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२७ मार्च तक नई सूची जारी करने व २५ मई तक चुनाव संपन्न कराने का हाईकोर्ट ने दिया निर्देश
by : शिवप्रसाद अग्रहरि
जौनपुर : उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव को लेकर सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद से स्थिति पूरी तरह से बदल गई है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले के बाद से अब पंचायत चुनाव कराने में और समय लगेगा। वहीं कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया है कि 25 मई तक नई व्यवस्था के तहत पंचायत चुनाव कराए जाएं। कोर्ट के इस फैसले से जहां कई लोग खुश है तो कई लोग दुखी हैं क्योंकि कई ग्राम पंचायतों के समीकरण भी अब बदल जाएंगे।
बता दें कि इस संबंध में अजय कुमार ने राज्य सरकार के ११ फरवरी २०११ के शासनादेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि इस बार की आरक्षण सूची १९९५ के आधार पर जारी की जा रही है, जबकि २०१५ को आधार वर्ष बनाकर आरक्षण सूची जारी की जानी चाहिए। इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अंतिम आरक्षण सूची जारी किए जाने पर रोक लगा दी थी।
याचिकाकर्ता का कहना है कि साल १९९५ के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था से जहां सामान्य सीट होनी चाहिए थी, वहां पर ओबीसी कर दिया गया और जहां ओबीसी होना चाहिए, वहां एससी के लिए आरक्षित कर दी गई है। इससे चुनाव लड़ने वालों में निराशा है। लिहाजा शासनादेश को रद्द कर वर्ष 2015 के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।
मंगलवार को आधी रात के बाद जारी सरकारी बयान के अनुसार, मंत्रिपरिषद ने उत्तर प्रदेश पंचायत राज (स्थानों और पदों का आरक्षण और आवंटन) नियमावली, १९९५ में संशोधन करते हुए उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में आरक्षण को अंतिम रूप देने के लिए २०१५ को आधार वर्ष के रूप में रखने का फैसला किया है। मंत्रिपरिषद से अनुमोदित नियमावली आगामी सामान्य पंचायत चुनाव में लागू की जाएगी। इधर गांवों में पंचायत चुनाव को लेकर अपना-अपना भाग्य आजमा रहे प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ गई है।
क्योकि हाई कोर्ट के आदेश के बाद आरक्षण की सूची में फेर बदल कर नई आरक्षण सूची जो जारी होगी उसमें कई लोगों का गुणा-गणित बिगड़ सकता है।फिलहाल पंचायत चुनाव में इस समय लेटलतीफी भी की जा रही है।जबकि दिसम्बर माह में ही प्रधानों,ब्लॉक प्रमुखों आदि का कार्यकाल पूरा हो चुका है।समय से चुनाव हो जाने से ग्रामीणों को भी काफी कुछ सहूलियत मिल सकेगी,जिसे देखते हुए पंचायत चुनाव को अतिशीघ्र पूरा कराने का सरकार व संबंधित उच्चाधिकारियों को फैसला लेना चाहिए।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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