अम्बेडकर को ही शर्मीदा कर रहे हैं अंबेडकरवादी

By: Khabre Aaj Bhi
Sep 01, 2021
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by: विनय कुमार 

समसातरहर, बहराइच : भारतीय संस्कृति, भारतीय संविधान और तोड़क भारतीय जाति व्यवस्था में भारत रत्न डॉ भीम राव अंबेडकर का अस्मरणिय, अतुलनीय और अभूतपूर्व योगदान रहा है। आज भारत में दलित समाज डॉ अम्बेडकर को अग्रणी, पूज्यनीय और मार्गदर्शक के रूप में याद कर आगे बढ़ रहा है और अपने हक अधिकार के लिए तरह-तरह के जागरूकता अभियान, सामाजिक आंदोलन, संगोष्ठी, संस्कृति कार्यक्रम आदि-आदि कर रहा है तथा भारत के तमाम गलियारों में पंचशील, अंबेडकर प्रतिमा, बुध्द प्रतिमा घरों से लेकर चौक चौराहे पर देखने को मिल सकता है। जिन घरों में प्रतिमा, झंडे लगे हैं वो लोग अम्बेडकरवादी और जिनके घरों में नहीं है उनको अ-अंबेडकरवादी या ब्राह्मणवादी। ये एक ही घरों में या एक ही परिवार या एक ही समाज में अक्सर देखने को मिल रहा है। चाहे बेशक शिक्षा से वंचित रहे हों। जय भीम बोलने वाला ही अम्बेडकरवादी हैं अन्यथा के तौर पर अअम्बेडकरवादी या ब्राह्मणवादी हैं। गाड़ियों, हांथों, ब्रेसलेट, लॉकेट, टी शर्ट आद-आद पर अम्बेडकर लगाना या पहनना ही अअम्बेडकरवाद है बाकी किसी भी प्रकार से आप अम्बेडकरवादी  साबित ही नहीं कर सकते। आज ऐसी ही धारणा दलित समाज में  पनपती जा रही है। 


कहना चाहूंगा कि जिस अंबेडकर को अम्बेडकर वादियों ने अपना मसीहा समझ ये ढोंग या दिखावा कर रहे हैं वो अम्बेडकर निश्चित तौर पर एक प्रकार से मृत्यु से ही नहीं धरा पर से भी विलुप्त हो गए थे । परन्तु जब-जब सूर्यास्त हुआ है तब-तब सूर्यउदय भी हुआ है। ऐसे ही अंधेरे में प्रकाशमान अछूतों का जननायक  कांशीराम का उदय हुआ जो न सिर्फ अम्बेडकर को जिंदा कर धरा पर वापस लाये अपितु बहुजन समाज की जड़ों को और स्‍थाई कर गए। भारत में दलित राजनीतिक का बीजारोपण हुआ जिस वृक्ष के नीचे आज बहुजन समाज शीतल हो रहा है।जिसके लिए डॉ अंबेडकर  बार-बार दलितों को अगाह करते  रहते थे कि बिना राजनीति सत्ता में आए अपना अधिकार अछूतों को कभी हासिल नहीं हो सकता। भारतीय इतिहास में इतना बड़ा और कड़ा संघर्ष अम्बेडकर और कांशीराम ने अछूत होकर अछूतों के लिए किया। पर क्या? ये दलित/अछूत नहीं थे।क्या? इन महान हस्तियों ने कभी किसी प्रकार का व्यक्तिगत रूप से छल्ला, फोटो लगे कपड़े, जय भीम, पंचशील आदि-आदि लगकार प्रचार प्रसार किया।

आज तक मेरे जीवन काल में कांशीराम की कोई फोटोग्राफी नहीं दिखी जो इस प्रकार का वस्त्र या वस्तु धारण किया हो जिसमे अंबेडकर इंगित हों जैसा कि आज लोग कर रहे हैं। इनके साथ और पास इतनी प्रबल विचारधारा ही थी कि जिस दिशा में निकले जनशैलाब उमड़ता गया दलित चेतना फैलती गई, चाहे अम्बेडकर चले या फिर कांशीराम।आज के दौर में अतिश्योक्ति इस बात की है कि दोनों अछूत विभूतियों को जिन्होंने हमे सछुत बना दिया, जिन्होंने दलितों को पशुओं से मानव बना दिया, जिनके बल पर आज तमाम पार्टीयां बन रहीं हैं,जिनके नाम पर आज तमाम संगठन बन रहे हैं, न तो अम्बेडकरवाद जान पा रहे हैं और न ही जानने की कोशिश  कर रहे हैं। उनको, उनके विचारों को, उनकी महत्वाकांक्षा को अध्ययन करने के बजाय पढ़ी लिखी अधिकतर पीढ़ी किसी ऐसे ही अम्बेड़करवादियों की सुन कर या देखकर पीछे लग जा रहीं हैं जो अभी न तो संगठित हुए हैं और न ही अनुशासित हुए हैं।


जिसका खामियाजा तमाम प्रकार के सरकारी/पूलिसिया उत्पीड़न का शिकार होते जा रहे हैं जिसके एवज में मोटी रकम या संगीन धाराओं में मुकदमा का उपहार मजबूरन स्वीकार करना पड़ रहा है।जब तक आप अध्ययन नहीं करेंगे, शब्द कोष को मजबूत नहीं करेंगे अपनी कार्यप्रणाली में गंभीरता नहीं लाएंगे, अनुशासित नहीं होंगे अंबेडकरवाद कदाचित् अपनी पीढ़ी को आगे अग्रेसित कर पाएंगे। अम्बेडकर और कांशीराम दोनों ने बड़ी सरकारी प्रतिष्ठा को पाया संघर्ष झेला प्रताड़ित हुए संगठित हुए फिर संगठित किए उम्र गुजरने तक प्रताड़ित होते रहे जिससे वह कायदे कानून के साथ साथ कड़ी सीखलाई और अनुभव प्राप्त किये फिर आंदोलित हुए कारवाँ खड़ा किया जिसका परम सुख आज दलित समाज भोग रहा है। आज की युवा पीढ़ी के पास न तो बहुत तजुर्बा है न ही कोई सरकारी संघर्ष और न ही सामाजिक संघर्ष के साथ साथ कानूनविद हैं पर वोअदा बड़ा बड़ा है। परिवर्तन हेकड़ी, लाठी डंडा, बंदूक, फोटो, मूर्ति आदि से नहीं हो सकता और अल्प समय के लिए पा भी लिए तो कदाचित दूरगामी नहीं हो सकता। इसलिए भारत के दलितों अगर आप परिणाम दूरगामी चाहते हों तो वृक्ष अंबेडकर, कांशीराम और मायावती वाला बनो न कोई तोड़ पाएगा और न ही कोई मिटा पाएगा।


Khabre Aaj Bhi

Reporter - Khabre Aaj Bhi

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