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By.खान अहमद जावेद
गाजीपुर: भारत में जहां-जहां चुनाव होते हैं वहां से कोरोनावायरस खत्म हो जाते हैं । और जहां की जनता महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ बोलना चाहती है। कोरोनावायरस का नाम लेकर तमाम गतिविधियों को बंद कर दिया जाता है । आदरणीय प्रधानमंत्री जी ऑनलाइन ही तमाम मुख्यमंत्रियों से बात करते हैंl लेकिन जब चुनाव में भाषण देना होता है तो हां जरूर पहुंच जाते हैं । उन्हीं को देखते भारत के कुछ कवियों ने भी ऑनलाइन कवि गोष्ठी करना आरंभ कर दिया हैl ऑनलाइन कवि गोष्टी के कुछ पंक्तियां आप के लिए प्रस्तुत है। कवियों के प्रस्तुत शायरी पर दादा नहीं आएगी लेकिन पढ़ सकते हैं।
२७ मार्च शनिवार वाट्सअप ग्रुप "ऑनलाइन शाइर ग्रुप यूसुफपुर " के अंतर्गत आयोजित ३२ वां तरही काव्य गोष्ठी का आयोजन डॉक्टर अक्स वारसी कुशी नगर देवरिया और डॉक्टर सुजीत कुमार जी बलिया की अध्यक्षता में किया गया।
बादशाह राही ग़ाज़ीपुरी, सुमन यूसुफपुरी, अहमद अज़ीज़ ग़ाज़ीपुरी, मिथिलेश गहमरी के संयोजन तथा सरफ़राज़ अहमद आसी यूसुफपुरी के संचालन में आयोजित यह काव्य गोष्ठी शनिवार को पूर्व नियोजित समयानुसार ठीक ८.३० बजे रात्रि में आरम्भ हुआ।
ज्ञात हो कि यह तरही मुशायरा पिछले एक वर्ष से प्रत्येक शनिवार की रात्रि को एक निश्चित समय पर आयोजित होता आ रहा है जिसमे हर गोष्ठी के लिए देश विदेश के प्रसिद्ध शायरों कवियों की रचनाओं से कोई एक पंक्ति को लेकर उसे आधार बनाया जाता है और उसी पंक्ति के वज़्न और बह्र में ग़ज़ल कही जाती है।
निर्धारित गोष्ठी का शीर्षक उर्दू साहित्य के शीर्ष कवि शायर फ़राक़ गोरखपुरी की ग़ज़ल के एक मिसरे (पंक्ति) \"होती है तेरी चश्मे इनायत कहाँ कहाँ\" को बनाया गया। इस मुशायरे में देश भर से कुल 23 शायरों ने भाग लिया
१)फिरते हैं उनकी दीद की हसरत लिये हुए,खाती है चोट देखिये ग़ैरत कहाँ- कहाँ : सरफ़राज़ अहमद आसी
२) ख़ुद्दारियों को रोज़ करे कितना शर्मसार मुफ़लिस बताए अपनी ज़रूरत कहां कहां मासूम: रज़ा राश्दी बेगूसराय
३)पड़ती है सोचने की ज़रूरत कहां कहां ,लगने लगी हमारी भी क़ीमत कहां कहां :अवनीश कुमार दीक्षित दिव्य मुंबई,
४)जाइज़ नहीं है तर्के तअल्लुक़ का मामला रोए गी सिर पकड़ के मुह़ब्बत कहां कहां : सैयद खलिकुज़मा सीवान बिहार
५ )नफ़रत, फरेब, ज़ुल्म, जहालत के दौर में मै भी करूँ तलाश मोहब्बत कहाँ कहाँ : अहमद अज़ीज़ ग़ाज़ीपुरी
६)ये जाविदां है जिस्म के अन्दर मगर न पूछ,मिलती है मुझको दर्द से राहत कहाँ कहाँ,,डॉक्टर अक्स वारसी देवरिया
७)मिलना था जो सरकार से हासिल न जब हुआ,थक हारकर की उसने शिक़ायत कहाँ कहाँ : प्रदीप गर्ग पराग फरीदाबाद हरियाणा
