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उत्तर प्रदेश: नोटबंदी के दौरान हुयी रिजर्व बैंक एवं उससे सम्बद्ध विभिन्न बैंकों द्वारा की गई मनमानी से हुयी सरकार की फजीहत तथा बाद में नीरव मोदी जैसे तमाम लोगों को वित्तीय सहायता देने की मनमानी से सासंत में फंसी सरकार ने पिछले दिनों रिजर्व बैंक पर हमला बोलकर उसे कटघरे में खड़ा कर दिया है। नोटबंदी के दौरान जबकि लोग हजार दो हजार के नोट बदलने के लिए लम्बी ऊबाऊ लाइन में खड़े थे उस समय बैंक लाखों करोड़ो के मुश्त भुगतान किये जा रहे थे और तीस से चालीस प्रतिशत कमीशन पर काले धन को सफेद बनाकर योजना रसातल में पहुंचाया जा रहा था। नोटबंदी के बाद बैंकों के तमाम नियमों कानूनों में बदलाव करके ग्राहक को भगवान से गरजू बना दिया है औ मनमानी कटौती कर उसे लूटने का दौर शुरू कर दिया है। वित्त मंत्री की दो दिन पहले दिये गये बयान के बाद आरबीआई एवं सरकार के बीच खाई गहरी होती जा रही है और लगता है कि जल्दी ही गवर्नर उर्जित पटेल अपने पद से त्याग पत्र दे देगें। वैसे सरकार और आरबीआई के बीच पहली बार रार नहीं हो रही है बल्कि इससे पहले भी तकरार टकराव एवं मतभेद होती रही हैं और गवर्नर को त्याग पत्र देना पड़ चुका है।यह दौर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जमाने से लेकर आजतक अनवरत जारी है इस दौरान सर ओसबोर्न, बेनेगल रामा राव, के के पुरी, राम नारायण राव आदि टकराव एवं मतभेद के चलते अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं।पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी आरबीआई गवर्नर जनरल के रूप में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से मतभेद होने के बाद इस्तीफा देने की पेशकश कर चुके हैं लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी के हस्तक्षेप के बाद मामला सुलझ गया था।सरकार और गवर्नर के बीच मतभेद एवं टकराव की नौबत अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने में भी हो चुकी है।इतना ही नहीं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं तत्कालीन गवर्नर डी सुब्बाराव तथा 2013 एवं 2016 के बीच गवर्नर रघुराम राजन से मनमुटाव हो चुका है। वर्तमान समय में भी पुनः वित्त मंत्री अरूण जेटली एवं आरबीआई गवर्नर के बीच टकराव की स्थिति बन हुयी है और सरकार गवर्नर जनरल पर गंभीर आरोप लगा चुकी है।सरकार एवं गवर्नर के बीच चल रहा मतभेद दिनों दिन बढ़ता जा रहा था और लगता है कि उर्जित पटेल भी इस परिपाटी में शामिल हो जायेंगे। सरकार और आरबीआई के बीच तालमेल न होना दुर्भाग्यपूर्ण है और न्यायिक दायरे में दोनों मे एकरूपता देशहित में जरूरी है। बैंकों की खाऊं कमाऊं मनमानी नीति का ही फल है कि आज तमाम पैसा कर्ज के रूप में डूबने की कगार पर है और बैंक कंगाली की करार पर पहुंच गये हैं। धन्यवाद। बोलानाथ मिश्र वरिष्ठ पत्रकाररा मसनेहीघाट, बाराबंकी
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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