शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में विशेष : शिक्षक राष्ट्र का मेरुदण्ड होता है !

By: Khabre Aaj Bhi
Sep 05, 2020
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by :  रामकेश एम. यादव (कवि, साहित्यकार )

मुंबई : गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम् और पवित्र हिस्सा है जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण हमारे इतिहास में दर्ज है। समाज और राष्ट्र के शिल्पकार कहे जानेवाले सभी शिक्षकों को इस शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर यह कृतज्ञ राष्ट्र  ढेर सारी शुभकामनायें और बधाइयाँ देता है।  यद्यपि इस दिन का महत्त्व इसलिए है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन यानी 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन गुरु पूजा का दिन होता  है। अपने देश में मनाने के साथ दुनिया के सौ देशों से अधिक देशों में मनाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए संत कबीरदास जी कहते हैं कि -

गुरु - गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पांय। 

बलिहारी गुरु अपने गोविन्द दियो बताय। 

इस दोहे के माध्यम से भगवान से बड़ा दर्जा गुरु को दिया गया है। इसी तरह एक श्लोक में गुरु को ब्रह्मा  विष्णु और महेश का दर्जा देते हुए साक्षात् परब्रह्म  बताया गया है -

गुरुर्ब्रह्मा  गुरुर्विष्णु  गुरुर्देवो   महेश्वरः। 

गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः। 

इस तरह गुरु - शिष्य की परंपरा हमारे देश में युगों - युगों से चली आ रही है। इन्हीं सब आदर्शों, मान्यताओं के चलते देश विश्व गुरु भी बना। 

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में वस्तुस्थिति समय के साथ करवट ली। आज दुनिया मंगल - चाँद पर अपनी बस्तियाँ बसाने के खाके तैयार करने में मशगूल है। तरह -तरह की अनुसंधान संस्थाएं इस पर काम भी कर रही हैं। भारत का इसरो तथा अमेरिका का नासा इसके उदाहरण हैं जो तरह - तरह के सैटेलाइट या मिशन भेजकर अंतरिक्ष को समझ रहे हैं। इस तरह भारत की स्पेस एजेंसी इसरो के संस्थापक विक्रम सारभाई के सपने को साकार करने के लिए तथा विश्व स्पेस- स्पर्धा का  टक्कर देने के लिए भारत के प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों में लगन और जज्बे को सलाम करना चाहिए।  इस तरह आधुनिक युग में एक शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है। शिक्षक वह पथ - प्रदर्शक होता है जो हमें किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाता है। आज  के जमाने में शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाज़ारीकरण बड़े पैमाने पर हो रहा है, ऐसे बदले वातावरण में छात्रों  के अंदर उसके  गुरु के प्रति आदर तथा कृतज्ञता का भाव बनाये रखने में शिक्षक की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। 

बच्चों में पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार डालने का काम भी सतत चलता रहता है। शिक्षक एक कुम्हार की भाँति बच्चे के अंदर और बाहर से अपने मन के  मुताबिक नया आकर-प्रकार डालता रहता है। वह उसके अंदर इस तरह अपने मन की छैनी से आकर्षक डिजाइन उकेरता है जो जीवन के साथ - साथ औरों को भी प्रभावित करे। इसीलिए कहा गया है कि शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता। वह समाज और विश्व को अपने सद्गुणों से बेहतर से बेहतरी की तरफ ले जाता है। उसका दिया ज्ञान कभी खंडित नहीं होता। पीढ़ी-दर पीढ़ी एक नये संसार को जन्म देता रहता है। वह एक साथ दुनिया के सभी पदों को सुशोभित करता रहता है, चाहे वह डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री कोई भी पद क्यों न हो। आचार्य चाणक्य के मुताबिक शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं। ऐसे राष्ट्रनिर्माता गुरुजनों के सामने किसका माथा विनम्रता से नहीं झुक जाता। 

