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इतिहास के पन्नों में भी दर्ज है 'उन्मत्त भैरव' का यह मंदिर
By : मयंक कश्यप
वाराणसी :रोहनिया काशी एक ऐसी नगरी जो धर्म और आस्था का केन्द्र है, जहाँ आकर सभी के मन को विश्राम मिलता है,उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर बसी काशी का स्वरुप अर्धचन्द्राकार है। जिस प्रकार भगवान् शिव के मस्तक पर अर्धचन्द्र विराजित है उसी प्रकार पृथ्वी के मस्तक पर काशी सुशोभित है। इस अर्धचन्द्र की दूरी पंचक्रोश की है! काशी रहस्य जो की ब्रह्म्वैवर्त्य पुराण के अंतर्गत आता है। जिसमे बताया गया है कि यह पंचक्रोश का आकार भगवान् शिव का ज्योतिर्लिंग है , जिसकी पवित्र प्रदक्षिणा की परम्परा अत्यंत प्राचीन है!
पुरातत्व 'उन्मत्त भैरव' मंदिर का हुआ 'जीर्णोद्धार'
काशी के पंचकोशी परिक्रमा मार्ग पर स्थित देउरा गांव में ऐतिहासिक व पौराणिक पुरातत्व 'उन्मत्त भैरव' मंदिर स्थित है। जो विशाल दुधिया तालाब से सटा हुआ है और लगभग 100 वर्ष पुराना एक विशाल पीपल का वृक्ष भी है। आंध्र प्रदेश निवासी चंद्रकला अम्मा के द्वारा काशी के पंचकोशी परिक्रमा मार्ग पर स्थित दर्जनभर से ज्यादा ऐतिहासिक मंदिरों का जीर्णोद्धार कर चुकी हैं। स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार चंद्रकला अम्मा के द्वारा पंचकोशी परिक्रमा के प्रथम व द्वितीय पड़ाव के बीच स्थित पुरातत्व उन्मत्त भैरव मंदिर का जीर्णोद्धार अम्मा द्वारा भव्य तरीके से करवाया गया है। लगभग तेरह लाख रुपए की लागत खर्च के बाद उन्मत्त भैरव का मंदिर भव्य व मनमोहक रूप के साथ मंदिर प्रांगण का दृश्य अब देखने लायक है।
क्या कहती हैं चंद्रकला अम्मा
आंध्र प्रदेश निवासी चंद्रकला उर्फ अम्मा ने बताया कि उनके द्वारा लगभग दर्जनभर से भी ज्यादा ऐतिहासिक व पौराणिक मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया है। उन्होंने बताया कि प्रभु के प्रति उनकी श्रद्धा है जिसके कारण वह यह कार्य करती हैं। उनके इस कार्य में किसी भी एनजीओ और ट्रस्ट का कोई भी योगदान नहीं है। और अभी हाल ही में उन्होंने काशी से पंचकोशी मार्ग पर स्थित पुरातत्व उन्मत्त भैरव मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार किया है। उन्होंने यह भी बताया कि आठ अष्ट भैरव में से चौथे नंबर के उन्मत्त भैरव है। मंदिर पूरी तरह से बनकर और साज सजावट के साथ तैयार है। मंदिर के उद्घाटन के पश्चात भव्य भंडारे का आयोजन भी किया गया है।
क्या कहते हैं स्थानीय लोग...?
स्थानीय देऊरा गांव के ही निवासी शैलेंद्र पांडे व राजकुमार पाल ने बताया कि काशी के पंचकोशी परिक्रमा मार्ग पर ही हमारा गांव देउरा स्थित है। और हमारे ही देउरा गांव में ऐतिहासिक पुरातत्व उन्मत्त भैरव का मंदिर स्थित है। बचपन से ही हम सभी लोग मंदिर से सटे हुए ऐतिहासिक व पौराणिक दुधिया तालाब में स्नान करने के बाद उसी तालाब का जल लेकर उन्मत्त भैरव मंदिर और विशाल पीपल के वृक्ष में आज भी जल देते हैं। इसके अलावा शैलेंद्र पांडे ने बताया कि दूधिया तलाब का नाम दूधिया तालाब इसलिए पड़ा की उस विशाल कुंड का जल एकदम दूध की तरह सफेद था। इसीलिए यह तालाब दुधिया तालाब के नाम से जाना जाने लगा।
चंद्रकला अम्मा ने परिक्रमा कि दूरी और विश्राम स्थल (पड़ाव ) के बारे में बताया
उन्होंने बताया कि यह यात्रा 25 कोष में पूरी कि जाती है। इस यात्रा में कुल 5 विश्राम स्थल अथवा पड़ाव हैं। ये पांचों पड़ाव महत्वपूर्ण स्थल (मंदिर) हैं, पंचक्रोशी यात्रा में दक्षिणअवर्त रूप से परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा करते समय सारे मंदिर दाहिने तरफ मिलते हैं और धर्मशालाएं बायीं तरफ क्योंकि धर्मशालाओं में जो यात्री निवास करते हैं वे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं, और नित्य कर्म के लिए भी जाते हैं, इसलिए धर्मशालाए बायीं ओर ही बनाई गई हैं। इन धर्मशालाओं में लगभग 25000 यात्री निवास कर सकते हैं। प्रत्येक पड़ाव के पास एक जलकुंड या जल श्रोत भी है| जिसमे यात्री स्नान कर पूजन दर्शन करते हैं। पंचक्रोशी यात्रा के दौरान 108 शिवलिंग, 56 मंदिर, 11 विनयक, 10 अन्य शिव मंदिर, 10 देवी, 4 विष्णु, 2 भैरव, और 14 अन्य देव जिनका यात्रा के दौरान दर्शन पूजन का विधान है।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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