय को स्वतः संज्ञान ले कर संविधान बदलने की कोशिशों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए

लखनऊ : आरएसएस शुरू से ही सबको समानता का अधिकार देने वाले संविधान का विरोधी रहा है। पीएम मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने इसी मंशा से हाल में नये संविधान की ज़रूरत बताने वाला लेख लिखा है। बिबेक देबरॉय का अपने पद पर बने रहना संविधान में यक़ीन रखने वाले हर भारतीय और हमारे स्वतंत्रता आंदोलन का अपमान है। ये बातें अल्पस्यंखक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहीं।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि देश ने 26 नवम्बर 1949 को संविधान को अंगीकार किया जिसके चार दिन बाद 30 नवंबर 1949 को आरएसएस ने अपनी पत्रिका ऑर्गनाइज़र में संविधान का विरोध कर उसकी जगह मनुस्मृति लागू करने की मांग की थी। 

वहीं हिंदुत्व की विचारधारा से जुड़े तत्वों ने जाति के कारण संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बाबा साहब का विरोध किया था। उन्होंने कहा कि सत्ता में आने के बाद 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भी संविधान की समीक्षा करने के लिए आयोग बना दिया था। लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं होने के कारण सरकार को पीछे हटना पड़ा था। 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि पूर्ण बहुमत में आने के बाद 2014 से ही मोदी सरकार समता मूलक संविधान को बदलने की साज़िश रच रही है। इसी उद्देश्य से 2015 के स्वतंत्रा दिवस के दिन सरकारी विज्ञापनों में प्रस्तावना की पुरानी तस्वीर प्रकाशित कराई गयी जिसमें समाजवाद और पंथनिरपेक्ष शब्द नहीं थे। जिस पर विरोध के बाद उसे भूल बता दिया गया। आगे इसी उद्देश्य से राज्य सभा में दो बार भाजपा सांसदों द्वारा संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और सेकुलर शब्द हटाने की मांग वाले प्राइवेट मेंबर बिल भी पेश करवाये गये। जिसे संविधान के विरुद्ध जाते हुए राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश सिंह ने स्वीकार भी कर लिया। जबकि सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि संसद भी संविधान की प्रस्तावना में कोई बदलाव नहीं कर सकती। 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि प्रधान मंत्री के आर्थिक सलाहकार द्वारा संविधान बदलने के लिए दिए जा रहे सुझावों को संयोग या उनका निजी विचार नहीं समझा जाना चाहिए। यह मोदी सरकार की मंशा को ही अभियवक्त करता है। क्योंकि पिछले हफ़्ते ही बाबरी मस्जिद मुद्दे पर फैसला सुनाने वाले पर्व मुख्य न्यायाधीश और राज्य सभा सांसद रंजन गोगोई ने भी सार्वजनिक तौर पर कहा था कि संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन पर बहस होनी चाहिये। 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि संविधान बदलने की कोशिशों के तहत ही पूजा स्थल अधिनियम 1991 को बदलने का माहौल बनाने के लिए देश भर की अदालतों में मस्जिदों को मन्दिर बताने वाली याचिकाएं डलवाई जा रही हैं। जिस पर आश्चर्यजनक रूप से सर्वोच्च न्यायपालिका चुप्पी साधे दिख रही है। जबकि ये सभी पूजा स्थल अधिनियम 1991 के विपरीत और सुप्रीम कोर्ट के अपने फैसलों के भी खिलाफ़ है। शाहनवाज़ आलम ने कहा कि संविधान बदलने की इन कोशिशों पर सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान ले कर अपना स्टैंड भी स्पष्ट कर चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि संविधान बदलने की कोई भी कोशिश देश बर्दाश्त नहीं करेगा। 




Khabre Aaj Bhi

Reporter - Khabre Aaj Bhi

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