दलितों के फरिश्ता है महामानव देशरत्न डॉ.बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर

By: Khabre Aaj Bhi
Apr 13, 2022
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( रामकेश एम. यादव)

मुंबई : भारतवर्ष की पावन भूमि पर कई महान विभूतियों ने जन्म लिया है। अपने सत्कर्मों से देश को एक नई रोशनी भी दी है। इन्हीं महान विभूतियों र्मेे से देश महामानव रत्न डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर भी एक थे। बाबा साहब का जन्म १४ अप्रैल, १८९१ ई. को एक दलित अतिसाधारण परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम भीमाबाई तथा पिता का नाम रामजी सकपाल था। ये अपने माता-पिता की चौदहवीं और अंतिम संतान थे। जब भीम का जन्म हुआ, तो उस समय उनके माता-पिता इंदौर में ही थे। इनके असली गांव का नाम आंबवडे है जो कि महाराष्ट्र की पावन भूमि जिला रत्नागिरी के मंडणगढ़ के करीब है।

भीम का परिवार धार्मिक प्रवृत्ति से ओतप्रोत था। इनके दादा मालोजी भी सेना में हवलदार थे। भीम की प्राथमिक शिक्षा सातारा में हुई। भीम के पिता भी सेना में सुबेदार मेजर थे। कालान्तर में सेवा संपूर्ति होने के बाद रामजी सकपाल मुंबई चले आए। मुंबई  के लोअरपरेल की दलित बस्ती में एक छोटे से घर में रहने लगे। आगे की पढ़ाई के लिए उनके पिताजी एलीफिन्स्टन स्कूल में दाखिला कराये। इसी स्कूल में भीम फारसी विषय के स्थान पर संस्कृत पढ़ना चाहते थे पर एक महार का देवभाषा पढ़ने का कोई अधिकार नहीं था। ऐसी परिस्थिति में उन्हें फारसी पढ़ना पड़ा। १९०७ ई. में भीम मैट्रिक परीक्षा पास किए। १७ वर्ष की उम्र में रमाबाई के साथ उनकी शादी हो गयी। सामाजिक उत्तरदायित्वों को निभाते हुए कालेज की पढ़ाई पूरी किए। उच्चशिक्षा के लिए बड़ौदा नरेश ने आर्थिक मदद की भीम इस पैसे की बदौलत अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला  लिए।

१९१५ ई. में वहीं से उन्होंने एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। १९१६ ई. में उसी कोलंबिया विश्वविद्यालय से उनके शोध ग्रंथ एनसिएंट इंडियन कामर्स पर पी.एच.डी. की उपाधि मिली। अमेरिका से डिग्री लेने के बाद बाबा साहब लंदन पहुंचे।

वहां उन्होेंने लंदन मे स्कूल आफ इकानामिक्स एण्ड पालिटिक्स में प्रवेश लिया और डी.एस.सी.की डिग्री के लिए शोध प्रबंध लिखना शुरु कर दिया परंतु बड़ौदा रियासत के बुलावे पर उन्हें २१ अगस्त, १९१७ ई. को भारत लौटना पड़ा। बड़ौदा नरेश ने उन्हें एक अधिकारी पद पर नियुक्त कर दिया परंतु एक दलित जाति का होने के कारण उन्हें हर क्षण अपमानित होना पड़ता था। इस सामाजिक संकीर्णता से प्रताड़ित होकर बाबा साहेब मुंबई आए। १९१८ ई. में वह सिडनम कालेज में प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुए। यहाँ पर भी बाबा साहब छुआछूत की भावना से तंग आ गए। कालान्तर में वह पद छोड़ दिए। २७ मई,१९३५ ई. को उनकी पत्नी रमाबाई की मृत्यु हो गयी। फिर आगे की पढ़ाई के लिए बाबा साहब लंदन गए । वहाँ से उन्होंने डी.एस.सी. की उपाधि हासिल की।

