जन कवि बाबा नागर्जुन जयंती पर विशेष

By: Khabre Aaj Bhi
Jun 30, 2020
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उत्तर प्रदेश : हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम क्रान्तिकारी कवि और साहित्यकार बाबा नागार्जुन मानवीय संवेदनाओं के अनूठे कवि थे। 

"जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाऊं ,,जन कवि हूँ मैं साफ कहूँगा क्यों हकलाऊं|"

जन कवि बाबा नागार्जुन की ये पंक्तियां उनके जीवन दर्शन, व्यक्तित्व एवं साहित्य का दर्पण है।लेखन कर्म के साथ-साथ जनान्दोलनों में भी बढ चढ़कर हिस्सा लेते और उनका नेतृत्व भी किया करते थे।बाबा नागार्जुन का जन्म बिहार प्रान्त के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में 30 जून 1911 में हुआ था। उनके पिता का नाम गोकुल मिश्र तथा माता का नाम उमा देवी था।  बाबा का मूल नाम पण्डित बैजनाथ मिश्र था। इनका आरंभिक जीवन  अभावग्रस्त था। वे संस्कृत, तिब्बती, बंगला, मैथिली और हिन्दी के मुर्द्धन्य विद्वान थे। मैथिली भाषा में लिखे गए उनके काव्य संग्रह 'पत्रहीन नग्न गाछ' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया तथा अकादमी फ़ेलोशिप भी प्राप्त हुआ था। इसके अलावा  भारत भारती,मैथिलीशरण गुप्त सम्मान,राजेन्द्र शिखर सम्मान व राहुल सांकृत्यायन सम्मान आदि  से प्रतिष्टित किये गए।

बाबा नागार्जुन साहित्य की एक ऐसी विभूति हैं, जिन पर साहित्य-समाज और संपूर्ण जनमानस गौरव की अनुभूति करता है। अपनी कविताओं में बाबा नागार्जुन अत्याचार पीड़ित त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करके ही संतुष्ट नहीं हो गए बल्कि इनको अनीति और अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा भी दी। समसामयिक, राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं पर इन्होंने काफी लिखा है। औ बाबा नागार्जुन सर्वहारा वर्ग की पीड़ा को अपनी सशक्त लेखनी से अंकित करने वाले प्रगतिशील कवि थे। इनका रचना अभिवंचित वर्ग के जीवन संघर्ष की अभिव्यक्ति है। 

महाकवि निराला के बाद बाबा नागार्जुन एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिन्होंने इतने छंद, ढंग, शैलियाँ और इतने काव्य रूपों का इस्तेमाल किया है। इनके कविताओं में संत कबीर से लेकर धूमिल तक की पूरी हिन्दी काव्य-परंपरा एक साथ देखी जा सकती है। अपनी लेखनी से आधुनिक हिंदी-साहित्य को समृद्ध करने वाले जन-रचनाकार यायावर थे । 


Khabre Aaj Bhi

Reporter - Khabre Aaj Bhi

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