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नवी मुंबई : 'लोन वुल्फ अटैक' (Lone Wolf Attack) शब्द उन आतंकवादी हमलों को दर्शाता है, जिन्हें कोई व्यक्ति अकेले, बिना किसी संगठित नेटवर्क की प्रत्यक्ष सहायता के, खुद की योजना और क्रियान्वयन से अंजाम देता है। इस प्रकार के हमले अक्सर अप्रत्याशित, तीव्र और अत्यंत घातक होते हैं, क्योंकि इनकी योजना में गोपनीयता और व्यक्तिगत कट्टरता की चरम भूमिका होती है।
लक्षण और प्रकृति:
लोन वुल्फ हमलावर समाज में अक्सर सामान्य व्यक्ति के रूप में ही जीवन व्यतीत करता है, परंतु उसके भीतर कोई वैचारिक उन्माद, धार्मिक या राजनीतिक कट्टरता, व्यक्तिगत प्रतिशोध या मानसिक असंतुलन धीरे-धीरे पनपता रहता है। ऐसा हमलावर अकेला काम करता है, परंतु उसकी प्रेरणा किसी वैश्विक या स्थानीय आतंकी विचारधारा से जुड़ी हो सकती है। इस तरीके का आरोप भारत में अक्सर मदरसों पर लगता रहता है जहां पर बालपन में ही बच्चों के दिमाग में आतंकवाद के प्रति प्रेरणा पैदा कर दी जाती है। जो बड़े होकर जन्नत की हूर के लालच में आकर आत्मघाती हमले कर बैठते हैं। सोशल मीडिया या इंटरनेट के माध्यम से आत्म-प्रेरित होकर कट्टरता अपनाता है।
पारंपरिक आतंकवाद की तुलना में सुरक्षा एजेंसियों के रडार से बाहर रह सकता है। योजनाओं को साझा न करने के कारण सूचना-संग्रह और रोकथाम में मुश्किलें पेश आती हैं।
प्रमुख उदाहरण:
1. ऑरलैंडो नाइट क्लब हमला (2016, अमेरिका): इस्लामिक स्टेट से प्रेरित होकर एक हमलावर ने अकेले ही 49 लोगों की जान ली।
2. न्यूज़ीलैंड मस्जिद हमला (2019): एक श्वेत वर्चस्ववादी ने फेसबुक पर लाइव हमला करते हुए 51 मुस्लिमों को गोली मारी।
3. जर्मनी, फ्रांस, भारत जैसे देशों में भी समय-समय पर कट्टरपंथ से प्रेरित एकल हमलों की घटनाएँ घट चुकी हैं।
लोन वुल्फ अटैक क्यों खतरनाक है?
अदृश्य खतरा:
जब हमलावर अकेला होता है, तो उसकी पहचान और निगरानी अत्यंत कठिन हो जाती है।
तकनीकी आत्मनिर्भरता:
इंटरनेट और डार्क वेब पर उपलब्ध सामग्री से वह हथियार बनाना, विस्फोटक तैयार करना या हमला करने की तकनीक सीख सकता है। इस तरह की वेबसाइट पर लगाम लगाना चाहिए।
मन:स्थितिगत अस्थिरता एवं अवसाद:
कई बार यह हमलावर मानसिक तनाव, सामाजिक अलगाव या पहचान संकट से भी प्रेरित होता है, जो किसी भी समय हिंसक रूप ले सकता है।
रोकथाम की चुनौतियाँ:
ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पारंपरिक खुफिया तंत्र अक्सर अपर्याप्त हो सकता है।
डिजिटल माध्यमों की निगरानी, सोशल मीडिया पर उग्र विचारों की पहचान और मानसिक स्वास्थ्य का मूल्यांकन आवश्यक हो जाता है धार्मिक और सामाजिक कट्टरता को रोकने के लिए संवाद और जागरूकता अभियानों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य:
भारत जैसे विविधताओं वाले देश में भी लोन वुल्फ अटैक्स की आशंका बहुत बढ़ी है। केरल, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक और दिल्ली में समय-समय पर ऐसी गतिविधियाँ सामने आई हैं, जिनमें एकल हमलावर किसी संगठन से प्रेरित होकर हमले की योजना बना रहे थे। इन मामलों ने सुरक्षा एजेंसियों को यह सोचने पर मजबूर किया है कि साइबर निगरानी, स्थानीय स्तर पर कट्टरता की पहचान और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण को और सशक्त किया जाए।
निष्कर्ष:
लोन वुल्फ अटैक आधुनिक आतंकवाद का एक नया और अधिक जटिल चेहरा है। यह समाज में छिपे अकेले विद्रोही की चुप्पी में पनपता है और तब विस्फोट करता है जब कोई उम्मीद नहीं करता। इस चुनौती से निपटने के लिए केवल सैन्य या पुलिस उपाय पर्याप्त नहीं, बल्कि सामाजिक, मानसिक और वैचारिक स्तर पर सामूहिक सजगता, संवाद और समरसता की आवश्यकता है। इस कारण प्रत्येक नागरिक कार्यकर्ता बने। अपने आसपास में यदि इस तरह की कोई भी बातचीत अथवा प्लानिंग हो रही हो तो तुरंत पुलिस को सूचित करें।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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