सभ्य समाज के मुंह पर कालिख के समान है जहेज़ पर विशेष

By: Khabre Aaj Bhi
Jan 06, 2019
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by: मुहम्मद शहाबुद्दीन खान                                                                                                                                                                                                                                               उत्तर प्रदेस ;ग़ाज़ीपुर(कमसार-व-बार) हजरत मुहम्मद साहब ने फरमाया कि जब अल्लाह खुश होता है तो लड़की देता है। इस बात से बच्चियों की अजमत का पता चलता है। अमूमन हर घर मे बच्चियां हैं। जो बड़े लाड़ प्यार से पाली जाती हैं मगर अफसोस जहेज़ रूपी दानव ने इन्हें बेवक़्त निगलना शुरू कर दिया है। जहेज़ एक सामाजिक बुराई तो है ही साथ ही खुदा का कहर भी है। हमारे बीच जहेज़ की बढ़ती हुई घटनाएं दिन ब दिन आम हो चुकी हैं। जहेज़ के लिए न जाने अबतक कितने बेकसूर बच्चियों/औरतों की बली दी गई। आख़िर क्यो? इस बुराई को रोकना और अपनो में पहल करना हम सभी का कर्तव्य बनता है। जहेज़ तीन शब्द से बने ‘जहेज़ ‘ का अर्थ है – विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष को दिया जाने वाला धन और सामान! भारत में जहेज़ प्रथा का आरम्भ कब हुआ और कैसे हुआ यह तो निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता पर भारत में इस प्रथा का प्रचालन काफी समय से रहा है।                                                                                                                                    प्राचीनकाल में कन्या के विवाह के अवसर पर जहेज़ देना कन्या पक्ष पर की इच्छा पर निर्भर करता था। वर पक्ष द्वारा जहेज़ मांगे जाने का कदाचित ही कहीं वर्णन हो। लेकिन आधुनिक युग में आकर जहेज़ ने एक नया रूप अपना लिया है। जिसके कारण यह समाज के लिए अभिशाप और कलंक बन गया है। समाज में किसी भी प्रथा का प्रारंभ किसी अच्छे उद्देश्य या मानव कल्याण के लिए ही किया जाता है। समय के साथ-साथ यह प्रथा एक बुराई का बुरा रूप ले लेता है कि उससे छुटकारा पाना सहज नहीं रह पाता। समाज के लोगों की स्वार्थी मनोवृति के कारण उसमें अनेक बुराइयाँ आ जाती हैं। जहेज़ प्रथा ऐसी ही सामाजिक कुप्रथा का रूप धारण कर चुकी है जिसने आधुनिक सभ्य कहलाने वाले समाज के मुख पर आज कालिख पोत दी है                                                                           


 आज जहेज़ प्रथा के कारण ही विवाह जैसे महत्वपूर्ण पवित्र संस्कार ने भी व्यवसाय का रूप ले लिया है। वर की खुलेआम बोली लगाई जाती है। जो धनवान है वह ऊँची बोली देकर वर को खरीद सकता है। स्त्री के गोरे-सावले चमड़े को देख जहेज़ की बोली लगाई जाती है। इस प्रथा ने भारतीय समाज के अन्दर से खोखला कर दिया है। पारिवारिक जीवन को विशेला बना दिया है। हजारों स्त्रियों को बेघर कर दिया। उनके भविष्य पर प्रश्नचिन्हं लगा दिया है। हजारों नारियों को इसके बलिवेदी पर अपने प्राणों की बलि देनी पड़ी है। अक्सर समाचार-पत्रों में जहेज़ के कारण किसी न किसी युवती को जलाने या आत्महत्या के लिए विवश करने के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। जहेज़ का वर्तमान स्वरुप इतना भयावय हो गया है कि निम्न परिवार कन्या के उत्पन्न होने पर गमगीन हो जाते हैं। उन्हें कन्या के विवाह की चिंता उसी समय से सताने लगती है। जहेज़ देने में असमर्थ माता-पिता को अपनी कन्या का विवाह अधेड़, अयोग्य व्यक्ति से करने पर विवश होना पड़ता है। इतना ही नहीं जहेज़ देने में असमर्थ माता-पिता समाज में अपने मान प्रतिष्ठा को बचाने के लिए तथा अपनी लड़की को सास-ननद एवं देवरानी-जिठानी के तानों से बचने के लिए अपना सर्वस्व झोंक देते हैं। वह अपनी समर्थ से बाहर जहेज़ जुटाता है। उसके लिए कर्जा भी लेता है। अपनी संपत्ति को गिरवी रखता है और सारा जीवन कर्ज की चक्की में पिसता रहता है। ये बुराई बरसों से देखी आ रही है। इसका कोई समाधान नही। ये बुराई पहले हिन्दू जातियों में मुसलमानों की तुलना में कुछ ज्यदा थी लेकिन अब मुसलमानों में भी आम हो गई। पहले पढ़े-लिखे लोग इस बुराई से अछुते थे लेकिन अब पढ़े लिखे लोग ही इस बुराई में ज्यदा लिप्त है। जहेज़ का मनोबल बढ़ाने में घर की औरतों का अहम रोल है। औरत ही दिन पर दिन समाज मे जहेज़ जैसे कलंक कामो को बढ़ावा देती है। इस सामाजिक बुराई से बचने का सिर्फ एक ही उपाय है, अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा। दूसरे की बेटीयों को अपना बेटी समझे और उनके कदम से कदम अपना मिलाकर रखें। स्त्री के कई रूप होते है। उसे अपने घर की बहू, बेटी, माँ के रूपों में देखे और उनकी मर्यादा और सम्मान को हमेशा बनाए रखे।  जहेज़ के प्रति पूरे देश मे एक मुहीम एवं इस्लाह चलाए और लोगो को जागरूक बनाने का कष्ट करे। अपनी प्यारी बहनों के लिए लाचार भाई का खुला खत! घर मे जवान बहनों के ख़ातिर, बेरोजगार शहर को चला गया, सुनी जो खबर उनके विवाह की लहू बेचकर कंगन और पाजेब ले आया। उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर स्थित पठानों का बहुमूल्य मुस्लिम इलाका "कमसारोबार" क्षेत्र में जहेज़ की रोकथाम के लिए समाज सुधारक  रेलवे 'डीटीएस' मैंने खान बहादुर मंसूर अली "गोड़सरावी" ने सन.1910 ई० में अंजुमन इस्लाह मुस्लिम राजपूत कमसार-व-बार एवं गंगापार नाम से एक सामाजिक कमेटी का गठन कर मौजा गोड़सरा के 'हाता' नामक स्थान से तहरीक-ए-इस्लाह को शुरु किया। इस्लाह-ए-मुआसरा का काम बिरादरी के अवाम को शिक्षा एवं जहेज़ की रोकथाम के लिए आज भी हमारे इलाके में बा-खूबी अंजाम दिया जाता है।                                                                                                                                                      आज जरुरत है समाज को शिक्षित और जागरूक करने की ताकि समाज में जहेज़ रूपी कुपोषण ग्रसित बीमारी को दूर किया जा सके। बेटी और बेटा के फर्क को भुलाकर बच्चियों को बेहतर जीवन जीने का अधिकार दिया जा सके और स्वयं का दिल से अहद करे कि हमे जहेज नहीं लेनी, साथ ही सरकार को भी ऎसे जहेज़ रूपी घिनौनें दानव पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।


Khabre Aaj Bhi

Reporter - Khabre Aaj Bhi

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