दलितों की भलाई के लिए उन्होेंने स्वदेश में बहिष्कृत हितकारिणी सभा स्थापित की। इस संगठन के माध्यम से दलितों में शिक्षा प्रचार,उनकी आर्थिक स्थिति सुधारना,उनकी शिकायतें अधिकारियों तक पहुँचाना था। अछुतों को मंदिर में भगवान के दर्शन करने के अधिकार को लेकर नासिक में सत्याग्रह किए। १९३० ई. में गोलमेज परिषद में बाबा साहब ने अछूतों के लिए स्वतंत्र निर्वाचन क्षेत्र की मांग की बाद में गांधी जी के यरवडा जेल में आमरण अनशन से पूना-करार से मामला रफा-दफा किया। जब देश आजाद हुआ,उस समय हमारे देश का कोई निजी संविधान नहीं था।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान बनाने की एक और उपसमिति बनाई जिसमें कुल सात सदस्य थे पर कभी किसी न किसी कारण से संविधान बनाने में मदद नहीं कर पाए। बाबासाहब अकेले ही विश्व के लगभग काफी संविधानों का गहन अध्ययन कर अपने देश के हितार्थ बातों को लिख लिए और विश्व का सबसे बड़ा संविधान बनाकर वह सदैव के लिए अमर हो गए। ६६ वर्ष की कम उम्र में ६ दिसंबर,१९५६ ई. को भारत का यह सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया।

एम.एस.सीपी.एच.डी.डी.एस.सी.एल.एल.डी.डी.लिट्.बार-एट ला इन तमाम उच्च उपाधियों को धारण करने वाले बाबासाहब अम्बेडकर दलितों के उत्थान व उनके उत्कर्ष के लिए सच्चेमन से सदा कार्य करते रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वयं कहा है कि अस्पृश्यता हिंदू धर्म पर लगा हुआ एक कलंक है। इस कलंक को मिटाकर हम समाज तथा देश को मजबूत कर सकते हैं। इस तरह डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर ने श्रमिकों,किसानों,मजदूरों,पद-दलितों और महिलाओं के अधिकारों के लिए सतत काम किया। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के बारे में कहा था कि शिक्षा महिला के लिए भी उतनी ही जरूरी है जितनी पुरूषों के लिए। अपने जीवन काल में उन्होंने सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक,साहित्यिक,औद्योगिक तथा अन्य क्षेत्रों में अनगिनत कार्य किया।

बाबा साहब हमेशा ये कहते थे कि मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वतंत्रता,समानता,और भाईचारा सिखाए। उन्होंने मानवाधिकार जैसे दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश,पानी पीने, छूआछूत,जाति-पाँति,ऊँच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए कार्य किया। इसी तरह उन्होंने हिन्दू विधेयक संहिता के जरिए महिलाओं को तलाक,संपत्ति में उत्तराधिकार आदि का प्रावधान करके उसके कार्यान्वयन के लिए संघर्ष किया।

देश के हितार्थ उन्होंने जल-नीति और औद्योगिकरण की आर्थिक नीतियाँ जैसे नदी-नालों को जोड़ना,हीराकुंड बाँध,दामोदर घाटी बाँध, सोन नदी घाटी परियोजना,राष्ट्रीय जलमार्ग, केन्द्रीय जल और विद्युत प्राधिकरण बनाने का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने निर्वाचन आयोग, योजना आयोग,वित्त आयोग,महिला-पुरूष के लिए समान नागरिक हिन्दू संहिता,राज्य पुनर्गठन, राज्य के नीति-निर्देशक तत्व, मौलिक अधिकार,मानवाधिकार,निर्वाचन आयुक्त और सामाजिक,आर्थिक,शैक्षणिक,एवं विदेश नीति बनाई। एसी.एसटी. के लोगों के लिए उन्होंने विधायिका,कार्यपालिका,और न्यायपालिका में सहभागिता सुनिश्चित कराई। हिन्दू पंथ में व्याप्त कुरीतियों और छूआछूत की प्रथा से तंग आकर सन् १९५६ ई में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया।

मरणोपरांत सन् १९९० में भारत सरकार द्वारा उन्हें भारत-रत्न,भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया। अपने जीवन काल में बाबा साहब अंबेडकर ने गरीबों,मुफिलिसों ,समाज के हासिए पर जीवन-यापन करनेवालों के लिए अनवरत काम किए। शोषण के विरुद्ध वो सदा आवाज उठाते ही रहे। देश उनका हमेशा ऋणी रहेगा। यह कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें नमन करता है।



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Reporter - Khabre Aaj Bhi

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