कॉमेडी के साथ साथ इमोशन‌ का भी तड़का लगाती है बीकानेरी छोरी "मिमी"

By: Khabre Aaj Bhi
Aug 21, 2021
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ट्रेड गाइड- अविनाश स्वामी (बीकानेर)

रेटिंग : 3 .5/5 निर्माता : दिनेश विजन, निर्देशक : लक्ष्मण उतेकर , संगीत : एआर रहमान

कलाकार : कृति सेनन, पंकज त्रिपाठी, मनोज पाहवा, सुप्रिया पाठक, सई ताम्हणकर

जोनर-कॉमेडी , ड्रामा अवधि- 2 घंटे 12 मिनट 28 सेकंड  ओटीटी-नेटफ्लिक्स और जियो सिनेमा पर उपलब्ध 

फिल्म में मेरे शहर बीकानेर का नाम आता है।"बीकानेरी छोकरी"गाना जिसे  अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखा है ऑस्कर विजेता म्यूजिक कंपोजर ए आर रहमान ने कंपोज किया है।और गाया है हमारे राजस्थान के शहर कोटा की श्रेया घोषाल ने।फिल्मों में बीकानेर के लोकेशन्स काफी मूवी जैसे बैंड बाजा बारात,गदर,द्रोण ,बादशाहों जैसी अनेक फिल्मों और तेलुगु ब्लॉकबस्टर मूवी'एजेंट सई' में देशनोक करती माता मंदिर का जिक्र है।काफी समय बाद बॉलीवुड के किसी गाने में बीकानेर नाम सुनने को मिला है।पहले लता मंगेशकर के गाए गाने "मेरा नाम है चमेली ,मैं हूं मालन‌ अलबेली" में बीकानेर शब्द आया था।

दिनेश विजान एक ऐसे प्रोड्यूसर है जिन्होंने काफी गंभीर मुद्दों पर हल्की फुल्की फ़िल्में बनाई है ,जो लोगो को हंसती भी है तो कभी इमोशनल भी कर देती है।उन्होंने अब तक कई सुपरहिट फिल्में बनाई है जो बॉक्स ऑफिस पर हिट रही है जिनमें स्त्री, हिंदी मीडियम, लूका छुपी , बदलापुर, लव आज कल बाला और कॉकटेल है ।इस सप्ताह वो एक और फिल्म "मिमी"लेकर हाजिर हुए हैं जिसमें कृति सेनन व पंकज त्रिपाठी मुख्य भूमिका में हैं।फिल्म सोरोगेसी के मुद्दे पर बनी है। एक समय था जबकि भारत पश्चिमी देशों के लिए सोरोगेसी का अड्डा बन गया था और यहां किराए की कोख एक व्यापार बन गया था। 'मिमी' में इसी मुद्दे को थोड़ा सा इमोशनल तरीके से दिखाने की कोशिश की गई है।ये फिल्म 2011 में आई मराठी फिल्म 'मला आई व्हायचय' पर यह फिल्म आधारित है। फिल्म में कई ऐसे ट्विस्ट्स और टर्न्स हैं जो आपको हंसने पर मजबूर करते हैं। मिमी का अपनी मुस्लिम दोस्त के यहां रहना, उसके घर के बाहर दुकानदारों का बात करना, मिमी और भानु के बीच कई दृश्य, भानु की पत्नी का मिमी के घर आना, भानु और शमा के पिता का आमना-सामना होना, अच्छे बन पड़े हैं।  

कहानी -फिल्म की कहानी शुरू होती है भारत आए एक अमेरिकन कपल जॉन और समर से जिनका ड्राइवर है भानु (पंकज त्रिपाठी)। जब भानु को पता चलता है कि जॉन और समर अपने बच्चे के लिए एक सोरोगेट मदर की तलाश में हैं तब उन्हें राजस्थान में मिलती है मिमी (कृति सैनन) जो प्रफेशनल डांसर है। अगर आपने फिल्म का ट्रेलर देखा है तो आपको पता चल जाएगा कि फिल्म की कहानी क्या है। जॉन और समर बीच में ही मिमी की कोख में अपना बच्चा छोड़कर चले जाते हैं। इसके बाद मिमी कैसे अपने बच्चे को पैदा करती है और उसके लिए संघर्ष करती है यही फिल्म की कहानी है।

