प्रसिद्ध एमएच इंटर कॉलेज के प्रांगण में सैफुररहमान आबाद की पुस्तक सफ़ीर-ए-अदब का विमोचन व ताजियती जलसा

By: Khabre Aaj Bhi
Apr 06, 2021
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By.खान अहमद जावेद

 जनपद गाजीपुर : रोजाना पैदाइश और मौत में कुछ लोगों को रहती दुनिया तक लोग याद करते हैं । उसी में एक नाम सैफुर्रह्मान अब्बाद का हैl साइंस का विद्यार्थी जब उर्दू और हिंदी में लिखना आरंभ किया पूरे भारत में लोग उसे जानने लगेl एक व्यक्ति नही बल्कि अलग सोच और अंदाज से एक अज़ीम दुनिया का एक ऐसा फलदार वृक्ष बन गया जो

उर्दू अदब के साथ हिन्दी,अंग्रेज़ी,में भी इसका फल ख़ूब बिका जब कि ब ज़बान-ए-सैफ़ुर्रह्मान अब्बाद संस्कृत में भी इस शजर के फल से समाज के लोग लुत्फ़ अंदोज़ होते रहे ।  गाजीपुर के आदबी इतिहास में वो काली रात भुलाए भूलती नही जब अब्बाद अपनी ज़िन्दगी के तमाम दर्द को दुनिया-ए-अदब से छुपाए हुए ग़ाज़ीपुर के डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी सदर हॉस्पिटल में ज़ेरे इलाज थे । इस वर्ष २०  फ़रवरी २०२१  रात २ बजे अब्बाद के सीने में एक ऐसा तूफ़ानी दर्द उठा जिस दर्द को सह नही पाए और इस दुनिया-ए-फ़ानी से कूच कर गए । 

डॉक्टरों ने मौत की वजह हार्ट अटैक बताई २०  फ़रवरी को ही २ बजे दिन में मरहूम टकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी गई और ग़ाज़ीपुर शह्र रौज़ा ओवर ब्रिज के क़रीब उनके पुशतैनी कब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक किया गया । अब्बाद का इस दुनिया से जाना अदबी दुनिया ब बावक़ार लोगों के दिलों में रहती दुनिया तक एक टीस देती रहेगीl इसी दर्द का नतीजा था कि एम.ए. एच इंटर कालेज के प्रेनस्पल ख़ालिद अमीर और ग़ाज़ीपुर के मशहूर-ओ-मारूफ़ शायर बादशाह राही ने सैफुर्रह्मान अब्बाद को एक ताज़ियती जलसा के ज़रिए याद करने और उनकी ज़िंदगी मे एक बच्चों के अफ़साने और पोयम से भरी हुई किताब जिसका शीर्षक (तारे ज़मीन के) का विमोचन कराने का फ़ैसला बज़्म-ए-अदब गाजीपुर द्वारा किया गया। किताब मरहूम के इंतकाल के बाद छप कर आई है। जिसको वो देखने से ख़ुद महरूम रहे ।


आखिर वह दिन आ गया ४ अप्रैल दिन रविवार समय २  बजे दिन मुख्यालय के प्रसिद्ध एम.ए. एच. इंटर कालेज के नवनिर्मित सर सैयद अहमद खान हाल में ताज़ियती नशिस्त व रस्मे इजरा सैफुर्रह्मान अब्बाद मुनक़्क़ीद हुआ ।जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता जनपद गाजीपुर अल्हाज मो0 वारिस हसन ख़ाँ ने किया और मेहमान-ए-ख़ुसूसी सहायक डाक अधिच्छक ग़ाज़ीपुर मासूम राश्दी रहे । इस पूरे प्रोग्राम की निज़ामत बादशाह राही ने किया ।

प्रोग्राम का आगाज़ नाज़िम-ए-बज़्म ने जनाब अख़्तर कुरैशी से नात-ए-पाक से कराया।प्रोग्राम मरहूम की तीन बेटियों ने बुशरा रहमान,ताबीर रहमान,तकबीर रहमान और सब से छोटे बेटे लारैब रहमान जो ९ साल का है। इन बच्चों ने अपने अब्बू जान का कलाम पढ़ कर अपने अब्बू की याद को ताज़ा किया । मुख्य वक्ता में, जनाब उबैदुर्रह्मान सिद्दीकी साहब ,क़द्र पारवी साहब शेख़ ज़ैनुल आब्दीन साहब ने अपनी अपनी तरफ़ से मरहूम के ऊपर अपना लेख पढ़ कर ख़ेराज-अक़ीदत पेश किया ।

