भारत की जनता को सच जानना चाहिए !!! भारत में टीबी से 65 हज़ार लोग प्रत्येक वर्ष; प्रतिदीन कैंसर से 15 हज़ार लोग मरते हैं : हकीम मोहम्मद अबू रिजवान

By: Khabre Aaj Bhi
Sep 04, 2020
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by : जावेद बिन अली

उत्तर प्रदेश लखनऊ : पूरी दुनिया में कोरोनावायरस को महामारी कहा जा रहा हैl यह भी कहा जा रहा है यह महामारी चीन के वैज्ञानिकों द्वारा फैलाया गया हैl और यह छूत की बीमारी है lछूने और मिलने से फैलता हैl इसलिए एक दूसरे से दूरी बनाकर रहने की सरकार द्वारा अपील की जा रही हैl मैंने इस बीमारी के संबंध में झारखंड के प्रसिद्ध हकीम मोहम्मद अबू रिजवान से लिखित प्रश्नों का उत्तर मांगा था जो प्रस्तुत है l 

 1 : कोरोनावायरस कैसी बीमारी है जिसमें बिना दवा के 90% लोग अच्छे हो जाते हैं?

उत्तर:- कोरोनावायरस कोई महामारी नहीं है, बिल्कुल भी नहीं है। ये तो फार्मास्युटिकल कंपनियों के द्वारा व्यवसायीकरण है। ये ILI (INFLUENZA LIKE ILLNESS) मात्र भर है। किसी भी तरह से ये इतना जानलेवा है ही नहीं। कोरोनावायरस या किसी अन्य वायरल डीज़ीज़ से 1हज़ार में केवल एक ही व्यक्ति मर सकता है और 999 व्यक्ति ठीक हो जाते हैं। और बदकिस्मती से वो मरने वाला एक आदमी भी ऐसा होता है जिसकी "रोग प्रतिरोधक क्षमता" एकदम निम्न हो। आज भी हम देखते हैं कि वायरस से पीड़ित रोगियों में 90% तो स्वस्थ हो जाते हैं,तो यह बिल्कुल मत सोचिएगा कि ऐलोपैथिक दवा से ठीक हो जाते हैं, बल्कि उनकी "रोग प्रतिरोधक क्षमता" उच्चतम स्तर की रही है।

2:- भारत सरकार आयुर्वेदिक यूनानी होम्योपैथिक डॉक्टरों को रिसर्च करने के लिए आयुष मंत्रालय को क्यों नहीं आदेश देता है ?

उत्तर:- इस देश का दुर्भाग्य ही है कि जिस यूनानी पद्धति, आयूर्वेद को भारतीय धरोहर माना जाता है उसी को ALTERNATIVE या वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति बता कर किनारे लगा दिया गया है।

जैसा कि हम सब जानते हैं, भारत देश भी वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन (डब्लू एच ओ) का सदस्य है। ये उसी को फौलो करता है। हम जानते हैं कि यह संस्था फार्मास्युटिकल कंपनियों के लिए "मुंह" का काम करता है, और भारत में ऐलोपैथिक दवाओं के व्यवसाय की अपार संभावनाएं हैं। यहां पर उसी की सुनी जाती है। सरकार भी उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं कर सकती है। क्योंकि फार्मा कंपनियां सरकार को इतना "चंदा" देती हैं कि उसकी बराबरी कोई भी नहीं कर सकता, कौर्पोरेट कंपनियां भी नहीं। मतलब स्वास्थ के मामले में सिर्फ़ और सिर्फ़ फार्मा कंपनियों को व्यापारिक दृष्टि से फ़ायदा पहुंचाने में सारे सरकारी तंत्र लगी होती हैं। 

अब सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति में सरकार क्यों अपनी देशी चिकित्सा पद्धति पर ध्यान देना चाहेगी। देशी चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने से तो हमारे किसान भाई करोड़पति लखपति बनने लगेंगे, भला सरकार ऐसा क्यों चाहेगी? 

