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विडंबना : उच्च शिक्षाधारियों के डिग्रीयों की अस्मिता पर लगा प्रश्नचिन्ह, आये दिन बढ़ती महंगाई से और परेशान हो रहे शिक्षित बेरोजगार, सरकारें व सत्ताधारी दल बने बेखबर
BY:शिवप्रसाद अग्रहरि
जौनपुर: बेरोजगारी का दर्द क्या होता है यह तो एक बेरोजगार व्यक्ति ही बता सकता है जो आये दिन रोजगार कार्यालयों के चक्कर काटते हुए अपने योग्यता अनुरूप रोजगार की तलाश करता रहता है, फिर भी उसे सफलता नही मिलती। इसके अलावा वह विभिन्न अखबारों के वर्गीकृत विज्ञापनों में भी ढूढता है। थक हारकर बाद में बैठ जाता है। आज सरकारी नौकरियों का हाल यह है कि "एक अनार सौ बीमार" जिसे पाने के लिए हर कोई एड़ी चोटी तक का जोर लगा दे रहा है। समस्या जटिल है क्योंकि बेरोजगारी किसी भी देश के विकास में बाधक बन जाती है। स्वाभाविक सी बात है कि एक शिक्षित बेरोजगार व्यक्ति को अगर समय पर उनके योग्यता के अनुरूप नौकरी नही मिलती है तो वह बाद में घर-परिवार का ताना सुनता है व समाज में उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाने लगता है। वैसे तो हमारे देश व प्रदेश के सत्ताधारी राजनीतिक दलों के जिम्मेदार राजनेतागण चुनाव के दौरान युवाओं के बीच खूब लोक लुभावनी बातें करते है लेकिन जब उसे पूरा करने का समय आता है तो बैक फुट पर हो जाते है। जैसे उन्होंने आमजनमानस को कोई आश्वासन ही नहीं दिया हो।
हमारे देश में आज महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा व लोगों की सुरक्षा के सवाल पर सिर्फ ज्यादातर राजनीति होती है। आज विडंबना यह है कि उत्तर प्रदेश में तमाम ऐसे शिक्षित युवा बेरोजगार सरकारी नौकरी की आस में सरकार की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं लेकिन नौकरी ही नहीं निकल रही है। एक तो बेरोजगारी की समस्या से वह तो पहले से त्रस्त है अब दूसरी तरफ महँगाई डाइन उनको खाये जा रही है। महंगाई का आलम यह है कि उसकी रफ्तार थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। ना जाने कितने शिक्षित बेरोजगार सरकार की नौकरी का इंतजार करते - करते कोई परदेश चला गया तो कोई ऑटो चलाने लगा, तो कोई छोटा-मोटा धंधा व्यवसाय आदि खोलकर अपनी आजीविका चलाने में जुट गया। क्योंकि इस महंगाई से अगर निजात पाना है और जीवन यापन करना है तो कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा। कुछ तो ऐसे भी है जो कि नौकरी का इंतजार करते-करते उनकी उम्र सीमा जो कुछ बचा था वह भी खत्म हो गया, अब उन्हें प्राइवेट जॉब के सिवा सरकारी नौकरी नही मिल सकती।
आज बीए, बीएससी, एमए, बीकॉम, एलएलबी, बीएड आदि पढ़ाई कर डिग्री प्राप्त किये हुए लोग ज्यादातर बेकार पड़े हैं, अर्थात उन्हें योग्य रोजगार नही मिल सका है। जिसमें से कुछ तो परदेश जाकर कोई रिक्शा चला रहा है, कोई नौकरी कर रहा है, कोई चक्की चला रहा है, कोई साग-सब्जी व फल का धंधा कर रहा है तो कोई किराना की दुकान चला रहा है। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि आज सरकारें सर्व शिक्षा अभियान का नारा देती है लेकिन जो बच्चे पढ़ लिखकर योग्य बन रहे है उनके लिए जॉब की व्यवस्था होना भी तो जरूरी है नही तो उन तमाम डिग्रीयों की अस्मिता पर प्रश्नचिन्ह लग जायेगा, जिन्हें आज हमारे प्रदेश व देश के युवा बेरोजगार लेकर ढो रहे है। अगर बेरोजगारी का यही हालत रहा तो एक दिन उन तमाम बेरोजगारों को अपनी सही योग्यता भी दूसरे को बताने में शर्म महसूस होगी, जिन्हें उनके योग्यता अनुरूप आज तक काम नही मिल सका है।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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