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By : जावेद बिन अली
मध्यप्रदेश भोपाल : उर्दू ही भारत है और भारत ही उर्दू है। उर्दू ही गंगा-जमुनी तहजीब है और उर्दू भारतीय मां की बेटी है। जैसे बेगम सुल्तान जहां बेगम, सिकंदर बेगम, रानी लक्ष्मी बाई, रानी कमलापति और कुदसिया बेगम भारत की बेटियां हैं, वैसे ही उर्दू भी भारत की ही बेटी है। लेकिन आज जैसे लोग अपनी बेटी के साथ अन्याय करते हैं, गला दबाकर मार देते हैं, वैसे ही उर्दू के साथ कर रहे हैं, उर्दू के साथ न्याय करने की जरूरत है। उर्दू को बचाने के लिए सकारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की आजादी के बाद से ही उर्दू को मिटाने की साजिशें रची जा रही हैं। उर्दू पढ़ाने वालों के हुकूक़ को खत्म किया जा रहा हैं। उर्दू को जरिया-ए-मआश (रोज़ी-रोटी) से हटा दिया गया है। उर्दू के ज़रिए जो अपने घर को चलाते थे वे भी आज चिंतित दिख रहे हैं। उर्दू पढ़ाने वाले शिक्षकों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है। मदरसों में रिक्ति सीट को नहीं भरा जा रहा है। उर्दू पाठ्यक्रम नहीं मिल रहे हैं, संस्थाओं की माली मदद रोक दी गई है। हालांकि आजादी की लड़ाई में उर्दू की जो भूमिका रही है वह किसी से छिपी नहीं है। उर्दू ने ही ष्हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में हैं सब भाई-भाई ंष् के जरिए आपसी भाईचारे को मजबूत करने का संदेश दिया। आज भी उर्दू ही है जो तहजीब और समाज में आपसी ताल मेल को बरकरार रखने और आम बोलचाल में मिठास घोलने का काम करती है। आज उसी उर्दू की जो स्थिति है आप अच्छी तरह जानते हैं, हमें इसके बारे में बात करने की ज़रूरत नहीं है। आज लोग उर्दू पढ़ना नहीं चाहते, जिन्होंने उर्दू पढ़ी है, वे भी अपने बच्चों को उर्दू नहीं पढ़ाना चाहते। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों से सवाल करने की जरूरत है. और सभी राज्यों में उर्दू को पठन-पाठन से जोड़ने की जरूरत है. और उन राज्यों में जहां उर्दू राज्य की दूसरी भाषा है उस को केवल कागजी तौर पर नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर लागू करने और पाठ्यक्रम में शामिल करने की जरूरत है । इस संबंध में उर्दू की स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए श्श्हम एक हैंश्श् के तत्वावधान में श्श्चौपाल पे मुशायराश्श् के उनवान (शीर्षक) के तहत एक समारोह का आयोजन किया गया। यह आयोजन बाग-ए-जोहरा, कलाखेड़ी, झरनिया भोपाल में किया गया। जिस की अध्यक्षता सेवानिवृत्त डी.जी.पी. छत्तीसगढ़ श्री एम डब्ल्यू अंसारी ने किया। कार्यक्रम में शहर के कई प्रतिष्ठित कवियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस आयोजन का उद्देश्य केवल उर्दू की तरक्की के अस्बाब और रूकावट पर प्रतिभागियों की राय और इसका हल कैसे हो? इस पर विचार किया गया। जिसमें सभी उर्दू विद्वानों ने उर्दू को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का संकल्प लेते हुए उर्दू के प्रचार-प्रसार के लिए हर संभव प्रयास करने की भावना दिखाई। इसमें श्री मकबूल वाजिद साहिब, संपादक त्रैमासिक रिसाला-ए-इंसानियत, जफर सोहबाई, साजिद रिजवी, डॉ मेहताब आलम, डॉ मुहम्मद आजम, बदर वास्ती, विजय तिवारी, जलाल मेकश, सरवत जैदी, सिराज मुहम्मद खान, अजीम अतहर आदि ने भाग लिया। अंत में आयोजक समारोह ने सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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