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By : नवनीत मिश्र
नई दिल्ली/संत कबीर नगर : भारत-तिब्बत समन्वय संघ ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलकर पड़ोसी देश तिब्बत की आजादी और कैलाश मुक्ति की मांग उठाई। साथ ही बीटीएसएस के प्रतिनिधि मण्डल उन्हे संगठन द्वारा इस दिशा में अबतक किए गए कार्यों की विस्तार से जानकारी दी। प्राप्त विवरण के अनुसार भारत तिब्बत समन्वय संघ की केंद्रीय टीम का 6 सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल बुधवार को केंद्रीय संयोजक हेमेंद्र तोमर के नेतृत्व में राष्ट्रीय महामंत्री द्वय अरविंद केसरी, विजय मान, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष अजीत अग्रवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष युवा विभाग नीरज सिंह, राष्ट्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह चौहान के साथ राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिला। प्रतिनिधि मण्डल में शामिल बीटीएसएस के राष्ट्रीय महामंत्रीद्वय अरविंद केसरी व विजय मान ने बताया कि इस दौरान संगठन की ओर से 07 सूत्रीय ज्ञापन राष्ट्रपति को दिया। राष्ट्रपति को सभी प्रस्ताव पढ़कर सुनाए और राष्ट्रपति ने उन प्रस्तावों से संबंधित विभागों को अपनी संस्तुति भेजने का आश्वासन दिया। इस पर राष्ट्रपति ने कहा कि कुछ प्रस्ताव गृह मंत्रालय और कुछ प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय से संबंधित है। इसलिए मैं अपनी अनुशंसा उनको भेज दूंगा। लगभग 25 मिनट की इस मुलाकात में एक अच्छी बात यह रही कि भारत -तिब्बत समन्वय संघ के कार्यों की उन्होंने पहले से ही जानकारी कर ली थी। इस दौरान उन्होंने चर्चा करते हुए तिब्बत और कैलाश के मुद्दे पर जन आंदोलन खड़ा करने हेतु समाज में जनजागृति करने और युवा शक्ति को आगे लाने के लिए अपने सुझाव भी दिए। बीटीएसएस के ज्ञापन में मांग की गई कि भारत की संसद के दोनों सदनों ने 14 नवंबर 1962 को यह प्रस्ताव पारित किया था कि चीन द्वारा धोखे से कब्जाई गई भूमि का एक-एक अंश वापस ले लिया जाएगा। अब उस संकल्प को पूरा करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाए और तिब्बत को आजाद कराया जाए।भारत सरकार चीन से बात कर कैलाश मानसरोवर के लिए तीर्थ यात्रियों की संख्या में वृद्धि कराने का प्रयास करें और इन यात्रियों से चीन सरकार द्वारा लिए जाने वाले शुल्क की प्रतिपूर्ति करें। एक प्रस्ताव 1993 तथा 1996 में तत्कालीन भारत सरकार व चीन की कम्युनिस्ट सरकार के बीच के करारनामे को रद्द किए जाने की मांग की गई। दोनों करारनामे में तिब्बत सीमा पर चीनी सैनिकों के सामने भारतीय सेना को बिना अस्त्र शस्त्र रहने को बाध्य किया जाना वास्तव में भारतीय सेना के साथ धोखा है, इसलिए इन करारनामों को रद्द किए जाने के लिए भारत सरकार को निर्देशित करने का कष्ट करें। ज्ञापन में कहा गया कि भारत में प्रभावी तिब्बती चिकित्सा पद्धति को भी हमें प्रश्रय देना चाहिए। इस देश में इससे लोगों को भी स्वास्थ्य लाभ होगा, बल्कि सरकार को इसे आयुष में शामिल करने से आय भी होगी और देश में निर्वासित तिब्बती परिवारों का भी धनोपार्जन होगा।तिब्बती बॉर्डर की मान्यता को अक्षुण्ण रखते हुए भारत-चीन सीमा की बजाय भारत-तिब्बत सीमा ही लिखा जाए और बोला जाए, क्योंकि इतिहास में चीन कभी भी हमारा पड़ोसी देश नहीं था और उसके साथ हमारी कोई भी सीमा नहीं थी। इसके अतिरिक्त तिब्बतियों को भारत की नागरिकता देने की भी मांग की गई। इस अवसर पर प्रतिनिधि मण्डल द्वारा राष्ट्रपति श्री कोविंद को स्मृति चिन्ह भी प्रदान किया गया।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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