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गाजीपुर : जनपद गाजीपुर के सदर ब्लॉक क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले चक अब्दुल बहाव गांव में इन दिनों एक नई कहानी लिखी जा रही है — भ्रष्टाचार, लापरवाही और जनविरोध की कहानी! सरकार की मंशा जहां गांव-गांव तक विकास पहुंचाने की है, वहीं प्रशासनिक स्तर पर चल रही अनियमितताओं ने गरीबों के बच्चों के लिए बन रही आंगनवाड़ी भवन को विवादों में ला खड़ा किया है।
गांव के प्राथमिक विद्यालय परिसर में बन रहे आंगनवाड़ी भवन के निर्माण कार्य को ग्रामीणों ने न केवल रोक दिया बल्कि मौके पर ही जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ आक्रोश जताते हुए आवाज बुलंद की।
ग्रामीणों का आरोप है कि जिस भवन में गरीबों के बच्चों के पढ़ने-लिखने, पोषण पाने और सुरक्षित रहने की व्यवस्था की जानी थी, वही भवन मानकों की धज्जियां उड़ाकर तैयार किया जा रहा है। गांव के कई ग्रामीणों ने मिलकर निर्माण कार्य को रोकते हुए प्रशासन को लिखित शिकायत सौंपी है। शिकायत में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि कार्य में सीमेंट, बालू और ईंट की गुणवत्ता बेहद निम्न स्तर की है।
ग्रामीणों ने यह भी बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन नंबर 1076 पर कॉल करके इस पूरे मामले की जानकारी सरकार तक पहुंचाई है ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके।
गांव के ग्रामीणों ने कहा कि “यह बिल्डिंग गरीबों के बच्चों के लिए बन रही है, अगर यह भवन गिरा और किसी बच्चे की जान चली गई, तो क्या प्रशासन उसकी जिम्मेदारी लेगा?”
घटना की जानकारी जैसे ही गांव में फैली, ग्रामीणों का समूह विद्यालय परिसर पहुंच गया। वहां देखा गया कि निर्माणाधीन दीवारें बिना सही अनुपात में मसाला डाले खड़ी की गई थीं।
ग्रामीणों ने मौके पर ही निर्माण सामग्री की जांच की और जब सीमेंट और बालू के अनुपात सही नहीं पाया गया “जहां आरसीसी में 1:4 का अनुपात होना चाहिए था, वहीं यहां 1:8 और 1:15 तक का मिश्रण लगाया गया बताया गया है।”
यानी सीमेंट की मात्रा कम और बालू की मात्रा अत्यधिक — यह सीधा-सीधा घटिया निर्माण का उदाहरण है।
ग्रामीणों ने बताया कि तीन नंबर की ईंटें लगाई जा रही थीं, जिनकी मजबूती बेहद कमजोर होती है। इसके बावजूद मजदूरों से कहा गया था कि “कोई देखने आए तो काम रोकना नहीं।”
स्थानीय लोगों ने जब इस निर्माण कार्य की जिम्मेदारी पूछी, तो न ठेकेदार मिला, न कोई इंजीनियर। मजदूरों से जब पूछताछ की गई तो उन्होंने कहा कि “हमें तो सिर्फ कहा गया है कि जो सामग्री दी जाए उसी से काम करो, ठेकेदार साहब कभी-कभी फोन पर बताते हैं।”
यह जवाब सुनते ही ग्रामीण भड़क उठे। उनका कहना है कि यह काम पूरी तरह से भ्रष्टाचार की परतों में लिपटा हुआ है।
ग्रामीणों ने मीडिया प्रतिनिधियों से कहा — “आप लोग हमारे गांव आकर देखिए, बच्चों के लिए जो भवन बन रहा है, उसमें ईंट तक ठीक नहीं हैं। दीवारें गलत मानक से उठाई जा रही हैं, सीमेंट इतना कमजोर है कि हाथ लगाने से झड़ जाता है। अगर यह बिल्डिंग अगले बरसात में ढह गई तो कौन जिम्मेदार होगा?”