यहाँ समझनेवाली बात ये है कि आरंभिक पाठशाला में पढ़नेवाले शिक्षकों के सादे रहन -सहन से छात्र बहुत कुछ सीखते हैं। बच्चे, शिक्षक को अपना रोल  मॉडल समझते हैं लेकिन 1833 ईसवी में लार्ड मैकाले द्वारा भारत में स्थापित शिक्षा व्यवस्था काफ़ी सुधारों के बावजूद भी अपने मुख्य धुरी से हटी नहीं है। लार्ड मैकाले उस वक़्त बोलते हुए  कहा था कि भारत में ऐसी शिक्षा प्रणाली लागू की जाए और जिसके द्वारा ऐसे बच्चों का निर्माण किया जाए, जो देखने में भारतीय हों और स्वभाव से अंग्रेज बनें। स्वतंत्र भारत में समय-समय पर शिक्षा में सुधार के लिए अनेक शिक्षा आयोग बिठाये, जिनमें राधाकृष्णन आयोग, मुदालियर आयोग, कोठारी आयोग प्रमुख रहे। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, इसरो के प्रमुख डॉक्टर के. कस्तूरी रंजन की अध्यक्षता में 5+ 3 +3+4 पर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रकाश में आई है। यह शिक्षा प्रणाली अभी पार्लियामेंट में जायगी और देश के मुताबिक इसमें सभी के सुझाओं को शामिल कर एक नये कलेवर में सबके सामने आएगी जिसमें हमारे शिक्षकों की जवाबदारी और बढ़ जाएगी।   

80 % देश की आबादी दलितों, मुस्लिमों.ओ बी सी. और अति पिछड़े लोगों की है, देखना ये होगा कि इस शिक्षा प्रणाली से स्किल इंडिया मिशन को कितनी सफलता मिलती है। 

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों की गुणवत्ता में काफ़ी सुधार की जरूरत है। हमारे बृहन्मुम्बई महानगरपालिका में प्राथमिक शिक्षकों की भरती में आधुनिक मापदण्डों का प्रयोग करना चाहिए। बहुत पहले एक शिक्षणाधिकारी हुआ करती थीं उनका नाम था माधुरीबेन शाह।  तब मैं विभाग में नहीं आया था। विभाग में आने के बाद उनके बारे में एक एच. एम. ने मुझे बताया था कि माधुरीबेन शाह जी का कहना था कि चांदी के भाव में अगर सोने की थाली मिल रही है तो कोई चांदी की थाली क्यों खरीदना चाहेगा ? उन्होंने अपने जमाने में उच्च डिग्रीधारी शिक्षकों की खूब नियुक्ति कीं।  महानगरपालिका शिक्षण खाते की स्थिति बेहद मजबूत हुई। कालान्तर में दसवीं - बारहवीं, डी. एड. के साथ वापस शिक्षक रखे जाने लगे। मेरा आशय ये है कि डॉक्टर हो या शिक्षक दोनों की डिग्री भरपूर होनी चाहिए। अच्छा डिग्रीधारी शिक्षक किसी भी विषय को एकदम सरलतम ढंग से पढ़ायेगा जैसा कि एक अच्छा पढ़ा लिखा डॉक्टर रोग के मुताबिक कम समय और कम पैसे में रोगी को ठीक कर देता है।

अब शासन तय करे कि उसे क्या करना है। देखा जाए तो मनपा माँ-बाप जैसी होती है। निराश्रय को आश्रय देती है। जैसा कि सबको मालूम है आजकल कोरोना काल में मरीजों के प्राणों की रक्षा वही कर रही है और डॉक्टर-नर्स भगवान सरीखे नजर आ रहे हैं। वो किसी फ़रिश्ते से कम नहीं। प्राइवेट हॉस्पिटल किस तरह मरीजों को लूटे, ये भी बात किसी से छिपी नहीं है। किसी देश की जनता तब खुशहाल रहती है जब  सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा अपने निजी हाथों रखती है। जैसे ही प्राइवेटीकरण होने लगता है, जनता के सुख के दिन लद जाते हैं। स्कूल हो या हॉस्पिटल, या अन्य कोई प्रतिष्ठान दोनों हाथों से वे  निरीह जनता को लूटने लगते हैं। मेरे ख्याल से सरकार को कुछ चीजें को अपने ही हाथों में रखना और संभालना चाहिए नहीं तो, प्राइवेट वाले काट खाएंगे। 

