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मुंबई: आंकड़ों के मुताबिक म्हाडा में प्रतिमाह औसतन चार से पांच सौ आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी जाती है। लेकिन इनमें आधे से अधिक मामलों के आवेदनों का निबटारा म्हाडा के भ्रष्ठ अधिकारियों द्वारा ले देकर पटा दिया जाता है। क्योंकि म्हाडा के विभिन्न विभागों में फैले भ्रष्ट्राचार की जानकारी रखने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं व समाजसेवकों को भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों की नसों का पता है। इस लिहाज से म्हाडाकर्मी उनसे पंगा नहीं लेते, नहीं तो नप सकते हैं।
गौरतलब है कि मुंबई महानगर क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण (म्हाडा) के विभिन्न विभागों में प्रति माह औसतन चार से पांच सौ आरटीआई के आवेदन आते हैं। इनमें कुछ आवेदन म्हाडा के भ्रष्ट अधिकारियों को महज डराने की गरज से भी डाला जाता। इसके अलावा आधे से अधिक आवेदनों का निबटारा म्हाडा के भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा ले देकर पटा लिया जाता है।
लेकिन डाले गए आरटीआई आवेदनों की एक चौथाई प्रथम और द्वितीय अपील की दहलीज तक पहूंचती है। जिस पर कार्रवाई के नाम पर कुछ आवेदनों पर जांच के आदेश दिए जाते हैं और चंद आरटीआई से मामलों का खुलासा होता है। जो अखबार और टीवी चैनलों की सुर्खियां बनती हैं। दरअसल सरकार द्वारा मुंबई के विभिन्न क्षेत्रों के विकास के लिए जो फंड मुहैया कराया जाता है। उस फंड में म्हाडाकर्मियों के सहयोग से बंदरबांट शुरू हो जाती है।
इस वर्ष दीपावली में भी बड़े पैमाने पर बंदरबांट होने की बात कही जा रही है। हालांकि मौजूदा समय में सारे काम ई-टेंडर के जरीये ही ठेकेदारों को दिया जाता है। इसके बावजूद म्हाडा के अधिकारियों द्वारा बंटने वाला पैसा कहां से आता है? सूत्र बताते हैं कि बंटने वाला रकम ठेकेदारों से वसूली जाती है। इस रकम के एवज में अधिकारी ठेकेदार के कार्यों की गुणवत्ता को नजरअंदाज करते हैं।
Reporter - Khabre Aaj Bhi
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