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बारा : (गाजीपुर) रमजान का महीना शुरू होतें ही जहाँ रोजेदार रोजा रखने की तैयारी में जुट जाते हैं, वही मस्जिदों में तराबीह पढने का सिलसिला जारी हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों की मस्जिदों में इबादतगार रमज़ान के पुरे महीने लोग इबादत करते हैं। रमज़ान के महीने में वैसे तो पुरा महीना ही इबादत का होता है। मुस्लमान जहाँ रोजा रखता है, वही तिलावत के साथ ही एक माह तक तराबीह व शुरेतराबीह का दौर चलता है। शनिवार की रात बारा गांव स्थित मझली पट्टी मोहल्ला की मस्जिद सहित ज्यादातर मस्जिदों में तराबीह की नमाज़ खत्म हो गई है। बारा मझली पट्टी मस्जिद में कारी नूर मोहम्मद नूरी ने कौम व मुल्क की खुशहाली के लिए दुवा कि रमजान में की गई इबादतों का सवाब आम दिनों की अपेक्षा 72 गुना अधिक सवाब मिलता है।रमजान में दिल लगाकर इबादत करना चाहिए उन्होंने कहा कि तराबीह के दौरान पूरी कुरान सुनाना सुनाना दोनों सुन्नते मौकदा हैं। मुसलमान को गाफिल नहीं होना चाहिए। हालांकि उन्होंने लोगों को हिदायत करते हुए कहा कि एक कुरआन मुकम्मल होने को लोग खत्म तराबीह न समझे बल्कि पूरे रमजान तराबीह पढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि बहुत से लोंग पहला दौर पूरा होने के बाद कतराने लगते हैं।जो बेहद गलत हैं।ईद के चांद का दीदार होने तक तराबीह का सिलसिला जारी रहना चाहिए। बारा गांव मझली पट्टी मस्जिद के पेश इमाम हाफिज मोहम्मद शाह आलम खान ने बताया कि जिन मस्जिदों में तराबीह खत्म हो गई है, वहाँ पर शुरेतराबीह की नमाज़ अदा की जाती है। अल्लाह ने इबादत के लिए ही हमें दुनिया में भेजा है। हम मोमिन पर रोजा नमाज़ हज , जकात , फितर फर्ज है। वक़्त को देखते हुए कुछ मस्जिदों में जल्द तराबीह खत्म कर दी जाती है। हमें पुरा महीना नमाज़, रोजा के साथ ही पुरे रमज़ान में इबादत किया जाता है।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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