शिक्षक हमेशा से ही पूजनीय रहा है। समाज की वो  आधारशिला होता है। इसी कारण उसे समाज का शिल्पकार कहते हैं। किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामजिक, सांस्कृतिक, विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। अगर किसी देश की शिक्षा नीति अच्छी है, तो उसे आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं  सकता। अगर शिक्षक अच्छे नहीं हैं, तो बच्चों की प्रतिभा दबकर रह जाती है। अगर किसी देश की शिक्षा नीति कमजोर है लेकिन शिक्षक अच्छे हैं, तो बेकार शिक्षा नीति भी अच्छी शिक्षा नीति में तब्दील हो जाती है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति किसी भी बच्चे पर विषय नहीं थोपेगी। वह उन्हें आजाद रखेगी। वह नये मूल्य बोध के साथ आ रही है। पारंपरिक तरीके से हटकर प्रात्यक्षित पढ़ाई पर वो ज्यादा जोर देगी।  शिक्षक बच्चों की मेधा को पहचानकर और उनके अंदर छिपी प्रतिभाओं को जगाकर एक नये अवतार में उन्हें लायेंगे।  कागजी शिक्षा न देकर पर्यावरण, भारतीय संस्कृति, आदरभाव, सहिष्णुता, मानवता आदि में हो रहे क्षरण को रोकर एक नये कलेवर में पेश करेंगे। बच्चे सिर्फ डिजिटल ही नहीं बनेंगे , बल्कि उन्हें समाज के सभी सरोकारों से जोड़ा जाएगा।  जैसे अभी इसी कोरोना काल में कोलकाता के एक शिक्षक को कोरोना होने तथा 10 लाख रूपये छात्रों ने अपने तरीके से जमा करके शिक्षक की जान बचाई। यह आज के बच्चों के अच्छे संस्कार को दर्शाता है, इस तरह के ज्ञान बच्चों में विकसित करने होंगे।

रट्टामार शिक्षा सिर्फ अच्छे अंक दिला सकती है, अच्छा इंसान कभी नहीं बना सकती। दुनिया के जितने भी महापुरुष हुए हैं, पढ़ाई के दौरान अच्छे नहीं थे लेकिन बाद में बहुत अच्छे काम किये। इसी कड़ी में भौतिकविद अल्बर्ट आइंस्टीन का नाम लिया जा सकता है। अविष्कार की दुनिया में उन्होने  कई अविष्कार किये। सापेक्षता के सिद्धांत और प्रकाश - विद्युत उत्सर्जन/द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण के अलावा न जाने कितने शोध और अविष्कार वो किये।  हालांकि उन्हें अपने कुछ शिक्षकों से निराशा भी हाथ लगी, तो कइयों से शाबाशी भी मिली। यहाँ समझनेवाली बात ये है कि कक्षा में शिक्षकों द्वारा बस शाबाशी ही मिलनी चाहिए न कि उसे ये कहा जाए कि तुम्हें कुछ नहीं आता। बच्चा किसी तरह की गलती करता है, उसे मारिये नहीं। वह सफलता की पहली सीढ़ी चढ़ रहा होता है। मारने से उसकी सृजनशीलता नष्ट हो जाती है। इस तरह शिक्षक और छात्र का संबंध मित्रवत होना चाहिए। विद्यार्थी जो चाहे बिना डरे,जब चाहे पूछे।  हजारों सालों की हमारी भारतीय संस्कृति विश्व में जो पहचान दिलाई है, कायम रहनी चाहिए। 

भगवान श्रीकृष्ण और संदीपनी गुरु के आदर्शो का अनुपालन होना चाहिए क्योंकि बिना आधार के एक मजबूत ईमारत नहीं बनाई जा सकती। पाइथागोरस को हम पढ़ें तो आर्यभट्ट को क्यों नहीं? जड़ विहीन शिक्षा किस काम की। किसी अमेरिकी छात्र ने वर्षो पहले अपने ही क्लास रूम के 45 विद्यर्थिओं को गोली से उड़ा दिया था जबकि गणित का वो टॉपर स्टूडेंट था,ऐसी शिक्षा लेने से क्या फायदा? आनेवाले समय में हमारे शिक्षक नई शिक्षा नीति के तहत और बढियाँ संस्कार देकर देश के भविष्य को संवारेंगे। देश न सिर्फ महाशक्ति बनेगा बल्कि दुनिया  में अमन और शांति का महादूत भी बनेगा। अंततोगत्वा ये बात कही जा सकती है कि शिक्षक,  समाज का महानायक है जिसे पूजकर हम इहलोक और परलोक दोनों सुधार सकते हैं, इसमें संशय नहीं। 



Khabre Aaj Bhi

Reporter - Khabre Aaj Bhi

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