संत, फ़कीर,मजजूब, ग़ुलाम साबिर मियाँ की 53 वां उर्स-ए-पाक सम्पन्न

By: Khabre Aaj Bhi
Aug 30, 2019
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 ग़ाज़ीपुर :   संतों, फ़कीरों, वीर शहीदों एवं ऐतिहासिक महापुरुषों की जनपद ग़ाज़ीपुर के थाना जमानियां अन्तर्गत ग्राम देवैथा में संत गुलाम साबिर शाह रह.अलैह की 53 वीं उर्स-ए-मुबारक पूरी अक़ीदत के साथ मनाई गई। प्रति वर्ष अरबी महीने की ज़िलहीज्जा की 27-28 तारीख़ को बड़े ही धूूम-धाम से मनाया जाता है। 27वीं तारीख़ को बाद नमाज़े फज़र कुरआनख़्वानी और बाद नमाज़े मगरीब महफ़िलें मिलादुन्नबी एवं 28 तारीख़ को बाद नमाज़े असर गागर, चादर का आयोजन किया गया। आस्ताना इबादतगाह गुुलाम साबिर मियाँ की गद्दी पर चादरपोशी करने के बाद तीन चादर उठाई गई, एक मुस्तफा मियाँ की मज़ार पर ईदगाह में,  दूसरी शहीद सैैयद दादा और तीसरे शाह कमाल दादा के मज़ार पर  चादरपोशी की गई। पूरी रात कव्वालियों का लुत्फ़ ज़ायरीनों, अक़ीदतमन्दो ने उठाया। कव्वाला नाज़ वारसी, वाराणसी एवं कव्वाल बच्चा मोहसिन कादरी, शहर ग़ाज़ीपुर के बीच मुकाबला हुआ। वहीं मोहसिन कादरी ने नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की शान में कलाम पढ़कर लोगों को झुमने पर मजबूर कर दिया कि...

नबी पे सुन लो जो उंगली उठाने वाले हैं,

बरोज़ हश्र  वो दोजख़ में  जाने वाले हैं।

अदब  से बैठिये  ऐ लोग  बावजू  होकर,

हम आज  नाते मुहम्मद  सुनाने वाले हैं।

नाज़ वारसी ने गुलाम साबिर मियाँ की शान में कसीदे पढ़े कि...

साबिर   हमरा   पंजतनी   है,   रुतबा   सबसे   आला  है

जिनको मिली है दादा की निस्बत, वो तो किस्मत वाला है


उर्स के मौके पर आफताब ख़ाँ, बदरूदोजा ख़ाँ, फख़रूलहोदा ख़ाँ, डॉ फरीद शफक़ ग़ाज़ीपुरी, इरशाद ख़ाँ, सलीम ख़ान, कल्लू ख़ाँ, हसनैन प्रधान, एकराम ख़ाँ, अबुबकर बेचन ख़ाँ, जफरूलहोदा ख़ाँ, कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा ख़ाँ, लड्डन ख़ाँ, इफ्तिखार ख़ाँ, शहबान मियाँ आदि मौजूद थे।

जीवनकाल से जुड़ी ढ़ेरों कारनामों, चमत्कारों के लिए विख्यात संत, महजूब, फ़कीर, गुलाम साबिर मियाँ के उत्तर प्रदेश और बिहार में हज़ारों अक़ीदतमंद मौजूद है। आपकी जन्मभूमि दीनापार, आजमगढ़ है तो कर्मभूमि देवैथा तथा आख़िरी आरामगाह बिउर, चैनपुर बिहार में मौजूद है। ग्राम देवैथा में हमेशा से ही संतों फ़कीरों का ठिकाना रहा है। इसकी ख़ास वजह यहाँ का सीयरहां जंगल बन था। जो काफ़ी घना था। लगभग 70-80 वर्षों पहले लगभग तीस-चालीस वर्षों तक पेड़ों के नीचे एकांत में इबादत करने वाले गुलाम साबिर मियाँ की ढेर सारी यादें,  हैैैरतअंंगेज कारनामें, चमत्कार गाँव वाले लोगों की ज़ुबान पर आज भी याादगार हैं। क्योंकि किसी न किसी रूप में इनका कारनामा, चमत्कार के किस्से अक़ीदतमंदो को हैरत करते हैं। मरीजों को संत साबिर मियाँ के मुंह से निकले चन्द जड़ी-बूटियों के नाम एक ज़ुबाँ पर फाएदा करते थे। ऊँगली के एक इशारे से दूध हो या पानी भरा गिलास बच्चों के लिए दवा से कम नहीं था। गाँव वालों के अनुसार साबिर शाह रह.अलैह अपने भाई मुस्तफा मियाँ को मरने के बाद कफन में लपेटे हुए एक मुर्दा को दूध और पान खिला दिया था। यह अजीबोगरीब चमत्कार लोगों ने अपनी आखों से देखा था। गाँव के चारों ओर छोटे-बड़े कोट हैं। लेकिन दखिन-मध्य में एक बड़ी ऊंची कोट पर बनी मिट्टी की मोटी-चौड़ी दीवारों पर बांस-बल्ली-खपरैल के बने सोलह कमरे जो एक-दुसरे से जुुड़े हुए हैं, बिल्कुल भूूल-भुलैैया की भांति! और एक पांच दर का बरामदा जिसमें ईटों की बनी छ: खम्भे खड़े हैं तथा पूरब-उत्तर दो आंगन में चार नीम, एक शरीफा के पेड़ लगे हैं। सद्र दरवाजा ख़ानक़ाह के सामने दखिन तरफ है सामने छोटा सा मैदान है। उस पर बनी पक्की मंच और पक्का कुआँ स्थापित है। मंंच महफ़िलें मीलाद और पूरी रात कव्वाली की महफ़िल सजाई जाती है। दोनों आंंगन के बीचों-बीच गुलाम साबिर शाह रह.अलैह का शानदार ख़ानक़ाह कमरा और उसमें उनका हुजरा है ! हुजरे में लकड़ी की चौकी-गद्दी है ! गद्दी पर मंन्नतों के दर्जनों चादरें चढ़ाई जाती हैं। हुजरे में काठ का बक्सा रखा हुआ है, बक्से में इनकी निशानियाँ जिसमें कुर्ता, नीमासतीन, लुंगी और हज़ारा तस्बीह (एक हज़ार दानें का माला) रखी गयी है। एक पलंग, एक चौकी अलस से है। उर्स-ए-पाक में अक़ीदतमंदो को इन तबर्ररूक़़ात की ज़ियारत कराई जाती है। उर्स के मौके पर औरतों-मर्दों की हुजूम लग जाते हैं, बाहरी पश्चिमी रास्ते पर मेला लगता है, दुकानें सज जाती हैं। मज़हबी किताबें, मज़ार की चादरें, इस्लामिक तस्वीरें, बच्चों के खिलौने और चाय-पान, चाट-मूंगफलियां भी बिकती हैं। 


Khabre Aaj Bhi

Reporter - Khabre Aaj Bhi

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