ग्रामीणों ने मीडिया के माध्यम से यह मांग की है कि निर्माण कार्य की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए और दोषी अधिकारियों, इंजीनियरों एवं ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई की जाए।
ग्रामीणों ने कहा कि “हमारे बच्चे इसी आंगनवाड़ी में जाएंगे। अगर दीवार गिर जाएगी या छत ढह जाएगी तो हमारी जिम्मेदारी कौन लेगा? गरीबों के बच्चों के नाम पर पैसा खा लिया जा रहा है।”
लोगो का कहना है कि पहले भी गांव में नाली और शौचालय का निर्माण हुआ था, जो जल्दी ही टूट गया। अब यह भवन भी उसी राह पर चलता दिख रहा है।
गाजीपुर जैसे जनपदों में जहां सरकार हर गांव तक विकास की किरण पहुंचाने का दावा करती है, वहीं स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार का नेटवर्क मजबूत होता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि न तो सुपरवाइजर साइट पर मौजूद था, न कोई गुणवत्ता जांच अधिकारी।
ग्रामीणों ने कहा कि यह परियोजना अगर नियमों के अनुसार बनती तो बच्चों को बेहतर और सुरक्षित वातावरण मिलता, मगर अब यह भवन बनने से पहले ही भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गया है।
जब मीडिया ने इस पूरे मामले की जानकारी लेकर जिम्मेदार अधिकारी से संपर्क किया तो संबंधित अधिकारी ने कहा, “मामले की जानकारी हमें भी मिली है। जांच के लिए टीम भेजी जाएगी और दोषियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।”
हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि यह जवाब रूटीन जवाब है। जब तक मौके पर ठोस कार्रवाई नहीं होगी, तब तक ऐसे भ्रष्टाचार पर रोक लगाना नामुमकिन है।
सूत्रों के अनुसार, आंगनवाड़ी भवन का निर्माण किसी पंजीकृत ठेकेदार संस्था के माध्यम से कराया जा रहा है, लेकिन उस संस्था के जिम्मेदार लोग कभी साइट पर नहीं आते। मजदूरों को बिना सुरक्षा और बिना माप-तौल के काम पर लगाया गया है।
ग्रामीणों का आरोप है कि यह पूरा खेल कागजों पर मोटे बिल बनाकर पैसा निकालने का है, जबकि जमीनी स्तर पर कुछ और ही हकीकत है।
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही जांच कर निर्माण कार्य को मानक के अनुसार नहीं कराया गया, तो वे जिला मुख्यालय पर धरना-प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक आंगनवाड़ी भवन का मुद्दा नहीं है, बल्कि “ग्रामीण विकास की साख और सरकारी विश्वसनीयता” का सवाल है।
गांव के बुद्धिजीवियों ने कहा कि यह कोई पहली घटना नहीं है। हर बार विकास योजनाएं गांव तक पहुंचती हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के दलदल में फंसकर मर जाती है। चक अब्दुल बहाव गांव का यह मामला भी यह साबित करता है कि जब तक प्रशासन खुद मौके पर जाकर निगरानी नहीं करेगा, तब तक विकास के नाम पर सिर्फ बिल्डिंगें बनेंगी, भरोसा नहीं।
गाजीपुर के इस छोटे से गांव की यह खबर प्रशासन के लिए बड़ी सीख है। ग्रामीणों ने जो साहस दिखाया है, वह बताता है कि अब जनता भ्रष्टाचार को मूकदर्शक बनकर नहीं देखेगी। वह आवाज उठाएगी, सवाल पूछेगी, और जवाब भी मांगेगी।
आंगनवाड़ी भवन के इस विवाद ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि जमीन पर काम करने वाले मजदूरों से लेकर उच्च स्तर के ठेकेदारों तक, हर स्तर पर पारदर्शिता की जरूरत है। अगर अब भी प्रशासन ने गंभीरता नहीं दिखाई, तो “मानक विहीन निर्माण” जैसी घटनाएं न केवल बच्चों की जान को खतरे में डालेंगी बल्कि सरकारी योजनाओं की साख को भी मिट्टी में मिला देंगी।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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