रमजान के पहले अशरे में नाजिल होती है अल्लाह की रहमत

By: Khabre Aaj Bhi
Apr 20, 2021
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भेलसर : वैसे तो रमजान शरीफ़ का पूरा महीना मोमिनों के लिए खुदा की तरफ से अजमत,रहमत और बरकतों वाला है।लेकिन अल्लाह पाक ने इस मुबारक महीने को तीन अशरों में तक्सीम किया है।रमज़ानुल मुबारक का पहला अशरा खुदा की रहमत वाला है इस पहले अशरे के १० दिनों तक अल्लाह की रहमतों से सभी सराबोर होते रहेंगे औऱ एक रमज़ान से १० रमजान तक के पहले अशरे में अल्लाह पाक की रहमत नाजिल होती है।

पूरे रमजान महीने को ३ अशरों में बाँटा गया है।रमजान के पहले दस दिनों को पहला अशरा,दूसरे दस दिनों को दूसरा अशरा और आखिरी दस दिनों को तीसरा अशरा कहा जाता है।पहले रोजे से १० वें रोजे तक पहला अशरा,११ वें रोजे से २० वें रोजे तक दूसरा अशरा और २१ वें रोजे से ३० वें रोजे तक तीसरा अशरा।

पैगंबर इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सलल्लाहो अलैहे वसल्लम की एक हदीस है जिसका मफूम है कि रमजान का पहला अशरा रहमत वाला है,दूसरा अशरा अपने गुनाहों की मगफिरत(माफी)माँगने का है और तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह(आज़ादी)चाहने वाला है।रमजान के पहले अशरे में अल्लाह की रहमत के लिए ज्यादा से ज्यादा इबादत की जानी चाहिए।इसी तरह रमजान के दूसरे अशरे में अल्लाह से अपने गुनाहों की रो-‍रोकर माफी माँगनी चाहिए।रमजान का तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह (आज़ादी( माँगने का है।

रमज़ानुल मुबारक वक्त की पाबंदी का अभ्यास कराता है :इंजीनियर सरफ़राज़ नसरुल्लाह

इंजीनियर सरफ़राज़ नसरुल्लाह ने कहा कि रमजान का हर हर पल बहुत ही महत्व रखता है रमजान वक्त की पाबंदी का अभ्यास कराता है।रमजानुल मुबारक के मुकद्दस माह में सही वक्त पर नमाज अदा करना,सही वक्त पर तिलावत करना,सही वक्त पर इफतार करना,सही वक्त पर सहरी करना और सही वक्त पर सोना और सही वक्त पर जागना ये सब इबादत है।उन्होंने कहा कि इस अभ्यास को शेष ग्यारह माह मे भी चलाना चाहिए।उन्होंने आगे बताया कि रोजा ही एक ऐसी इबादत है जिसमे सीधा अल्लाह ताला से इन्सान का सम्पर्क होता है।क्योंकि अगर कोई नमाज पढ़ रहा है तो दूसरा आदमी देख रहा है।जकात दे रहा है तो इसमें भी एक हाथ देता है लेने वाला दूसरा हाथ सामने रहता है।: रोजा व नमाज में अल्लाह और रोजेदार के अलावा तिसरा कोइ नही जानता है की अल्लाह से क्या वार्ता हुई उन्होंने कहा की रमजान में नहीं बल्कि हमेशा कुरान शरीफ खूब तिलावत करनी चाहिए।नफिल नमाज पढ़नी चाहिए।सारी बुराइयों से दूर रहना चाहिए।यह महीना ऐसा है जो आदमी को आदमी से मिलाते हुए ग्यारह महीनों तक लगातार नेक काम करने बुराई से बचने का अभ्यास कराता है.

रमजाननुल मुबारक के महीने में वक्त की पाबंदी खुदा का नायाब तोहफा है।रमजानुल मुबारक में मुसलमानों की दिनचर्या ही बदल जाती है।वैसे तो रोजाना पांच वक्त की नमाज पढ़ना हर मोमिन के लिए फर्ज है लेकिन इस महीने की फजीलत ही कुछ अलग है।इस महीने में मुसलमान रोजा रख रहे हैं और पाबंदी से पांच वक्त की नमाज के आलावा तरावीह की नमाज भी अदा करते हैं।रोजा पूरे एक माह हमें अभ्यास कराता है कि साल के शेष ग्यारह माह हमें किस प्रकार गुजारनी चाहिए।


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Reporter - Khabre Aaj Bhi

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