सभी ने अपने अपने लेख में इस बात का ज़िक्र किया कि अब्बाद शख़्सियत नही बल्कि शख्सियात का नाम है ।जिनकी अब तक ८ किताबें शाया हो चुकी हैं। जैसे एक आईना धूप में,कर्ब हरे दरख़्तों का,लम्स-ए-रंगों बू , अर्थ,पसे होरूफ़, जब चीख़ा अंदर का मन्ज़र,काशे ज़मीन की, और आज जिसका रस्म-ए-इजरा हो रहा है । (तारे ज़मीन के) कुल ९ किताबें अब्बाद इस दुनिया को दे कर गए ।

मदरसा क़ादरिया ग़ाज़ीपुर के आली जनाब मौलाना अरशद क़ादरी साहब ने एक मख़सूस ताज़ियत नामा बज़्म-ए-अदब की तरफ़ से लिखा जिसको प्रेनस्पल ख़ालिद अमीर और बादशाह राही साहब ने मरहूम के घर वालो को बतौर यादगार फ्रेमिंग करा कर भेंट किया ।मरहूम के निकटतम शिष्य ख़ालिद ग़ाज़ीपुरी ने भी एक लेख और अपने चन्द पंक्तियों से अपने गुरु (उस्ताद) को अपनी नम आंखों से अपनी बे पनाह मुहब्बतों का इज़हार करते हुए अपने परवरदिगार से अपने उस्ताद की मग़फ़िरत की दुआ की।

पढ़ के लगता है तख़लीक़-ए-अब्बाद को

जैसे तारे उतर आए अवराक़ पर

अब चरागों को देखो फ़रोज़ाँ यहाँ

हैं ज़बानों अदब के हर इक ताक़ पर

ख़ालिद ग़ाज़ीपुरी

इसके बाद तन्ज़ो मज़ाह के शायर हंटर ग़ाज़ीपुरी ने भी अपना संजीदा कलाम पढ़ कर मरहूम को कुछ इस तरह याद किया

इल्म की आन बान थे अब्बाद

शह्र की अपने शान थे अब्बाद

नर्म लहजे में गुफ़्तगू करते ते

कितने शीरीं बयान थे अब्बाद

सब से मिलते थे प्यार से हंटर

प्यार का सायबान थे अब्बाद

हंटर ग़ाज़ीपुरी

आफाक़ ग़ाज़ीपुरी ने अपना मरहूम पर मख़सूस कलाम पेश किया जो हक़ीक़त से बहुत करीब रहा।

फ़िकरो फ़न की किताब थे अब्बाद

आदमी लाजवाब थे अब्बाद

फूल खिलते थे जिसमें उर्दू के

उस चमन के गुलाब थे अब्बाद

आफाक़ ग़ाज़ीपुरी

बादशाह राही संचालक ने भी मरहूम अब्बाद साहब पर एक नज़्म अब्बाद साहब को महसूस करते हुए अपने मख़सूस लबो लहजे में पेश किया ।

