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साथियों, कल देशवासियों ने भारतमाता के एक ऐसे सच्चे सपूत राष्ट्र प्रेमी एवं आजादी मिलने के बाद देश को कठिन परिस्थितियों से उबारने वाले लौहपुरुष का जन्मदिन मनाया है जिसकी बहादुरी दृढ़ विश्वास का लोहा देश ही नही बल्कि दुनिया मानती है।अगर आजादी के समय सरदार पटेल नहीं होते तो राजाओं के साम्राज्य में विभाजित देश को लोकतांत्रिक सूत्र में पिरोना आसान नहीं होता है और बंटवारे के समय शुरू हुयी मारकट साम्प्रदायिक उन्माद को रोक पाना मुश्किल हो जाता।गुजरात की माटी से जुड़े भारत माता के निर्भय सेनानी सरदार पटेल आजादी मिलने के बाद पहले गृहमंत्री हुये थे जिनकी बहादुरी को देश कभी भुला नहीं सकता है। सन् १९४८ का वर्ष भारत की राजनैतिक परिस्थिति की दृष्टि से बहुत ही चुनौती एवं हलचल पूर्ण था क्योंकि अगस्त १९४७ में जैसे ही देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुयी वैसे ही चारों तरफ अशांति का वातावरण बन गया था। लगता था कि देश को एकसूत्र में बांधना असंभव हो जायेगा क्योंकि उस समय एक नहीं बल्कि अनेकों चुनौतियाँ थी जिनसे निपटना आसान नहीं था। सबस समस्याे बड़ी बटवारे के बाद समस्या पचास- साठ लाख शरणार्थियों को सुरक्षापूर्वक पाकिस्तान से लाकर उन्हें अपने यहां बसाने की थी क्योंकि उस समय अफरा तफरी का माहौल बन गया था। इसके साथ अनेक स्थानों पर हो रहे सांप्रदायिक उपद्रव और मारकाट को नियंन्त्रित करके विभिन्न राजाओं से उनका राजपाट छीनकर उन्हें धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था के अधीन लाना था क्योंकि देश छोड़ते छोड़ते अंग्रेजी सरकार ने उन्हें 'स्वतंत्र' बनाकर राष्ट्रीय सरकार के साथ इच्छानुसार व्यवहार करने की छूट दे दी थी। भारत के ऊपर उस समय चारों तरफ से छाई काली घटाओं से निपटने की जिम्मेदारी गृहमंत्रालय की थी जिसके अगुवा लौहपुरुष कहे जाने वाले सरदार पटेल थे। अधिकांश राजा अपने राज को प्राचीनकाल के बड़े- बड़े प्रसिद्ध राजाओं- महाराजाओं तथा 'चक्रवर्ती नरेशों' के वंशज समझकर खुद को इस देश का वास्तविक स्वामी स्वयं को मान रहे थे। ऐसे राजाओं का भी अभाव न था जो मन ही मन अंग्रेजों के हट जाने पर 'तलवार के बल' से देश पर अपनी हुकूमत कायम करने का दिवास्वप्न देख रहे थे।देश के देशी और विदेशी दुश्मनों को भी विश्वास था कि आजादी के साथ मिली यह समस्या भारत की आंतरिक स्थिति को इतना अधिक डाँवाडोल कर देगी कि वह आजादी मिलने के बाद भी आजाद नहीं हो पायेगा। परिस्थितियों को देखते हुए देश के दुश्मनों की भी धारणा बन गई थी कि परिस्थितियोंवश अंग्रेज भारत को स्वराज्य देकर जा तो रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान और देशी राज्यों के राजाओं महराजाओं के कारण कांग्रेसी सरकार शासन को नहीं चला पायेंगी और झक मारकर अंत में पुनः उन्हीं अंग्रेजों को बुलाकर सुरक्षा करनी पड़ेगी।