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माहे रमज़ान में जकात व फितरा का होता है खास फजीलत ************************** माहे रमजान में मुकद्दस कुरआन को नाजिल कर मुसलमानों को जिंदगी जीने का तरीका बताया था। किन कामों को करना चाहिए और किन कामों से बचना चाहिए कुरआन की आयतें करीमा बयां कर रही हैं। इस्लाम धर्म में जकात (दान)और ईद पर दिया जाने वाला फितरा का खास महत्व है। माहे रमजान में इनको अदा करने का महत्व और बढ़ जाता है। क्योंकि इस महीने में हर नेकी का खुदा सत्तर गुना अता करता है। यह हर मुसलमान पर फर्ज है जो साहिबे निसाब (जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी की हैसियत हो) है। मुफ्ती सय्यद कफील अहमद हाशमी ने बताया कि अल्लाह रब्बुल इज्जत ने कुरआन में फरमाया कि साल भर की कमाई का ढाई प्रतिशत जकात के रूप में मिस्कीनों को देना हर साहिबे निसाब मुसलमान पर फर्ज है। नबी करीम फरमाते हैं कि ईद की नमाज के बाद फितरा देना वाजिब है। अगर कोई इसको अदा नहीं करता तो उसके रोजे आसमान और जमीन के दरम्यान मुअल्क (लटकता) रहता है। साल भर की कमाई पर शुद्ध लाभ का ढाई प्रतिशत जकात के रूप में देना फर्ज है। यह केवल मिस्कीनों, ऐसे मुसाफिरों को जिनके पास कुछ नहीं बचा उसी को देना चाहिए। वहीं फितरा घर के प्रत्येक सदस्य पर पौने तीन किलो गेहूं या इसके बराबर की कीमत देना वाजिब है। रिवायत का जिक्र करते हुए मुफ्ती ने बताया कि हजरत उमर फारूख रजीअल्लाह तआला अनुह फरमाते हैं कि वो माल सूखे और पानी में बरबाद नहीं हो सकता जिसका जकात निकल चुका हो। उन्होंने बताया कि जकात और फितरा संबंधी लोगों के सवाल आने लगे हैं। मस्जिदों में भी इस संबंध में जानकारी दी जा रही है।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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