रिव्यू-फिल्म का प्लॉट बहुत अच्छा है। इसमें भी कोई शक नहीं कि फिल्म की शुरूआत बहुत अच्छी होती है। कहानी तुरंत ही ट्रैक पर आ जाती है। पंकज त्रिपाठी के कुछ कॉमिक सीन अच्छे बने हैं। मिमी के किरदार में कृति सैनन अच्छी लगी हैं। कृति के कुछ सीन बहुत जानदार हैं। उनके पास इस फिल्म में करने के लिए बहुत कुछ था लेकिन स्क्रीनप्ले इतना सुस्त लिखा गया है कि आप एक समय के बाद बोर होने लगते हैं। फिल्म जरूरत से ज्यादा लंबी है और बोझिल लगने लगती है। हालांकि यह बात मानने वाली है कि कृति सैनन ने फिल्म में अच्छी ऐक्टिंग की है लेकिन अगर स्क्रीनप्ले कमजोर हो तो कलाकार भी कुछ नहीं कर सकता है। कृति और पंकज के अलावा फिल्म में मनोज पहवा, सुप्रिया पाठक और सई तम्हानकर सपोर्टिंग रोल में हैं और सभी ने अपने किरदारों को भरपूर जिया है। मिमी के रोल में कृति की एंट्री धमाकेदार है। उन पर फिल्माया गया 'परम सुंदरी' गाना पहले ही हिट हो चुका है। ऐक्टिंग की बात की जाए तो कोई कलाकार कम नहीं है मगर फिल्म का स्क्रीनप्ले और डायरेक्शन बेहद लचर है।एआर रहमान द्वारा संगीतबद्ध गाने कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। 'छोटी सी चिरैया' और 'रॉक ए बाय बेबी' सुनने लायक हैं। 

ऐक्टिंग -यह फिल्म पूरी तरह से कृति सैनन और पंकज त्रिपाठी की है। कृति सैनन पहले ही खुद को साबित कर चुकी हैं कि ऐक्टिंग तो उनको आती है। यहां भी ऐसा ही है कि कृति कर तो बहुत कुछ सकती थीं मगर फिल्म में लीड रोल होने के बावजूद उनके कैरेक्टर को उतना स्पेस नहीं दिया गया है जितना दिया जाना चाहिए था। शायद डायरेक्टर पंकज त्रिपाठी पर ज्यादा भरोसा कर रहे होंगे इसलिए पंकज को काफी स्पेस दिया गया है। पंकज त्रिपाठी के डायलॉग्स की टाइमिंग हमेशा की तरह गजब की है। यह कृति सैनन के साथ उनकी तीसरी फिल्म है। इससे पहले दोनों 'बरेली की बर्फी' और 'लुका छुपी' में दिख चुके हैं इसलिए दोनों की केमिस्ट्री भी अच्छी लगती है। हालांकि पंकज त्रिपाठी मोनोटोनस होते जा रहे हैं और यह बात अब नजर आने लगी है। मनोज पहवा, सुप्रिया पाठक और सई तम्हानकर ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है।फिल्म दौड़ती रहती है और एक से बढ़कर एक सीन आते रहते हैं। कॉमेडी के साथ इमोशनल सीन भी चलते रहते हैं। लेखक और निर्देशक ने इन दृश्यों को अति भावुक होने से बचाया है और यह तारीफ की बात है। मिमी का गोरे बच्चे को जन्म देना और उसको लेकर जो माहौल बनाया है वो शानदार है। फिल्म का स्क्रीनप्ले अच्छे से लिखा गया है। छोटे-छोटे सीन पर मेहनत की गई है। उनको मनोरंजक बनाया गया है। 

कुछ लोगों की शिकायत हो सकती है कि कहानी विश्वसनीय नहीं है। मिमी का इतनी जल्दी सरोगेसी के लिए तैयार हो जाना, उसके परिवार का इस बात को लेकर तीखी प्रतिक्रिया न देना, जैसी बातें फिल्म को झटके देती है, लेकिन लेखक और निर्देशक की प्राथमिकता फिल्म को मनोरंजक बनाने की थी, इसलिए वे इन बातों में ज्यादा नहीं उलझे। फिल्म आखिरी आधे घंटे में धीमी भी हो जाती है। विदेशियों द्वारा भारत में सरोगेसी के लिए लड़की ढूंढने वाले मुद्दे को फिल्म जोर-शोर से नहीं उठाती है। इस पर काम किया जा सकता था। हालांकि फिल्म इस बात का इशारा जरूर करती है कि यह 'व्यापार' भारत में पैर पसार चुका है। 

क्यों देखें - फिल्म सोरोगेसी जैसे मुद्दे पर है मगर साफ-सुथरी है। कृति सैनन और पंकज त्रिपाठी के फैन हैं तो देख सकते हैं।

दिल छुने वाले दृश्य- फिल्म में एक जगह जब कृति को बच्चा गिराने को कहा जाता है क्योंकि बच्चा एबनोर्मल है। तो वह डॉक्टर को कहती हैं कि ये बच्चा पेट में खाता है,पीता है,सांस लेता है और हो सकता है हमारी बातें भी सुनता है।तो इसे बाहर मारो या अंदर मारो एक ही बात है।कृति हीरोइन बनना चाहती है मगर जब बच्चा होता है तो अपने सपने त्याग देती है।जब बच्चे के रियल पेरेंट्स बच्चे के लिए मंहगे खिलौने लाते हैं तो उसका ये सोचना कि वो इस बच्चे को वो लाइफ नहीं दे पाएगी जो उसके रियल मां बाप दे पाएंगे।अंत में जब न्यायालय जाने की बात करने पर कृति जिस भाव भाव से ये कहती हैं कि कोई भी हमारा व बच्चे का रंग देखकर ही कह देगा कि बच्चा हमारा नहीं है,दिल को छु जाते हैं।


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Reporter - Khabre Aaj Bhi

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