नज़्म, क्या ख़ूब थे अब्बाद

ऐहले फ़न ऐहले हुनर ऐहले अदब ऐहले नज़र

जूक दर जूक नज़र आएं न क्यों आज इधर

इनमे कुछ लोग हैं तारे तो हैं कुछ शम्सो क़मर

और इस बज़्म में कुछ लोग हैं नायाब गोहर

क़ीमती वक़्त है ये वक़्त न बर्बाद करें

क्यों न अब्बाद को हम लोग यहाँ याद करें


मिस्ल-ए-जूही मैं कहूँ चम्पा कहूँ या कि कंवल

कोई इस शह्र-ए-मुहब्बत में नही इनका बदल

ख़ूब अफ़साना लिखा नज़्म कही और ग़ज़ल

आप रहते थे बहुत अपने इरादों पे अटल

इनका अंदाज़-ए-बयाँ सब से निराला था बहुत

इनसे दुनिया-ए-अदब में भी उजाला था बहुत


हमने देखा है इन्हें लोग दबाने में रहे

कुछ तो ऐसे थे जो क़द इनका घटाने में रहे

उम्र भर आप फ़क़त छपने छापने में रहे

अपने दामन को दबंगो से बचाने में रहे

ये अमल इनका मेरे ज़ेहन पे छा जाये न क्यों

इनकी तस्वीर तसव्वुर में उभर आये न क्यों

हुस्न-ओ-एख़लास से हर वक़्त ये सरशार मिले

राह चलते हुए अक्सर ये कई बार मिले

कभी इस पार मिले तो कभी उस पार मिले

बारहा जब भी मिले साहिबे किरदार मिले

मिस्ले बादल जो मेरे ज़ेहन पे छा जाए अदब

आप को देख के लोगों में भी आजाये अदब

थे शहंशाहे ग़ज़ल नज़्म व अफ़साना निगार

इनसे पढ़ते थे ग़ज़ल लेके कई लोग उधार

कारनामे हैं ज़माने में अमां इनके हज़ार 

क्यों न हो जाये सरे बज़्म अदब इनपे निसार

कह रहा हूँ ये नही जबरनो क़हरन मैं ये बात

ज़ीनत-ए-बज़्म थी हर बज़्म में राही ये हयात

बादशाह राही

तहतुल लफ़्ज़ के बे बाक शायर साथी ग़ाज़ीपुरी ने कुछ इस तरह ख़ेराज-ए-अक़ीदत पेश किया

फ़िकरो शऊर-ओ-फ़न के गुलिस्तान थे अब्बाद

अल्लाह के नबी के मदह ख़ान थे अब्बाद

साथी वो लफ़्ज़ तौल के लाते थे शेर में

उर्दू अदब कि आन थे पहचान थे अब्बाद

साथी ग़ाज़ीपुरी


इसके बाद जनपद के प्रसिध्द समाज सेवी संजीव गुप्ता ने मरहूम के आये हुए बच्चों के सर पर दस्त-ए-शफ़क़त भरा हाथ फेरते हुए माइक से ही अपना मोबाइल नम्बर नोट कराते हुए ।इस बात का आस्वाशन दिया ।आप लोग अपने को अकेला कभी मत समझियेगा ।भविष्य में कभी भी मेरी ज़रुतर समझ मे आये तो मुझे ज़रूर याद कीजिये । साहित्य चेतना समाज के संस्थापक अमर नाथ अमर ने भी बहुत ही खूबसूर ख़ेराज-ए-अक़ीदत नस्र में पेश करते हुए कहा बच्चों हम सब आप के साथ है।

आप अपने को अकेला महसूस मत कीजिये जाना एक दिन सब को है जो इस दुनिया मे आया है उसको एक दिन यहां से जाना है यही ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि है आख़िर में किताब का रस्म-ए-इजरा हुआ और मज़मून बज़्म-ए-अदब की तरफ़ से मरहूम के घर वालों को पेश किया गया ।सबसे आख़िर में प्रोग्राम की सदारत कर रहे अल्हाज मो ॰ वारिस हसन ख़ाँ एडवोकेट ने मरहूम की ख़ुसूसियात बयान की और उनके बच्चों को तसल्ली और मरहूम के लिए मग़फ़िरत की दुआ करते हुए प्रोग्राम के एखतेताम पज़ीर होने का ऐलान किया ।

इस प्रोग्राम में जनपद के बा वक़ार लोग कसीर तादात में मौजूद रहे इतिहास कार सुहैल ख़ाँ,जमील खाँ प्रवक्ता एम. ए. एच इंटर कालेज, जावेद अंसारी एम. ए. एच इंटर कालेज,,चीफ़ बीयूरो उर्दू दैनिक इंकलाब मोहम्मद शौकत खान, चीफ ब्यूरो खबरें आज भी इजहार खान ,मिसाल ग़ाज़ीपुरी ,ज़ैनुल आब्दीन उर्फ़ बाबू भाई आदि मुख्य रूप से उपस्थित थे ।प्रोग्राम के आयोजक ख़ालिद अमीर और बादशाह राही ने दिल की गहराइयों से आये हुए सभी उपस्थित गण का और पत्रकार प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का धन्यवाद प्रस्तुत क्या ।


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Reporter - Khabre Aaj Bhi

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