हालांकि, अगर कोरोनावायरस के संदर्भ में देखा जाए तो इस वायरस या किसी भी वायरल डीज़ीज़ का ईलाज केलिए किसी भी पैथी में कोई "दवा" नहीं बन सकती, कभी नहीं,कभी भी नहीं बन सकती है। ये तो बिना किसी दवा के तीन से सात दिनों में या अधिकतम चौदह दिनों में घर पर रहकर ही मरीज़ बिल्कुल सेहतमंद हो जाते हैं। लेकिन यहां तो अरबों खरबों डॉलर का बिज़नेस करना है, चाहे पब्लिक मरती रहे। जबकि अभी तक ईलाज के नाम पर जो ऐलोपैथिक दवा दी जा रही है वह EXPERIMENTAL DRUGS ही हैं।

यूनानी पद्धति से इलाज शत् प्रतिशत मुमकिन है मगर सरकार ने पाबंदी लगा दी है कि हम यूनानी पद्धति वाले कोरोनावायरस पीड़ितों का इलाज नहीं कर सकते, सलाह भी नहीं दे सकते, वरना "जेल" की हवा खानी पड़ सकती है।

3:- डब्ल्यूएचओ पर किन देशों का कब्जा है? 

उत्तर:- WHO यानी "वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन" वो संगठन या संस्था है जो दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य का ठीकादार है। लेकिन ये असल में अमेरिका और फार्मास्युटिकल कंपनियों का कठपुतली संगठन मात्र भर है। ये एक ऐसी संस्था है जो ऐसे शेर की तरह है जिसके मुंह में दांत है ही नहीं, और सिर्फ ग़ुर्राता है।ये वही करता है जो अमेरिका चाहता है और फार्मास्युटिकल कंपनियों का जिसमें फायदा हो।

4:- कोरोनावायरस से अधिक अन्य किन बीमारियों से भारत में लोग अब तक मर चुके हैं?

उत्तर:- कोरोनावायरस के नाम पर दुनिया भर में अब तक आठ लाख से अधिक लोगों को मारा जा चुका है, मैं तो यही कहूंगा।लेकिन अगर आप अन्य बीमारियों से होने वाली मौतों पर नज़र डालें तो हर साल हमारे भारत देश में टीबी से लगभग 6,50000 लोग, कैंसर से 1500 लोग हर दिन मर जाते हैं, पूरी दुनिया में अगर एक लाख लोग हृदयाघात से मरते हैं तो उसमें से 60% लोग भारतीय होते हैं। इतना ही नहीं, डेंगू से प्रति वर्ष 45000 लोगों की मौत हो जाती है।

जबकि 3,69,602 लोग कामन कोल्ड, 3,40,584 लोग मलेरिया से,मर गये। 3,53,696 लोगों ने आत्महत्या की है। 3,93479 लोग हर साल सड़क दुघर्टनाओं में मर जाते हैं। 2,40950 लोग HIV AIDS से, 5,58,471 अल्कोहल से, 8,16,498 लोग धुम्रपान से, 8,16498 लोग कैंसर से हर साल मरते हैं।

आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कोरोनावायरस क्या वाक़ई इतना ख़तरनाक है? जिसके तहत 81% तो एकदम से MILD CASES हैं, और 14% MODERATE CASES की श्रेणी में आते हैं, जबकि कोरोनावायरस के मात्र 5% मरीज़ ही CRITICAL CASES की श्रेणी में आते हैं। बता दें कि SARS से मृत्यु दर सबसे ज्यादा 10%, SWINE FLUE में मृत्यु दर 2.8% जबकि COVID-19 में मृत्यु दर मात्र 2% है।

जबसे COVID-19 का हंगामा हुआ है तब से लेकर पहली मई तक कैंसर से 26,283, हृदय संबंधी रोगों से 24,641और 4,300 लोगों ने डायबिटीज़ से दम तोड़ा है। जबकि कोरोनावायरस से जितनी मौतें हुई हैं उससे 28 गुना ज़्यादा लोगों ने आत्महत्या कर ली है। मच्छरों के काटने से 2,740 और सांप के काटने से 137 लोग प्रतिदिन मर जाते हैं। यह है भारत की सच्चाई


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Reporter - Khabre Aaj Bhi

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