लेकिन अपने इरादे के अटल लौहपुरुष सरदार पटेल ने सभी राष्ट्रद्रोहियों के मंसूबों, कयासों और गलत फहमियों को हवा में उड़ दिया और चार- पाँच महीने के भीतर ही अधिकांश राजाओं को राष्ट्र में सम्मिलित होने के लिया राजी कर लिया था। राजाओं की रियासतों को राष्ट्र के अधीन लाने की शुरुआत उन्होंने अपने प्रांत गुजरात से की और वहाँ की कई सौ छोटी- छोटी रियासतों को एक संघ में संगठित करके नवानगर के जाम साहब को उसका राज प्रमुख बना दिया। इसके बाद उन्होंने मध्य भारत, पंजाब और राजस्थान की रियासतों के संघ बनाकर उनको "भारतीय- संघ" में सम्मिलित कर लिया। इसी तरह जूनागढ़, भोपाल बडौ़दा आदि तीन- चार रियासतों के शासकों ने कुछ विरोध का भाव प्रदर्शित तो किया लेकिन सरदार ने साम- दाम दंड- भेद की नीति से बिना किसी प्रकार के बल का प्रयोग किये समस्या को हल कर लिया। सबसे बड़ी समस्या हैदराबाद रियासत की थी क्योंकि निजाम बगावती मूड में थे और उसे पाकिस्तान में मिलाने का ख्वाब देख रहे थे। कासिम रिजवी नामक व्यक्ति ने वहाँ जाकर 'रजाकार' नाम से एक स्वयंसेवक- दल बनाकर दो लाख हथियार बंद अतिरिक्त फौज तैयार कर दी थी जबकि निजाम हैदराबाद की ४२ हजार सरकारी सेना इसके अतिरिक्त थी। ये सब मिलकर रियासत के हिंदुओं पर अत्याचार ही नहीं करने लगे थे बल्कि पास पड़ोस के प्रदेशों आकर लूटमार हिंसा करने लगे थे। सरदार पटेल तुरंत ही हैदराबाद के विरुद्ध कार्यवाही करने को तैयार हो गये थे लेकिन नेहरू जी तथा अन्य कई मंत्रियों के राजी न होने के कारण वह रूक गये थे लेकिन जब हालत बहुत बिगड़ने लगे और कनाडा के राजदूत ने नेहरू जी से ईसाई स्त्रियों पर रजाकारों द्वारा आक्रमण करने की शिकायत की गई तब कहीं जाकर निजाम हैदराबाद के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करके उन्हें उनकी औकात को बताना पड़ा। लौहपुरुष पटेल की उस समय की निजाम हैदराबाद के खिलाफ की गई सैनिक कार्यवाही को लोग आज भी याद करते हैं और वह इतिहास के पन्नों में अमर हो गई है। यह कटु सत्य है कि यदि वह उस समय देश के प्रधानमंत्री और उनकी विचारधारा वाला दृढ़ इच्छाशक्ति का देशप्रेमी मंत्रिमंडल होता तो आज भारत की तस्वीर कुछ दूसरी होती और आजाद गुलाम काश्मीर या पड़ोसी पाकिस्तान की कोई समस्या ही आज शायद देश के सामने न होती। कहते हैं कि सरदार पटेल की बहादुर फौजी गुलाम काश्मीर पहुंच गई थी लेकिन उसे शेख परिवार के दबाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री के निर्देश पर वापस बुला लिया गया था। आज देश की विभिन्न ज्वलंत समस्याओं के लिए वोट पिपाशु राजनेताओं की नहीं बल्कि सरदार पटेल जैसे व्यक्तित्व की आवश्यकता है। सरदार पटेल आजादी के बाद से ही राजनीति के मोहरा बन गये हैं और लोग उनके नाम पर राजनैतिक रोटियां सेंकने लगे हैं। आज हम अपने और अपने पाठकों की ओर उनके जन्मदिन पर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर उन्हें नमन वंदन करते हैं । धन्यवाद।।
भोलानाथ मिश्रव रिष्ठ पत्रकार
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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