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By : मो0 हारून
जौनपुर : इस्लाम के आखरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सoअo के जन्म उत्सव को हर साल हिजरी संवत के दूसरे महीने रबी उल अव्वल कि 12 तारीख को मनाया जाता है।
इस मौके पर पूरे मुल्क सहित देश विदेश व जौनपुर शहर सहित विभिन्न तहसीलों तथा गांव में अलग-अलग तारीख को उत्सव मनाया जाता है और लोग सजावट करके घरों में मीठे पकवान पका कर व नात (पैगंबर की शान में कविता पाठ) पढ़कर पैगंबर साहब की पैदाइश की खुशी मनाते हैं।
इस मौके पर जौनपुर शहर में भी एक जश्न का माहौल होता है, जिसमें मरकरी सीरत कमेटी संस्था की अगुआई में विभिन्न सजावट कमेटियां शहर को दुल्हन की तरह सजाते है, और कमेटी की तरफ से एक कौमी यकजहती (राष्ट्रीय एकता) का प्रोग्राम शहर कोतवाली के सामने किदवई पार्क में किया जाता है जिसमें विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के लोग सामाजिक कार्यकर्ता व जिला प्रशासन के लोग मौजूद रहते हैं। इतिहास की जानकारी रखने वाले इरफान साहब ने बताया कि इस जुलूस का आगाज सन 1925 में शहर के गूलरघाट के रहने वाले मौलाना अली हसन किदवई "मुख्तार" ने उस वक्त के अपने समकक्ष उलमा लोगो के साथ मिलकर किया था। जिसमें एक जुलूस मछली शहर पड़ाव स्थित शाही ईदगाह से उठता है और अपने कदीमी रास्तों से होता हुआ शाहीपुल से कोतवाली पहुंचकर अल्फिस्टीनगंज से शाही अटाला मस्जिद पर जाकर खत्म हो जाता है। शाही अटाला मस्जिद में एक जलसा कायम होता है जिसमें विभिन्न धर्मगुरु पैगंबर साहब की सीरत (कर्म/चरित्र) पर प्रकाश डालते हैं। इस बीच विभिन्न प्रकार की अंजुमन नात पढ़ते हुए शहर से गुजरती है, वहीं विभिन्न प्रकार के अखाड़े अपना अपना करतब दिखाते हुए लोगों का मन मोह लेते है, जौनपुर में मनाए जाने वाला बारावफात का मेला पूर्वांचल का सबसे बड़ा मेला माना जाता है ,जिसमें शहर ही नही दूरदराज गांव वह आसपास के जिलों के लोग भी देखने के लिए पहुंचते हैं। परंपरा के अनुसार आज भी एक जलसे का कार्यक्रम शाही ईदगाह के प्रांगण में रखा गया जहां शेर मस्जिद के इमाम कारी जिया ने बताया कि आदम अलैहसलाम से लेकर इब्राहिम अ स तक लगभग 1लाख 84 हजार पैगंबर आए, जिनमें हजरत मोहम्मद आखरी पैगंबर के रूप में अवतरित हुए, इनका जन्म मक्का में 570 ईस्वी यानी 53 हिजरी पूर्व मक्का शहर के एक सम्मानित घर अब्दुल्ला के यहां हुआ था, इनकी माता का नाम अमीना था, उस दौर में पर्याप्त फैली हुई बुराइयों के खिलाफ इन्होंने एक मुहिम चलाई, और लोगों को सही रास्ता दिखाया बाद में यह मदीना चले गए वहीं पर इनकी वफात 8 जून 632 ईस्वी में हुई,।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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