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By, जावेद बिन अली
भोपाल : आजादी का अमृत महोत्सव पर उर्दू सहाफत के जो २०० वर्ष होने पर पूर्व डीजीपी एम डब्लू अंसारी ने भारत के तमाम नागरिकों को मुबारक देते हुए कहा है कि २७ मार्च १८२२ को उर्दू का पहला अखबार जामे जहांनुमा प्रकाशित हुआ था जिसके एडिटर सदा सुख लाल और उसके मालिक हरिहर दत्त थे। अगले २७ मार्च २०२२ कोउर्दू सहाफत के २०० साल पूरे हो जाएंगे। उर्दू सहाफी मौलवी मोहम्मद बाकिर साहब को अंग्रेज मेजर विलियम हडसन ने तोप से बांधकर उड़ा दिया था । इसी प्रकार ढेर सारे उर्दू सहाफी जिनको अंग्रेजों ने यातनाएं की सजाएं दी जिसमें मुंशी प्रेमचंद से लेकर पीर मुनीश गणेश शंकर विद्यार्थी कन्हैया लाल और ढेर सारे लोग हैं । उन सभी को हम सबको याद करना चाहिए और साथी उर्दू भाषा जो भारत की भाषा है lभारत में जन्म लिया है। उर्दू भाषा ही गंगा जमुनी तहजीब है lउर्दू को प्रमोशन के लिए हम सबको काम करना चाहिए । यद्यपि जो भी सरकारें चाहे प्रदेश में होता है मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा उर्दू के साथ उसका व्यवहार काफी सौतेला पन है ।
उन्होंने उर्दू का जिक्र करते हुए बताया कि आजादी के तमाम नारे चाहे वह इंकलाब हो चाहे जिंदाबाद हो सरफरोशी की तमन्ना हो ढेर सारे नारे उर्दू में गठन कर अंग्रेजी हुकूमत के चूले हिला दी और आज यह भाषा अपने ही मातृभूमि में अकेलेपन का महसूस करते हुए खत्म होती जा रही है या खत्म किया जा रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि यह एक विचारणीय प्रश्न है। और हम सब भारत वासियों को मिलकर भारत की गंगा जमुनी तहजीब को आपस दारी को एकता को बनाए रखना है । अपनी विरासत को बचा कर रखना है। तो उर्दू भाषा को भी बचा के रखना होगा इसको मजबूत करना होगा lइसको प्रमोशन के लिए काम करना होगा।
ना उर्दू महफिले है सारे जमाने में सजाने से,ना सरकारी मदद से किताबों को छपाने से,
ना फिल्मी गीत सुनने से गजलें गुनगुनाने से, रहेगी जिंदा उर्दू बच्चों को उर्दू पढ़ाने से,
उन्होंने भारत के नागरिकों से अपील करते हुए कहा कि हम सबको अपने आने वाली पीढ़ी को और बच्चों को उर्दू पढ़ाना विशेष तौर पर पढ़ाना चाहिए इस जवान के माध्यम से सबसे ज्यादा उच्चारण सही हो जाता हैl भारत की तहजीब गंगा जमुनी को बचाना है। यहां पर यह उल्लेखनीय है कि उर्दू हिंदी की रिश्ता वही है और इसके साथ साथ भारत में सभी बोले जाने वाली भाषाएं का रिश्ता है वह एक तरह से सगी बहनों का और परिवार का रिश्ता है ।
सगी बहनों का जो रिश्ता, रिश्ता है उर्दू और हिंदी में कहीं दुनिया की दो जिंदा जुबानो में नहीं मिलता!
इसी प्रकार आज एस ७५ वा आजादी दिवस के मौके परउन तमाम शहीदों को याद किया जाना है जिनको की इतिहास के पन्नों में जगह नहीं मिला है और साथ ही देखा जा रहा है कि सत्तासीन राजनीतिक पार्टी जिनका की कोई भी स्वतंत्रता से संबंध नहीं है उनको महिमामंडित करने का प्रयास किया जा रहा है हम सबको इस आजादी के मौके पर उन तमाम वीर सपूतों को याद करना चाहिए जिन्होंने भारत को आजाद कराने के लिए अपनी कुर्बानी दी है।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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