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सेवराई/गाजीपुर : स्थानीय तहसील क्षेत्र के उसिया गांव स्थित क्यूईसी स्कूल उसिया ज्ञान परिसर में मंगलवार को अपराह्न राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर स्मृति-सभा का आयोजन किया गया. स्मृति-सभा के आरम्भ में स्कूल के प्रबंधन सदस्यों, संकाय सदस्यों, शिक्षकेत्तर सदस्यों और समस्त छात्रों द्वारा दो मिनट का मौन धारण कर बापू गांधी का सादर स्मरण किया गया. तत्पश्चात पुतलीबाई के कालजयी पुत्र और भारतीय मानस के प्रिय बापू मोहनदास करमचंद गांधी के चित्र पर सर्वप्रथम क्यूईसी स्कूल के चेयरमैन आरिफ़ ख़ान, क्यूईसी स्कूल के मैनेजर परवेज़ ख़ान, क्यूईसी स्कूल के फाउंडर मेम्बर व लेखक तौसीफ़ गोया सहित संकाय सदस्यों, शिक्षकेत्तर सदस्यों व छात्रों द्वारा श्रद्धा के पुष्प अर्पित किए गए।
श्रद्धांजलि सत्र के पश्चात विचार सत्र को आधार देते हुए अपने बीज वक्तव्य में क्यूईसी स्कूल उसिया के सोशल साइंस शिक्षक हरिदास सिंह ने कहा कि मुझे यह देख कर बहुत हैरानी होती है कि महात्मा गांधी जितने अप्रासंगिक दिखते हैं, उतने ही ज़रूरी हुए जा रहे हैं. आधुनिकता से आक्रांत मौजूदा दुनिया में कई बड़े मुद्दे ऐसे हैं, जहां गांधी का रास्ता अपनाने के अलावा हम सबको कोई चारा नज़र नहीं आता.
क्यूईसी स्कूल उसिया के फाउंडर मेम्बर व लेखक तौसीफ़ गोया ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि गांधी एक 'विचार' का नाम है, 'विकार' का नहीं. महापुरुष संसार के होते हैं, किसी देश के नहीं और वे किसी के मारे नहीं मरते. मुझे अफ़सोस है कि हत्यारों को इसके सिवा और कुछ नहीं आता. गांधी की प्रासंगिकता के हवाले से अहिंसा पर अध्ययन के पश्चात ये साबित होता है कि जैसे हिंसा की राह पर चलने वालों को मारने की कला सीखनी पड़ती है, अहिंसा के पथ पर चलने वालों को मरने की कला सीखनी पड़ती है. मरने की कला ज़िंदा रहने की कला की स्वाभाविक निष्पत्ति है.
स्मृति सभा की अध्यक्षता करते हुए क्यूईसी स्कूल उसिया के प्रिंसिपल मतलूब ख़ान ने अपने शब्द संज्ञान में कहा कि सभ्य समाज को अपने मूल अधिकारों के लिए बंदूकों की नहीं, जाग और विचारों की आवश्यकता होनी चाहिए. बापू की छाप और थाप वाली यह वैचारिकी हमें अहिंसा के सिद्धांत के प्रति उसकी हिमायत की अभ्यर्थना देती है. आप जब देश से बाहर क़दम रखेंगे, तो जानेंगे कि महात्मा गांधी की क्या इज़्ज़त है. दुनिया गांधी को अधिकृत कर रही है, पुकार रही है.
स्मृति-सभा का संचालन करते हुए क्यूईसी स्कूल उसिया के मैनेजर परवेज़ ख़ान ने अपने बोधी वक्तव्य में कहा कि मारने के बाद भी गांधी मरे नहीं. ध्यान से देखें तो आज की दुनिया सबसे ज़्यादा तत्व गांधी से ग्रहण कर रही है. वे जितने पारंपरिक थे, उससे ज़्यादा उत्तर आधुनिक साबित हो रहे हैं. वे हमारी सदी के तर्कवाद के विरुद्ध आस्था का स्वर रचते हैं. हमारे समय के सबसे बड़े मुद्दे जैसे उनकी विचारधारा की कोख में पल कर निकले हैं. मानवाधिकार का मुद्दा हो, सांस्कृतिक बहुलता का प्रश्न हो या फिर पर्यावरण का- यह सब जैसे गांधी के चरखे से, उनके बनाए सूत से बंधे हुए हैं. अनंत उपभोग के ख़िलाफ़ गांधी एक आदर्श वाक्य रचते हैं- यह धरती सबकी ज़रूरत पूरी कर सकती है, लेकिन एक आदमी के लालच के आगे छोटी है. भूमंडलीकरण के ख़िलाफ़ ग्राम स्वराज्य की उनकी अवधारणा अपनी सीमाओं के बावजूद इकलौता राजनीतिक-आर्थिक विकल्प लगती है. बाज़ार की चौंधिया देने वाली रोशनी के सामने वे मनुष्यता की जलती लौ हैं बापू, जिनमें हम अपनी सादगी का मूल्य पहचान सकते हैं.
स्मृति सभा के उपक्रम में क्यूईसी स्कूल उसिया के प्रत्यक्षज्ञानी संकाय सदस्यों उप-प्रधानाचार्या आफ़रीं बेग़म , प्रभुनाथ गुप्ता, वसीम अहमद ख़ान, मोहम्मद सरफ़राज़ हुसैन, आरज़ू ख़ान, मोहम्मद मोइन ख़ान, मौलाना मोहम्मद आरिफ़ ख़ान, हाफ़िज़ मोहम्मद शब्बीर, राबिआ ख़ान, नम्रता मौर्या, शबनम ख़ान, सायमा ख़ान, शालू वर्मा, फ़लक़ ख़ान, शीतल वर्मा, शनि कुमार वर्मा, ज्योति प्रकाश सिंह, मोहम्मद जीशान ख़ान, उज़्मा बानो, शरफ़ुद्दीन ख़ान, नूरी ख़ान, कशिश बानो, नाहिदा ख़ातून, आलिया अंसारी, शम्स तबरेज़ ख़ान, सोफ़िया ख़ान, आफ़रीं परवीन, शाइस्ता ख़ान, अफ़साना ख़ातून, नसरीन जमाल, शाहनवाज़ अंसारी, तासीर अंसारी और रूस्तम अली, अमरजीत चौधरी व निर्मल राम आदि का सह-संयोजन प्रशंसनीय रहा।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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