८ )रहमो करम की उसके अताअत करो कुबूल ,तुम कर सकोगे उसकी ख़िलाफ़त कहाँ कहाँ : मुनीश चन्द्र सक्सेना
९)कब से खड़े हैं हम तेरे जलवे के मुन्तज़िर,होती है तेरी चश्मे इनायत कहाँ कहाँ : डॉक्टर ज़फ़र असलम यूसुफपुर
१०)दैरो-हरम से दारो-रसन तक सफ़र हुआ ,भटकाएगी मुझे तेरी निस्बत कहां-कहां :मिथिलेश गहमरी ग़ाज़ीपुर
११)ख़्वाबों में तुम हमारे ख़यालों में भी तुम्ही , हम को सनम तुम्हारी ज़रूरत , कहाँ कहाँ : सुमम यूसुफपुरी
१२)यादों को मेरे पास ही रहने दो उम्र भर ,पड़ जाए मुझको इसकी ज़रूरत कहाँ कहाँ: बादशाह राही ग़ाज़ीपुरी
१३)अपने अमल से आप ही कर ले इन्हें तलाश ,दोज़ख़ कहाँ कहाँ पे है जन्नत कहाँ कहाँ :डॉक्टर नूर फ़ातेमा मुग़लसराय
१४) हैं ज़र ज़मीन चीज़ बड़ी मानता हूं मैं,पर काम आएगी भला दौलत कहाँ कहाँ: शंकर शरण काफ़िर बलिया
१५ )बस इस लिए फ़रेबे मुहब्बत पे चुप रहा,रुस्वा मुझे करेगी मोहब्बत कहां कहां : आक़िब सलेमपुरी
१६) मौजूद हैं वो हर शाए में, बस तू मान ले ,मानो तो ही हें, वर्ना वकालत कहा कहा : सरफ़राज़ हुसैन सुबेदार (लन्दन)
१७) कुछ तो खुदी को अपनी कर लीजिए बुलंद,देती रहेगी साथ ये क़िस्मत कहां कहां : सरवर मुहम्मदाबादी
१८ ) गलियों में,घर में,राह में,खेतों में,बाग़ में,हमसे हुई न पूछ शरारत कहाँ- कहाँ : कुमार साइल साहब गुणगांव,
१९) फतेहाबादइंसान आज अपना तो ईमान बेच कर, करता है फिर तमाम तिजारत कहाँ कहाँ : राम नरेश गुप्ता सावन
२०) बहरों के रूबरू कभी गूंगों की बज़्म में,अह्ल-ए-सुख़न की गिरती है क़ीमत कहाँ कहाँ : मुश्ताक़ साहिल जलगांव महाराष्ट्र
२१ )बच्चों की भूख प्यास मिटाने के वास्ते, ले जाती है ये देखे ज़रूरत कहां कहां: असद ग़ाज़ीपुरी इलाहाबाद
२२) मिलती है भीक उसको ज़रूरत नहीं जिसे, होती है देखिये ये सख़ावत कहां कहां : रईस आज़म हैदरी कोलकाता
२३) दो चार दोस्त मेरे हैं किस शह्र में नहीं , मुश्किल में है करे वो शिकायत कहां कहां : डॉक्टर बद्र मुहम्मदी वैशाली बिहार
अंत मे ग्रुप के वरिष्ठ कवि शायर स्वर्गीय श्री कपिल मुनि पंकज जी को याद करते हुए डॉक्टर ज़फ़र असलम साहब ने आगामी 33वां गोष्ठी के लिए मिसरा (पंक्ति) का एलान किया।
\'अपने दामन में लिए फिरती है हसरत हम को\"
शायर--अमजद इस्लाम अमजद
बह्र-रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मक़तूअ
अर्कान-फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेअलुन
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क़ाफ़िया.. हसरत
रदीफ़.. हम को
क़वाफ़ी--
रहमत, मुसाफ़त, हसरत, मुहब्बत, हैरत,
वहशत, फ़ुरसत, शुहरत, दहशत, ग़ैरत, ग़ुरबत, राहत, चाहत, नकहत, ताक़त, दौलत, वग़ैरह।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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